पृथ्वी गोल है और निरंतर घूम रही है उत्तर और दक्षिण तो ठीक है पर पूरब और पश्चिम के स्थायित्व को हम कैसे परिभाषित करेंगे। यदि हम जगह के स्थायित्व पर जाए तो जो हमारे लिए पूर्व है वह किसी और के लिए पश्चिम है। यदि अपने ऊपर से या चलने फिरने वाले अपने शरीर से दिशा का निर्धारण करें तो दिशा भी हमारे साथ घूम रही है ऐसा ही हम माने तब तो जो वास्तु पर बात करते हैं आज वह ठीक है। क्योंकि जो अभी पूर्व है वह रात तक पश्चिम हो जाएगा और जो रात में पूर्व है वह सुबह तक पश्चिम हो जाएगा। हां पर हम पृथ्वी पर खड़े हैं तो हमारे साथ जो दिशा निर्धारित होती है वह चलती रहेगी। उत्तर दक्षिण ठीक है पर पूरब पश्चिम दिशाओं में 15 डिग्री तक का अंतर आ सकता है क्योंकि 15 डिग्री तक पृथ्वी भी आपके कक्ष से अलग घूमती है। अतः यह कट्टरता भी गलत है पूरब से ही घर मैं प्रवेश हो। मेरा व्यक्तिगत सुझाव वास्तु की परिभाषा में यह है कि मकान में धूप और हवा का संचार बराबर होना चाहिए इस बात का ध्यान रखें हमारे यहां पश्चिम दक्षिण हवा चलती है तो जिस कमरे में हम ज्यादा से ज्यादा रहते हैं उसे उसी दिशा में खिड़कियां रखें जहां से ज्यादा में ज्यादा हवा का प्रवेश हो और सूरज की रोशनी आती रहे ऐसा प्रबंध होना चाहिए। पानी शुद्ध पीने को मिले। एक कहावत भी है चलो बाहर निकलो थोड़ा हवा पानी बदलो तो सेहत ठीक रहेगी।
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