नई दिल्ली। कोरोना के कारण इस बार दिवाली के पटाखों के प्रदूषण से कोरोना मरीजों में वृद्धि हो सकती है, इसलिए ईको दिवाली मनाने को प्रोत्साहित किया जा रहा है। दिवाली पर दीये जलाने की परंपरा है। लेकिन इस बार दीयों पर भी कोरोना की मार देखी जा रही है। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी 'वोकल फॉर लोकल' का संदेश दे चुके हैं, इसके बावजूद दीयों पर कोरोना का असर देखा जा रहा है। दीये बेचने वालों का कहना है कि इस बार पिछले साल के मुकाबले ग्राहक कम हैं। अनलॉक के दौरान दीये बनाने वालों को आशा थी कि ग्रीन दिवाली होने के कारण इस बार ग्राहक बढ़ेंगे, और उनकी जिंदगी पटरी पर लौटेगी। लेकिन हुआ इसके उलट।
कुम्हारों का कहना है कि इस बार मिट्टी के दीयों की बिक्री को महामारी ने काफी कम कर दिया है। हम बामुश्किल कोई लाभ कमा रहे हैं। यही हाल देश के अन्य राज्यों के कुम्हारों का भी है। कर्नाटक के कुम्हारों का कहना है कहना है कि मिट्टी के दीयों की बिक्री में इस साल बेहद गिरावट आई है। मध्य प्रदेश के कुम्हारों को भी ग्राहकों का इंतजार है। कुम्हार सुबह से शाम तक दीयों की बिक्री के लिए सड़क किनारे बैठ रहे हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग दीये खरीदने पहुंच रहे हैं। कुम्हारों का कहना है कि सालभर हमें दिवाली का इंतजार रहता है क्योंकि उनके बनाए दीए लोगों के घरों को रोशन करते हैं और उन दीयों से हुई कमाई से उनके घर चलते हैं।
दीयों की खरीद के लिए ग्रहक कम होने का कारण महंगाई भी माना जा सकता है। कोरोना के कारण ज्यादातर लोगों की नौकरियां चली गई हैं। काम धंधे भी ठप हैं। जिस कारण लोग कम खरीददारी कर रहे हैं। जानकारों के अनुसार- दूसरा, दीये बनाने वाली मिट्टी महंगी हुई है। जिस कारण लागत बढ़ने से दीयों की कीमत भी बढ़ी है। देश के कई राज्यों में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए अभी मंदिर नहीं खोले गए हैं। कई राज्य सरकारें दिवाली के बाद मंदिर खोलने पर विचार कर रही है। ऐसे में पूजा का सामान बेचने वाले व्यापारियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। दिवाली पर मंदिरों में पूजा-अर्चना की भी परंपरा है। मंदिर में दीया जलाने के बाद ही घरों में दीपमाला की जाती है।