भारत एक संस्कृति प्रधान देश है एवं धार्मिक आस्था सभी में प्रदत है। और यह बहुत अच्छी बात है कि आप की संस्कृति में धर्म का स्थान प्रथम है। परंतु धीरे-धीरे धर्म की परिभाषा दिखावे में बदलती जा रही कुछ लोग अभी भी वास्तविक धर्म निभाते हैं और बहुत से लोगों का मानना मानवीय धर्म प्रथम है। हम अपनी संस्कृति के तौर पर रीति रिवाज परंपरा आदि कई बातों पर बहुत ज्यादा फालतू खर्च करते हैं और कई बार तो दिखावे के तौर पर यह खर्च करना पड़ता है जैसे मृत्यु भोज और इतना ही नहीं घर के किसी बुजुर्ग व्यक्ति की मृत्यु उपरांत उसकी याद में गिफ्ट बांटना यह सब बेमानी है यदि आपको खर्चा करना है तो व्यक्ति के जीते जी उसके सामने आप भोज रखे है गिफ्ट बाटे। उसी तरह शादी ब्याह में इतने सारे फंक्शन बिना वजह के बना देते हैं तमाम तामझाम और बेमानी खर्चे करते हैं जिसकी कोई हद नहीं यह सब खर्चा बचा कर यदि दूल्हा-दुल्हन को दे दिया जाए तो उनके भविष्य में वह पैसा बहुत काम आएगा। पैसे वालों को फर्क नहीं पड़ता पर मध्यम और निम्न आय वर्गीय ब्याज या उधार लेकर महज दिखाने के तौर पर खर्चा क्यो करते है। हर कल्चर में अलग-अलग रीति रिवाज बना दिए जबकी शादी सिर्फ दो दिलों का बंधन है और दो परिवार का मिलन। इसमें बार-बार रिश्तेदारों में लेनदेन करना यह सब कुछ ठीक नहीं है। हम धर्म के नाम पर भी बहुत दिखावा करते हैं बहुत बड़ा भारी खर्चे वाले बड़े बड़े कार्यक्रम करते हैं। जबकि सभी धर्म भगवान ने धन दौलत का त्याग कर मानवता के मसीहा बने। धन दौलत है तो मददगार बनिए।
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छत्तीसगढ़ राज्य ने सरकार की योजनाओं और कार्यों को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल तकनीक को अपना प्रमुख साधन बनाया है। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते…
वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…