खास करके शहरों में कम जगह में ज्यादा से ज्यादा परिवार को बसाने के लिए या तो बहुत छोटे छोटे प्लाट या मल्टीस्टोरीड बिल्डिंग बनाई जाती है जिससे उस क्षेत्र का आबादी घनत्व बढ़ जाता है आबादी बढेगी तो वाहन रखने की समस्या भी पैदा होगी और अन्य जरूरतें जैसे सब्जी बाजार, खोमचे वाले, ठेले पर दुकान लगाने वाले के अलावा अन्य शॉपिंग, स्कूल हॉस्पिटल, बगीचे, धर्मस्थल, प्ले ग्राउंड और मनोरंजन के साधन के लिए जगह इन सब की पूर्ति भी नहीं होगी कुछ ना कुछ कमियां रह जाएगी। आबादी घनत्व बडने से जल, मल, बिजली इनकी भी आपूर्ति पूरी नहीं हो पाएगी और कुछ ना कुछ संकट बना रहेगा। संकरी गलियां होगी और अव्यवस्थित विकास होने से और साफ स्वच्छ बस्तियां नहीं दिखेगी। सत्ता पाने के लिए कई राजनीतिक दलों ने नया रास्ता अपना लिया जहां जिसने झोपड़ी बना ली है उस जमीन के टुकड़े का पट्टा लिख देते हैं इससे झुग्गी झोपड़ी बस्तियों का ढेर लग गया। विचारणीय है कि क्या यही जीवन जीने का माहौल है या फिर मजबूरन गंदी बस्तियों में रहने का माजदा। स्वच्छ माहोल में रहने वाले बड़े बुजुर्ग बच्चो की मानसिकता अलग होती है। आर्थिक स्थिति चाहे जो हो पर रहने के माहौल अच्छे होना चाहिए। जब तक यह चिंतन सत्ता पक्ष में नहीं होगा तब तक हम अपने गांव और शहरों की तुलना विकसित देशों के गांव और शहरों से नहीं कर सकते। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)
महाराष्ट्र में भाजपानीत महायुति और कांग्रेसनीत महाविकास आघाडी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव जीतना राजनीतिक जीवन मरण का प्रश्न बन गया है। भाजपा ने शुरू में यूपी के…
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छत्तीसगढ़ राज्य ने सरकार की योजनाओं और कार्यों को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल तकनीक को अपना प्रमुख साधन बनाया है। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते…
वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…