कहते हैं कि व्यक्ति का रहन सहन और कपड़े पहनने का ढंग उसकी मानसिक स्थिति को दर्शाता हैं। पर जब से फैशन नाम की चीज है आई उसने युवा पीढ़ी तो ठीक है पूरे विश्व में सभी को संस्कृति से गुमराह कर दिया। आपने परिवर्तन देखे होंगे बालों की कटिंग से कोई पीछे बालो का गुच्छा रखता है तो कोई बाल आड़े तिरछे कटा लेता है। आपने देखा होगा फटी जींस पहने लड़के और लड़की अपने आप में बड़ा गर्व महसूस कर रहे हैं। आपने देखा होगा पेंट शर्ट जूते सभी अलग-अलग कलर के। आपने टीवी पर कई फैशन शो देखे होंगे और उन फैशन शो में जो मॉडल की ड्रेसेस आपने देखी होगी कई बार तो ऐसा लगता है कि यह ड्रेस कैसे कोई पहन सकता है पर बस ड्रेस डिजाइनर पॉपुलर हो गए। और हां अंट संट कटे बालों की कटिंग भी महंगी पार्लर से होती है। फटी हुई जींस भी आम जींस के बजाय महंगी मिलती है और फैशन के नाम पर आड़े तिरछे कपड़े भी सबसे महंगे बिकते हैं। क्या हो गया यह सब क्यों हो गया इसके लिए कौन जिम्मेदार है, युवा या घर के बुजुर्ग या सेलिब्रिटी खास करके फिल्म कलाकार और साथ में फैशन टीवी। अब सोचना यह है कि हम अपनी संस्कृति की पहचान कब करेंगे और कब वापस उसे अपनाएंगे। वरना आगे भी बच्चे माता को हाय माॅम पिता को हाय डैड और भाई को हाय ब्रो कहते दिखेंगे और बुजुर्ग को प्रणाम चरण स्पर्श करना भी भूल जाएंगे।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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