दमोह विधानसभा उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस द्वारा एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी 2018 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 15.54 प्रतिशत कम मतदान होने के कारण भले ऊपर से भाजपा और कांग्रेस के नेता सामान्य दिख रहे हों और अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हों लेकिन अंदरखाने दोनों ही दल नतीजों को लेकर सशंकित हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि दोनों ही पार्टियां कम मतदान के कारणों पर चिंतन- मनन कर रही हैं कि आखिर इसका राजनीतिक फायदा किसे मिलेगा। वैसे सरसरी तौर पर भाजपा और कांग्रेस नेता तथा कार्यकर्ता कम मतदान का अर्थ अपने-अपने ढंग से निकाल रहे हैं और दोनों ही उपचुनाव जीतने का दावा कर रहे हैं। भाजपा उम्मीदवार राहुल लोधी का दावा है कि जनता ने विकास के लिए वोट दिया है और इस चुनाव में केवल विकास ही मुद्दा था इसलिए उनकी जीत पक्की है। कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन का दावा है कि दमोह की जनता ने बिकाऊ के नहीं टिकाऊ के पक्ष में जनादेश दिया है इसलिए वह ही चुनाव जीतने जा रहे हैं। जीत का दावा तो दोनों उम्मीदवार कर रहे हैं लेकिन जीत के प्रति कोई भी पूरी तरह से आश्वस्त नजर नहीं आ रहा है। मतदान के बाद मतगणना के बीच में एक पखवाड़े का फासला है और तब तक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से जीत हार का गणित लगाती रहेंगी तथा कम मतदान का गणित समझने की कोशिश करेंगी। भाजपा और कांग्रेस के साथ दमोह में दोनों पार्टियों के नेता और कार्यकर्ताओं को 2 मई का इंतजार बड़ी बेसब्री से है क्योंकि ईवीएम के खुलने पर ही यह खुलासा होगा कि कम मतदान ने भाजपा के राहुल सिंह लोधी या कांग्रेस के अजय टंडन में से किसकी विधानसभा में पहुंचने की मुराद पूरी की। तब तक तो केवल अनुमानों के घोड़े ही उम्मीदवार दौड़ा कर जीत के सपने देखते हुए खुश होते रहेंगे।
कम मतदान ने अपने आपको चुनावी राजनीति का पंडित मानने वालों के अनुमान गड़बड़ा दिए हैं। वैसे यह फॉर्मूला अब कोई विशेष मायने नहीं रखता कि कम मतदान या अधिक मतदान पक्ष या विपक्ष को लाभ पहुंचाने वाला होता है। कई बार चुनावी पंडितों का यह अनुमान सही नहीं निकला है कि अधिक मतदान सत्ता परिवर्तन का सूचक होता है। भारी मतदान में कभी-कभी सत्तारूढ़ दल भी बड़े बहुमत से चुनाव जीत जाता है और सामान्य मतदान में भी सत्ताधारी दल की जीत हुई है। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस पार्टी जो पिछला विधानसभा चुनाव भारी मतदान के बाद मात्र 798 मतों के अंतर से जीत पाई थी वह दावा कर रही है कि इस उपचुनाव में कम मतदान उसके पक्ष में हैं।
महिला मतदाताओं की उदासीनता
इस उपचुनाव में महिला मतदाताओं की मतदान के प्रति उदासीनता नजर आई। पुरुष मतदाताओं की तुलना में बड़ी गिरावट हुई है। 17 अप्रैल को कुल मतदान 59.81 प्रतिशत हुआ है। 2018 के चुनाव में मतदान का प्रतिशत 75.27 था। दमोह विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाता लगभग 2 लाख 40 हजार के आसपास हैं जिनमें महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 15 हजार 455 है और उनमें से 60 हजार 770 ने अपने मताधिकार का उपयोग किया है जो कि 52.64 प्रतिशत होता है जबकि पुरुष मतदाताओं का मतदान प्रतिशत 66.47 रहा है। इस प्रकार पुरुषों की तुलना में 14 प्रतिशत कम महिला मतदाताओं ने मतदान किया है। भाजपा का दमोह विधानसभा क्षेत्र मजबूत गढ़ रहा है और 1990 से चुनाव नतीजे देखे जाएं तो पूर्व मंत्री जयंत मलैया 1990 से लेकर 2018 तक क्षेत्र के विधायक रहे हैं और 2018 का विधानसभा चुनाव वह कांग्रेस के राहुल लोधी से 798 मतों के अंतर से हार गए थे। 