भारतीय जनसंघ के संस्थापक और प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज जन्म जयंती है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रणेता, महान चिंतक, शिक्षाविद और मानवता के उपासक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी अपने प्रारंभ काल से ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक रहे ।धर्म के आधार पर देश के विभाजन के कट्टर विरोधी थे। ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की योजना को जब तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं ने अखंडभारत के वादों को भुलाकर स्वीकार कर लिया। तब महान क्रांतिकारी नेता डॉ मुखर्जी ने व्यापक जनांदोलन चलाकर आधा पंजाब प्रांत और आधा बंगाल, पाकिस्तान में जाने से बचा लिया। स्वतंत्र भारत में गांधी जी और सरदार पटेल के आग्रह पर वे भारत के पहले मंत्रिमंडल में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री बने। किंतु अपने राष्ट्रवादी चिंतन के चलते प्रधानमंत्री नेहरु जी की तुष्टीकरण की नीति का डटकर विरोध कियाऔर अंततः राष्ट्रहित की प्रतिबद्धता को सर्वोच्च मान देते हुए उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अक्टूबर 1951 में पं. प्रेमनाथ डोगरा, बलराज मधोक एवं कुछ राष्ट्रवादी नेताओं को साथ में लेकर भारतीय जनसंघ के रूप में नया राजनीतिक दल खड़ा किया। महान विचारक दार्शनिक एवं कुशल संगठक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया। दीनदयाल जी अटल जी जैसे महान नेताओं का अपने देश के प्रति समर्पण और निष्ठा पूर्वक अथक प्रयासों से कुछ ही समय में कांग्रेस के विकल्प के रूप में एक सशक्त विरोधी दल खड़ा हो गया। भारत के तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य में तुष्टीकरण की नीति के चलते डॉक्टर मुखर्जी ने लियाकत- नेहरू पैक्ट का विरोध किया ।डॉक्टर मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाना चाहते थे ।उस समय कश्मीर का अलग झंडा, अलग संविधान था वहां का मुख्यमंत्री वजीरे -आजम कहलाता था ।तथा कश्मीर जाने के लिए परमिट(बीजा) लेना आवश्यक था ।कश्मीर में धारा- 370 का मुखर विरोध करते हुए डॉक्टर मुखर्जी ने अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली को संबोधित करते हुए संकल्प व्यक्त किया था कि मैं आपको भारतीय संविधान दिलवाऊंगा या फिर इसके लिए संघर्ष करते हुए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा इस संकल्प के साथ उन्होंने तत्कालीन नेहरू सरकार को चुनौती दिया तथा एक देश में दो विधान, दो निशान, और दो प्रधान नहीं चलेगा का नारा दिया ।अपने दृढ़ निश्चय को पूरा करने बिना परमिट लिए डॉक्टर मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर की ओर कूच किया। तब नेहरू और कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की मिलीभगत के चलते उन्हें भारत की सीमा में न रोककर,कश्मीर की सीमा में प्रवेश करने दिया गया । ताकि कश्मीर के संविधान के अनुसार उन पर मुकदमा कायम किया जाए ।कश्मीर की सीमा में प्रवेश करते हैं उन्हें गिरफ्तार कर श्रीनगर जेल में नजरबंद कर दिया गया ।जेल में बीमारी के चलते उनका उलटा सीधा इलाज और इंजेक्शन देने से 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थिति में उनकी मृत्यु हो गई।
जनसंघ से अपनी राजनीतिक यात्रा प्रारंभ कर जनता पार्टी के बाद 1980 के दशक में पं. अटल बिहारी बाजपेई जी के नेतृत्व में- भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई। ज्ञातव्य है कि भारतीय जनता पार्टी वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित हो चुकी है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में केंद्र में पहली बार, बहुमत से, गैरकांग्रेसी विचार, वाली सरकार पदारूढ़ हुई। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रखर राष्ट्रवाद तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद दर्शन को केंद्र में रखकर मोदी सरकार ने पिछले 5 साल में देश में गहरी जड़ जमा चुके I आकंठ भ्रष्टाचार, कालाबाजारी को दूर करने अनेक साहसिक कदम उठाकर सबका साथ सबका विकास का नारा देकर तीव्र विकास के साथअंत्योदय का आधार बनाया। देश में आव्यवहारिक नियम कानून को हटाकर भारतीय संस्कृति और स्वाभिमान को प्रतिष्ठित किया गया। मोदी सरकार ने अपने दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति के आधार पर आतंकवाद एवं दुश्मन देशों को भारतीय सेना के शौर्य से परिचित कराया । वर्तमान 2019 के लोकसभा चुनाव में भारी मतों से पुनः मोदी-2 सरकार ने सत्ता संभालते ही 7 महीने के भीतर 31 अक्टूबर 2019 को शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक ढंग से कश्मीर से अनुच्छेद 370 का कलंक हटा दिया । इस तरह कश्मीर के लिए बलिदान हुए, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनका सपना साकार कर सच्ची श्रद्धांजलि दी गई है। प्रत्येक भारतवासी अब गौरव के साथ कह सकता है कि जहां हुए बलिदान मुखर्जी ,अब वो कश्मीर हमारा है। डॉक्टर मुखर्जी अमर रहे अमर रहे ,वंदे मातरम भारत माता की जय।।
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