दशहरे पर रावण दहन के दिन जो रावण के पुतले बनाए जाते हैं उन पर भ्रष्टाचारी अत्याचारी ऐसे कई अलंकरण लिखे रहते हैं और कहा जाता है कि दशहरे का दिन असत्य पर सत्य की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय इसलिए रावण दहन किया जाता है। यदि वाकई में ऐसे रावण का दहन होता है तब तो माफ करना कई बेईमान नेता, बेईमान अधिकारी, बेईमान व्यापारी, मिलावट खोर, बच्चे चुराने वाले, बलात्कार करने वाले, मोहल्ले के गुंडो का भी दहन होना चाहिए। अब प्रश्न यह आएगा कि इनका दहन कौन करेगा। दशहरा जाते ही ऐसे रावण फिर से खड़े हो जाते हैं और हम इसी नशे में रहते हैं कि हमने रावण का दहन कर दिया। हम इसलिए झूठ मुटका रावण दहन करते हैं कि हमारे भीतर भी कही न कहीं कोई रावण छुपा है और खुद को मारना बहुत कठिन है। यदि इस दिन ऐसा सभी यह प्रण कर ले कि अब हमें रावण का प्रतीक नहीं बनना है तो यह जनहित में समाज के लिए बड़ा सुनहरा दिन होगा। क्यों नहीं ऐसा हो कि रावण दहन के बजाय इस दिन को शपथ दिवस बनाया जाए और सभी यह शपथ ले कि हम गैर कानूनी, गैर जिम्मेदार, समाज विरोधी, देश विरोधी, मानवता विरोधी रावण कहलाने वाला कोई भी कार्य न करें। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…