2008 का विधानसभा चुनाव जयंत मलैया बड़ी मुश्किल से 130 मतों से ही जीत पाए थे। बुंदेलखंड अंचल का एक महत्वपूर्ण जिला मुख्यालय दमोह है और भाजपा की प्रदेश में दूसरी मुख्यमंत्री रही उमा भारती इस इलाके से आती हैं और इस क्षेत्र के मतदाताओं पर उनका अच्छा खासा असर है। उमा भारती ने राहुल लोधी के पक्ष में प्रचार भी किया था और क्षेत्रीय सांसद एवं केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की भी इस इलाके में अच्छी खासी पैठ है तथा उन्होंने काफी प्रचार किया है। प्रदेश में सामाजिक सरोकारों के चलते बनाए गए रिश्तों के कारण महिला मतदाताओं के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता लाडली लक्ष्मी, कन्यादान योजनाओं के कारण अत्याधिक है। चुनाव प्रचार के दौरान शिवराज ने महिला मतदाताओं को पार्टी से जोड़े रखने के मकसद से इस बात का जोरशोर से प्रचार किया था कि 15 माह की कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने महिलाओं के हितों से जुड़ी उनकी सरकार के दौरान चालू की गई समस्त योजनाओं को बंद कर दिया था। प्रत्येक चुनाव में महिला मतदाताओं को साधने की रणनीति भाजपा की रहती है तथा पुरुषों की तुलना में महिला मतदाताओं का अधिक मतदान होता है तो फिर वह अपनी जीत के प्रति कुछ अधिक आश्वस्त हो जाती है। पुरुष मतदाताओं की तुलना में 22 हजार कम महिलाओं ने मतदान किया है। मतगणना से ही यह पता चल सकेगा कि मतदान के प्रति महिला मतदाताओं की उदासीनता का चुनाव परिणामों पर कितना असर पड़ा है। इसके साथ ही कुल मतदान भी 15.46 प्रतिशत कम हुआ है और मतदाता की उदासीनता का कारण कोरोना संक्रमण का भय था या प्रतिबद्ध मतदाताओं में उदासीनता थी यह भी मतगणना के बाद निकलने वाले चुनाव नतीजे से ही पता चलेगा।
और अंत में..............
कम मतदान के बारे में पार्टी नेताओं के अपने-अपने तर्क हैं । जहां एक और भाजपा के प्रदेश संवाद प्रमुख लोकेंद्र पाराशर का कहना है कि कोरोना के कारण कम लोग घरों से निकले हैं तथा भाजपा का समर्पित कार्यकर्ता ही निकला है इसलिए कम मतदान के बाद भी भाजपा उम्मीदवार राहुल लोधी की जीत तय है। तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री केके मिश्रा का तर्क है कि इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार की जीत पक्की है क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बार-बार की गई इस अपील के बाद भी कि मतदाता बड़ी संख्या में निकलें और भाजपा उम्मीदवार को जिताएं फिर भी मतदान का कम होना कांग्रेस के पक्ष में जाता है और पार्टी के उम्मीदवार अजय टंडन ही चुनाव जीतेंगे। कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि भाजपा के वोटर ने वोट नहीं डाला क्योंकि वह सरकार से नाराज है इसलिए उपचुनाव में कांग्रेस ही जीतेगी। ईवीएम से जब जनादेश बाहर आएगा तब अपने आप यह पता चल जाएगा कि किसके दावे में कितना था दम।
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