दमोह उपचुनाव: आखिर किस भूमिका में हैं ज्योतिरादित्य ?
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08-04-2021 12:50 PM
दमोह विधानसभा उपचुनाव में चुनाव प्रचार अभियान गति पकड़ चुका है और अब चरम पर पहुंचने के बाद इस अभियान के समाप्त होने में मात्र 8 दिन और शेष बचे हैं लेकिन अभी तक भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया किस भूमिका में हैं इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। पिछले साल याने छह माह पूर्व हुए मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव में मुख्य भूमिका में रहने वाले राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया आखिरकार दमोह के चुनावी रण में अभी तक नजर नहीं आए हैं। इसलिए यह क्यास लगाए जा रहे हैं कि आखिर उनकी इस क्षेत्र में क्या भूमिका रहने वाली है? भाजपा ने उन्हें मुख्य भूमिका से दूर रखा है ऐसी चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में चल रही हैं। भाजपा में आखिर सिंधिया की क्या भूमिका है और क्या कांग्रेस छोड़कर जाने के बाद उन्हें वह केंद्रीय भूमिका नहीं मिली है जो कांग्रेस में रहते हुए मिलती थी। सिंधिया की भूमिका को लेकर शायद जितना उनके समर्थक चिंतित नहीं हैं उससे कई गुना ज्यादा चिंता इन दिनों कांग्रेसी खेमे में सिंधिया के साथ हो रहे कथित उपेक्षापूर्ण व्यवहार को लेकर नजर आ रही है। दमोह सीट को वापस भाजपा के खाते में लाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मुख्य भूमिका में हैं और चुनाव की रणनीति भी शिवराज खुद ही बना रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा तो शिवराज की रणनीति मैदान में साकार करने के लिए दमोह में जमे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ आज 7 अप्रैल को कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन के पक्ष में दो चुनावी सभा संबोधित कर भोपाल लौट आए हैं, जबकि भाजपा अध्यक्ष शर्मा प्रत्येक पोलिंग बूथ पर भाजपा को बढ़त मिले इसकी रणनीति वहीं रहकर उस पर अमल करने के लिए कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर रहे हैं।
दमोह चुनाव में भी कांग्रेस की रणनीति अभी तक बिकाऊ बनाम टिकाऊ पर ही केंद्रित नजर आ रही है और कांग्रेस इस मुद्दे को छोड़ना भी नहीं चाहती क्योंकि कमलनाथ की सरकार का पतन दलबदल के कारण हुआ था। यदि एक साल पहले के घटनाक्रम पर नजर डाली जाए तो उसकी शुरुआत भी बुंदेलखंड से ही हुई थी। बुंदेलखंड में ही सिंधिया ने वह डायलॉग बोला था जो आगे चलकर कमलनाथ सरकार के पतन का कारण बना और वह था 'तो सड़क पर उतर जाऊंगा '।टीकमगढ़ जिला वह जगह थी जहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा दिए गए एक बयान के कारण प्रदेश की पूरी राजनीति बदल गई। बीते वर्ष तेरह फरवरी को टीकमगढ़ जिले के ग्राम कुडीला में संत रविदास जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में सिंधिया ने अतिथि शिक्षकों से उनकी मांग के बारे में संबोधित करते हुए कहा था कि कांग्रेस पार्टी ने अपने वचनपत्र में जो वायदा किया है, वह पूरा न हुआ तो वे भी उनके समर्थन में सड़क पर उतर जाएंगे। बात सामान्य ढंग से कही गई थी ,लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के जवाब ने दोनों नेताओं के बीच के रिश्तों में और अधिक कटुता घोल दी थी। कमलनाथ ने जवाब में कहा कि उतरना है तो उतर जाएं। इस जवाब के कुछ दिन बाद ही सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी और विधानसभा में कांग्रेस का संख्या बल कम हो जाने के कारण कमलनाथ सरकार का पतन हो गया था।
बुंदेलखंड की राजनीति में सिंधिया का दखल
सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दमोह उपचुनाव में मुख्य भूमिका में नहीं रहने को रहकर एक तर्क यह दिया जा रहा है कि सिंधिया राज परिवार का राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र ग्वालियर-चंबल अंचल के अलावा मालवा, मध्य भारत के कुछ इलाकों तक सीमित रहा है तथा बुंदेलखंड अंचल की राजनीति में उनका प्रभाव क्षेत्र ना के बराबर है। यह बात अलग है कि सिंधिया की छवि चमकदार है और जनता के बीच भी उनके नाम का ग्लैमर है। बुंदेलखंड अंचल में परिवहन एवं राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत सिंधिया का चेहरा माने जाते हैं। राजपूत उन 22 विधायकों में थे, जिन्होंने पिछले साल मार्च में सिंधिया के साथ कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया था। छह माह पूर्व हुए विधानसभा के उपचुनाव में सिंधिया भाजपा में प्रचार का सबसे बड़ा चेहरा थे और कमलनाथ तथा कांग्रेस के आरोपों के केन्द्र में भी सिंधिया ही थे। जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हुए थे उनमें गोविंद राजपूत के निर्वाचन क्षेत्र सुरखी के अलावा छतरपुर जिले का बड़ा मलहरा विधानसभा क्षेत्र भी था। दमोह में उपचुनाव कांग्रेस विधायक राहुल लोधी के इस्तीफे के कारण हो रहे हैं। राहुल लोधी ने अक्टूबर में इस्तीफा दिया था।
भाजपा में कद्दावर नेताओं की भरमार
दमोह विधानसभा की सीट पर उपचुनाव के लिए भाजपा की ओर से स्टार प्रचारकों की सूची में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भी है। इसमें भी उनके क्रम को लेकर कांग्रेस ने तंज किया था।दमोह में 17 अप्रैल को वोट डाले जाना है। कांग्रेस छोड़ने वाले विधायक राहुल लोधी भाजपा उम्मीदवार हैं। राहुल लोधी के समर्थन में भाजपा ने बुंदेलखंड के हर छोटे-बड़े दिग्गज नेता को प्रचार में उतारा है। नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह और लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव को चुनाव क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया है। दमोह केंद्रीय पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल का निर्वाचन क्षेत्र है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का भी अच्छा खासा असर इस सीट पर है। दमोह पार्टी के कद्दावर नेता पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया का निर्वाचन क्षेत्र रहा है। तीन दशक से इस सीट पर वे लगातार चुनाव जीत रहे हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में मलैया, राहुल लोधी से 758 वोटों से चुनाव हार गए थे। भाजपा इस उपचुनाव में हार का कोई खतरा नहीं उठाना चाहती है इसलिए हर उस नेता का उपयोग कर रही है, जो चुनाव जिताने में सहायक हो सकते हैं। भाजपा प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि सिंधिया को प्रचार के लिए कब भेजना है, यह पार्टी को तय करना है।
दमोह विधानसभा के उपचुनाव को लेकर कांग्रेस की कोई खास रणनीति अब तक सामने नहीं आई है। प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रचार के लिए जिन नेताओं की सूची जारी की है उसमें भी खुद की पसंद का विशेष ख्याल रखा है। दिग्विजय सिंह समर्थक नेताओं को अलग रखने की कोशिश की गई है। कमलनाथ की रणनीति ऐसे लोगों को आगे रखने की है जो कि सिंधिया के लिए कटु से कटु शब्दों का उपयोग कर छवि को धूमिल कर सकें। कांग्रेस लगातार यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि भाजपा में जाने के बाद सिंधिया की पूछ-परख कम हो गई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा कहते हैं कि भाजपा के लिए अब सिंधिया महत्वपूर्ण नहीं रहे हैं।
और अंत में...........
दमोह में कल 8 अप्रैल को राहुल सिंह लोधी के समर्थन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश प्रभारी बी मुरलीधर राव भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती केंद्रीय मंत्री प्रहलाद तथा वरिष्ठ नेतागण चुनाव सभाओं को संबोधित करेंगे । बांसा तारखेड़ा में चुनाव सभा को संबोधित करेंगे ।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने दमोह में कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन के समर्थन में आज दो चुनावी सभा को संबोधित किया। कमलनाथ का मुख्य केंद्रीय स्वर यही था कि दमोह में किसी सांसद या विधायक का निधन नहीं बल्कि प्रजातंत्र का निधन हुआ है और इस सच्चाई को सबको समझना होगा तथा इसका जवाब भाजपा से लेना होगा। इससे भी साफ होता है कि कांग्रेस दलबदल को ही मुद्दा बनाते हुए बिकाऊ बनाम टिकाऊ के नारे पर चुनाव मैदान में है।
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