अक्सर हमने देखा है की मौसम में थोड़ा बहुत भी परिवर्तन होता है तो हम तुरंत उस पर अपने राय गढ़ देते हैं कि इस बार ठंड, बरसात या गर्मी कम होगी या ज्यादा होगी। मौसम प्रकृति के नियम से ही चलेगा और इसी मौसम के अनुसार हमे जीना है, उस का लुफ्त उठाना है और खुश रहना है, मौसम को अनुभव करना है। ये मौसम हमारे जीवन से बहुत करीबी नाता रखते है याद कीजिए बरसात में नहाना, ठंड में गुनगुनाती धूप में बैठना, और गर्मी में पेड़ के नीचे लेटना। हमारे लिए ये मौसम अच्छा ही करेगा ऐसी धारणा हमे रखना चाहिए। यह बात भी सही है कि कभी-कभी मौसम इतना बिगड़ जाता है कि वह विकराल रूप ले लेता है लेकिन ऐसी स्थिति कभी कभार होती है। व्यक्ति ने मौसम अनुरूप खान पान रहन सहन सीखना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को सिखाना चाहिए। किसी जमाने में व्यक्ति घर में आने से पहले पाॅव पर पानी डालता था, गिला हाथ अपने मुंह पर फेरता था जिससे शरीर का टेंपरेचर नॉर्मल हो जाता है। बुजुर्गों से हमारी संस्कृति जानिये, यही जिन्दगी का सत्य है। फैंसी खाने की बजाय मौसम अनुरूप खाने की आदत डालें। सर्दी में साइंटिफिक कारण से पुराने जमाने में घरो मे डिलीवरी के बाद जच्चा बच्चा के कमरे में सिगड़ी लगाते थे ताकी उन्हे ताप से गर्मी मिले और अनसीन बैक्टीरिया खत्म हो। याद करे चूल्हे की रोटी का स्मोकी फ्लेवर और उस पर लगी हुई राख हमारे लिए एंटीबायोटिक का काम करती है।
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वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…