किसी भी एक वस्तु, बात या आदर्श की तुलना दूसरी वस्तु बात या आदर्शों से
नहीं करना चाहिए यहां तक की व्यक्ति ने स्वयं की तुलना दूसरों से भी नहीं
करना चाहिए या दूसरों की तुलना से स्वयं को नहीं आंकना चाहिए। तुलना यह
शब्द आपको महत्वकांक्षी भी बना सकता है और गलत धारणा होने पर यह आपको
विरोधी भी बना देगा या आप में राक्षसी गुण पैदा करवा देगा। अक्सर हम देखते
हैं कई मां-बाप अपने बच्चों की तुलना दूसरों के बच्चों से करते हैं और वह
भी बच्चों के सामने यह सब गलत है। सास अपनी बहू की तुलना दूसरे की बहू से
करती है यह भी गलत है। बाप अपने बेटे की तुलना दूसरों के बेटे से करते है
यह भी गलत है। बचपन से लेकर बड़े होने तक व्यक्ति कई बार इस तुलना शब्द के
आधार पर अपने आपको आकते आकते गुजरता है तो खुद ब खुद दूसरों से तुलना करना
उसकी आदत बन जाती है। तुलना यदि करना है तो आप अच्छाई के लिए ही करें कि वह
कितना अच्छा काम करता है और मैं क्या करता हूं पर यह तुलना मन में रखी
जाती है इसे व्यक्त नहीं करना चाहिए ना तो शिक्षक ने ना माता पिता ने ना
पति पत्नी है ना दादा दादी ने किसी ने भी किसी भी बात की तुलना व्यक्त नहीं
करना चाहिए क्योंकि तुलना कभी-कभी तो इंसान को देवता बना देगी और अधिकतर
गलत रास्ता बताने को प्रेरित करेगी। व्यक्ति ने अपने आप पर खुश रहना चाहिए
जो उसके पास है वहीं सर्वश्रेष्ठ है। अशोक मेहता, (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने
विचार है)
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