फ्री में प्लाट बांटना नीतिगत गलत और भी बहुत सी गलत नीतियां
Updated on
07-01-2023 05:09 PM
मिडिल क्लास, छोटे मोटै दुकानदार व व्यापार करने वाले, छोटी फैक्ट्रियां, सिटी में रहने वाले सभी मकान और दुकान वाले, गोडाउन व फैक्ट्री वाले सेंट्रल एवं स्टेट गवर्नमेंट और स्थानीय निकाय जैसे नगर निगम आदि को एक बड़ी भारी राशि का टैक्स देते हैं और सरकार अपने वोट बैंक को बनाने के लिए उस राशि का क्या क्या उपयोग करते हैं इस बारे में आपका ध्यान खींचना चाहूंगा।
कमजोर वर्ग (जबकि एक मजदूर ₹ चार-पांच सौ से कम में नहीं आता है) को देने के लिए एक रुपए किलो या दो रुपए किलो में गेहूं चावल दाल आदि बांटती है। झुग्गी झोपड़ी वालों को मिनिमम बिजली बिल। चुनाव पर किसानों के बिजली बिल माफी। सरकारी जमीन या रोड के किनारे कब्जा कर जिनके टापरे बने हैं उन्हें पट्टा दे देना या फिर वहां से हटाने पर उन्हें फ्लैट बनाकर दे देना। कहने का मतलब है कि सरकार जो टैक्स आप से विकास के नाम पर ले रही है उसमें से काफी राशि अपने वोट बैंक बनाने के लिए लुटा रही। बच्चों को स्कूल फीस, साइकिल, कॉपी किताब, कहीं-कहीं तो ड्रेस है यह सब मुफ्त में दे रही हैं। कॉलेज के विद्यार्थियों को लैपटॉप या टेबलेट मुफ्त में बांटना। *कड़ी मेहनत की कमाई से लोग टैक्स भरते हैं और उसका काफी हिस्सा सरकार अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए लुटा रही,* बाकी पैसे में से नेता अधिकारी ठेकेदार सब जानते हैं कि इनकी मिलीभगत काकस के कारण यदि 100 करोड़ का ठेका है तो वास्तविकता में वह काम 50-60 करोड़ में भी हो सकता है लेकिन 100 करोड़ रुपए में से करीब-करीब 40-50 करोड़ रुपए भ्रष्टाचार व मुनाफे की भेंट चढ़ जाते हैं। सरकारी खर्च पर बड़ी-बड़ी सभाए बड़े-बड़े पंडाल और जितने भी दूसरे आयोजन करती है उसमें सरकार आम जनता से भी चंदा लेती तो उन्हें कहीं ना कहीं ओबलाइज भी करेगी। ऐसे में देश के नागरिक ऐसे सत्ताधारी से क्या अपेक्षा रखे, *बरसों से गरीबी मिटायेंगे सुनते आ रहे हैं परंतु वास्तविकता मे गरीब बढ़ते जा रहे हैं।* लाखों करोड़ों रुपया परिवार नियोजन के नाम पर खर्च किए गए लेकिन जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है। लाखों-करोड़ों पेड़ वन विभाग व अन्य विभागों द्वारा लगाने का दावा करते हैं लेकिन जंगल छोटे होते जा रहे हैं। बड़े शहरों में निवेश के लिए कई औद्योगिक घराने को आमंत्रित करते हैं, उनके आने जाने वाले मार्ग को सजाने में लाखों रुपए खर्च करते है। सरकार उन अरबपतियों को क्या समझती है कि वह सुंदर सड़के व डेकोरेशन को देखकर इन्वेस्ट करेंगे ? अरे जो बड़ा व्यापारी है उसको हर जगह की माहिती होती कि किस शहर में क्या चल रहा है। सरकार हर बार अरबों खरबों रुपए इन्वेस्ट होने का दावा करती है पर सब गलत साबित होता है। आप भी सुन सुन थक जाएंगे और चिंतक लिखते लिखते थक जाएंगे, *कई बार डर भी लगता है कि सरकार के खिलाफ ज्यादा मत बोलो किसी का दिमाग घूम गया तो आपसे इतना बदला लेगे कि भविष्य में सच लिखने बोलने वाला दुबक जाएंगे।*
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