75 की आज़ादी में भारत ने और कुछ खोया-पाया न हो सभ्यता के रूप में परिभाषित संस्कार ज़रूर खो दिए है, कितनी विचित्र विडंबना थी कि जिस समय देश की नयी संसद देश को समर्पित करने की प्रक्रिया चल रही थी, उसी दौरान दिल्ली पुलिस जंतर-मंतर पर धरना दे रहे देश का मान बढ़ाने वाले पहलवानों व उनके समर्थकों को बलपूर्वक हटा रही थी। इसके मूल में महिला पहलवानों के साथ हुई अभद्रता है। वो भी उस व्यक्ति द्वारा जिसके राजनीतिक दल के दर्शन में नारी को देवी के रूप में सम्मान उल्लेखित है।
इतना ही नहीं, इन महिला और पुरुष पहलवानों के खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। दूसरी ओर कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे व भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई की मांग जहां की तहां है । इन नामचीन पहलवानों ने पुलिस पर बुरा व्यवहार करने का आरोप लगाया है। पुलिस ने देर रात महिला पहलवानों विनेश फोगाट, साक्षी मलिक व संगीता फोगाट को छोड़ दिया था । दरअसल, महिला पहलवानों के समर्थन में हुई खाप पंचायत ने नवनिर्मित संसद भवन के उद्घाटन वाले दिन दिल्ली में महिला महापंचायत करने का आह्वान किया था, जिसे चुनौती मानते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये थे। पुलिस की दलील थी कि जिन लोगों ने बैरिकेड तोड़कर आगे जाने की कोशिश की उन्हें हटाकर दूसरी जगह ले जाया गया। इस कार्रवाई के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन का आह्वान किया था। बाद में किसानों ने चेताया कि आगामी पंचायत में पहलवानों का मुद्दा शामिल किया जायेगा। उल्लेखनीय है कि महिला पहलवानों ने इस मामले में प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की थी। विडंबना यह है कि केंद्र सरकार के किसी भी मंत्री ने इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जिससे पिछली 23 अप्रैल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों को संबल मिल सके।
इस साल की शुरुआत में भी पहलवानों ने दबंग सांसद व कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ प्रदर्शन किया था, जिस पर महिला पहलवानों ने यौन शोषण, वित्तीय अनियमितताओं, बुरे व्यवहार से जुड़े गंभीर आरोप लगाये थे। यह भी कि वह महिला पहलवानों की निजी जिंदगी में दखल देते हैं और परेशान करते हैं ।तब बृजभूषण शरण सिंह ने भी दलील दी थी कि यदि यौन शोषण के आरोप सत्य साबित होते हैं तो वे फांसी पर लटकने को तैयार हैं। जनवरी में पहली बार हुए धरने के बाद केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने पहलवानों से मुलाकात करके जांच के लिये पांच सदस्यीय निरीक्षण समिति बनाने की घोषणा की थी। मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम की अध्यक्षता वाली इस कमेटी में ओलंपिक पदक विजेता पहलवान योगेश्वर दत्त भी शामिल थे। बाद में पहलवान बबीता फोगाट को भी इस समिति में शामिल किया गया था। लेकिन सवाल उठे कि छह हफ्ते में रिपोर्ट देने की बाध्यता के बावजूद तीन महीने बाद भी जांच और उसके निष्कर्ष सामने क्यों नहीं आये? पहलवानों ने जब दूसरी बार धरना दिया उसके बाद पुलिस में भी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ शिकायत की गई। बाद में शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप से पुलिस ने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की। सवाल सरकार की संवेदनहीनता को लेकर हैं। आखिर क्यों केंद्र सरकार छह बार के सांसद रहे दबंग भाजपा नेता के खिलाफ कार्रवाई से कतरा रही है? क्या पहलवानों के पास वे साक्ष्य हैं, जो साबित कर सकें कि बृजभूषण शरण सिंह दोषी है? वैसे तो देश के लिये विश्व स्पर्धाओं में पदक जीतने वाली महिला पहलवानों के धरने पर बैठने की नौबत नहीं आनी चाहिए थी। निश्चित रूप से इस घटनाक्रम का देश में अच्छा संदेश नहीं गया। कमोबेश यही स्थिति विश्व में भारत की छवि को लेकर भी है। आखिर क्यों समय रहते खिलाड़ियों की बात को संवेदनशील ढंग से सुनकर नीर-क्षीर विवेक से न्याय करने की कोशिश नहीं की गई?
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