सनातन हिंदू धर्म में कार्तिक मास पुण्यकारी माना जाता है। इसे धर्म का महीना भी कहा जाता है, क्योंकि इस महीने कई बड़े तीज-त्योहार आते हैं। हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार दीवाली शनिवार (24 नवंबर 2022) को हो चुका है।
इस माह में दीपदान का महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इस महीने की गई प्रार्थना सीधे देवी-देवता तक पहुंचती है, इसके चलते इस माह को मोक्ष का द्वार भी कहते हैं।
तुलसी विवाह एवं देव उठनी ग्यारस - कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु चार महीने सोने के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन से शादी ब्याह शुरू हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के अलावा दान पुण्य करने का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु जी और देवी लक्ष्मी जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
कुछ मान्यताओ के अनुसार कहा जाता है शंखासुर नामक एक राक्षस हुआ करता था उसने तीनो लोको में इतना आतंक मचाया हुआ था कि देवतागण उस राक्षस के भय से भगवान विष्णु के पास गए और राक्षस से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना कि तब जाकर भगवान विष्णु ने शंखासुर से युद्ध किया युद्ध बड़े लम्बे समय तक चला, तब शंखासुर का विनाश करने के बाद भगवान विष्णु काफी थक गए थे तभी उन्होंने क्षीर सागर में लम्बे समय तक शयन किये, चार माह शयन करने के बाद भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु निंद्रा से जागे, तभी से देवताओं ने इस अवसर पर भगवान विष्णु कि पूजा कि- और इसी कारण से एकादशी पर्व मनाया जाता है पर इस बात में कितनी सत्यता है यह आप स्वय अपने विवेक से तय करे
इन दिनों गन्नो का भी बहुत प्रचलन है इस दिन महिला हो या पुरुष इन्हें व्रत रखना चाहिए है और विधिवत रूप से गन्ने का मंडप बनाकर भगवान विष्णु कि पूजा करना चाहिए, और पूजा में तुलसी के पत्ते प्रयोग में लाना चाहिए. ध्यान रहे जो लोग व्रत रखते है उन्हें तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए.
आपको बता दे, इस एकादशी वाले दिन ही तुलसी विवाह होता है। इस दिन संसार का जो भी व्यक्ति माता तुलसी का विवाह शालीग्राम (विष्णु जी) के साथ करवाता है। उसके पिछले जन्म में सभी पाप नष्ट हो जाते है। तथा इस जीवन में वह सुख- वैभव की जिदंगी पाकर अंत को भगवान के चरण कमलो में स्थान प्राप्त करता है।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
•देवउठनी एकादशी का व्रत रखने वाले सभी को प्रात: जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर भगवान सूर्य को पानी चढा़ऐ।
•जिसके बाद पीपल व तुलसी माता के पेड़ में भी पानी चढ़ाऐ।
•इस व्रत वाले दिन भगवान विष्णु जी की पूजा का विधान है तो इसी कारण पूरे दिन व्रत का संकल्प ले।
•शाम को पूजा के समय एक जगह पर साफ-सफाई करके मिट्टी से लिपे, जिसके बाद उस स्थान पर रंग व आटे से रंगोली बनाऐ।
•जिसके ऊपर घी के 11 दीपक देवताओ के नाम से तथा अपने ईष्ट देवता के नाम का जलाए।
•अब गन्ने का एक मंडप बनाए और उसमें भगवान विष्णु जी की मूर्ति को रखे।
•इसके बाद भगवान विष्णु जी को तिलक करे और गन्ना, सिंघाड़ा, लड्डू, पतासे, मूली, गाजर, बेर, पुष्प, रौली व मौली, चावल, अगरबत्ती, सृजन के पुष्प व फली, धतूरा आदि चढ़ाकर पूर्ण रूप से पूजाक करे।
•जिसके बाद व्रत रखने वाले सभी देवउठनी एकादशी व्रत की कथा सुने, जिसके बाद आरती करके प्रसाद सभी को वितरण करे।
देवउठनी एकादशी व्रत के नियम
कुछ लोगो के अनुसार पौराणिक व धार्मिक मान्यताओ के अनुसार किसी भी एकादशी व्रत वाले दिन चावल खाना वर्जित है। जो पूरी 24 एकादशीया है सभी में यह नियम होता है साथ ही खान-पीन के साथ सात्विकता का पालन करना होता है।
इस दिन व्रत रखने वालो को ब्रह्माचार्य का पालन करना चाहिए तथा पूरी दिन भर भगवान जी का नाम का जप करना चाहिए। जिससे व्यक्ति हो शांति प्राप्त होगी। हो सके तो इस दिन गंगा नदी या गंगा जल से स्नान जरूर करे।
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार इस एकादशी को सभी एकादशीयो में से सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जिसका उल्लेख महाभारत जैसे ग्रंथ में मिलता है। क्योकि उस काल में सम्राट युधिष्ठिर जी ने भगवान श्री कृष्णजी से इस एकादशी व्रत के बारे में पूछा था। जिसके बाद राजा युधिष्ठिर ने इस व्रत को विधिवत रूप से किया। जिसके कारण उसको सभी पापों से मुक्ति मिल गई। और अंत में वह मानव शरीर से ही स्वर्ग लोक में प्रवेश किया था।
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