भारत की ज्योग्राफी अलग-अलग जगह अलग-अलग प्रकार की है। जिन्होंने भारत भ्रमण किया होगा उन्होंने रेगिस्तान, वर्षावली इलाके, प्लेटु, बर्फबारी वाले इलाके, समतल इलाके, माउंटेन हिल्स, जंगल, झील झरने, पहाड़ों की कतारें प्राकृतिक सौंदर्य से भरे असंख्य नजारे, ठंडे प्रदेश, गर्म प्रदेश, समुद्र, नदिया यह सब भारत मैं पाए होंगे। इकोलॉजी आधार पर निर्मित भवन का बाहरी हिस्सा मौसम के असर को सहन करने योग्य होते हैं परंतु भितरी हिस्से पर हम मौसम के प्रतिकूल असर को पाते हैं क्योंकि स्थानीय बिल्डिंग मटेरियल आपके लिए हम मौसम के असर में उचित टेंपरेचर वेरिएशन लाते हैं। उदाहरणार्थ बर्फीले इलाके में पत्थरों की बिल्डिंग बनाएंगे ग्रेनाइट फ्लोरिंग होगी तो भितरी तापमान और कम होगा लेकिन यदि लकड़ी के भवन बनाएं तो भीतरी तापमान पर बाहर के मौसम का असर ज्यादा नहीं होगा। राजस्थान में पत्थर के मकान उपयुक्त होते हैं। इलाके अनुसार स्थानीय भवन निर्माण सामग्री से भवन बनाना चाहिए यही समझदारी है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रकृति से तालमेल बनाकर रहना स्वस्थ जीवन की पहली निशानी है। भवन निर्माण में हवा और रोशनी भरपुर रहे इसका ख्याल रखना चाहिए, किस दिशा से हवा आती है उस दिशा में खिड़की जरूर रखें। पृथ्वी का नियम है यदि ऊपर ठंडक है तो जमीन के नीचे गर्माहट होगी और यदि ऊपर गर्माहट है तो जमीन के नीचे ठंडक होगी, और इसी नियम अनुसार पारिस्थिति आधारित भवन निर्माण होते हैं।
अशोक मेहता, (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने विचार है)
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