इस समय महाराष्ट्र में शिवसेना का संकट और मध्यप्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव की गहमागहमी पर लोगों की नजरें हैं। राजनीति में इन दिनों जुमलों और वायदों का अपना एक अलग ही महत्व हो गया है। पहले इस बात के कयास लग रहे थे कि क्या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा का दामन छोड़कर अपना नया आशियाना राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू यादव के राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव के साथ बसायेंगे। उस समय बिहार में यह जुमला आपसी बातचीत में काफी चल रहा था कि भाजपा और नीतीश के आपसी रिश्ते कितने ही तनावपूर्ण और कटु क्यों न हो जायें लेकिन भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव तक ना चाहते हुए भी नीतीश की पालकी उठाये रखेगी। उसी समय यह जुमला भी चल रहा था कि ‘कुर्मी को ताज और भूमिहार को राज‘। इस जुमले के पीछे जो हकीकत छुपी थी वह यही थी कि भले ही ताज नीतीश के सिर पर हो लेकिन असली राज तो भाजपा के सबसे बड़े वोट बैंक भूमिहार का ही चल रहा है। भले ही कुछ समय के लिए तेजस्वी यादव मुंगेरीलाल के हसीन सपनों जैसे सपने देखने लगे हों लेकिन नीतीश ने राष्ट्रपति के चुनाव में द्रोपदी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक संकट की ओर देखा जाए तो यह कहावत कुछ इस प्रकार सटीक बैठती है कि ‘शिवसेना को ताज और मराठों को राज‘, क्योंकि शिवसेना से बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों का यही आरोप है कि असली राज तो मराठा सरदार शरद पवार की एनसीपी का चल रहा है। वैसे भी यदि शिंदे विद्रोह नहीं करते तो भी शिवसेना के ताज के साथ ही राज तो मराठाओं का ही चल रहा था क्योंकि शिवसेना कोटे के ताकतवर मराठा मंत्री एकनाथ का राज चल ही रहा था। मध्यप्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के प्रथम चरण के जो अनाधिकृत चुनाव नतीजे सामने आये हैं उसके अनुसार मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस भावना को गंभीरता से ले लिया है जिसमें वह परिवारवाद से राजनीति को मुक्त करने का सूत्रवाक्य बोलते रहते हैं। इन चुनावों में मतदाताओं ने परिवारवाद को नकार दिया है विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के बेटे, मंत्री विजय शाह की बहन और कमलनाथ सरकार गिरते समय सुबह कांग्रेस में और शाम को भाजपा का समर्थन करने वाले निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा की बेटी और बहू पंचायत चुनाव हार गये। चूंकि यह चुनाव पार्टी लाइन पर नहीं हुए इसलिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी जीत का बढ़-चढ़ कर दावा कर रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष गौतम के बेटे राहुल जिला पंचायत सदस्य का चुनाव कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी पद्मेश गौतम से हार गये। राहुल को भाजपा का समर्थन होने और स्वयं स्पीकर के मैदान संभालने की वजह से चुनाव रोमांचक हो गया था। उनके परिवार ने भी जमकर प्रचार किया था। बुरहानपुर के निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा की बेटी जयश्री ठाकुर जिला पंचायत सदस्य का चुनाव और उनकी बहू अभिलाषा ठाकुर जनपद सदस्य का चुनाव हार गयीं। मंत्री विजय शाह की बहन नरसिंहपुर जिले से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गयीं जबकि विजय शाह नरसिंहपुर जिले के ही प्रभारी मंत्री हैं। अभी विजय शाह के बेटे दिव्यादित्य का चुनाव नतीजा आना बाकी है। इसी प्रकार दोनों ही दलों के असरदार नेताओं व विधायकों के नाते-रिश्तेदार इन चुनावों में हारते नजर आ रहे हैं। स्पीकर के बेटे ही नहीं हारे अपितु रीवा जिले में भाजपा विधायक पंचूलाल प्रजापति की पत्नी और पूर्व विधायक पन्नाबाई प्रजापति जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गयीं। इसी तरह भाजपा महिला मोर्चे की जिलाध्यक्ष संतोष सिंह सिसोदिया जनपद सदस्य तथा हनुमना मंडल के भाजपा के अध्यक्ष पंच पद का चुनाव हार गये हैं। यह रुझान क्या कहते हैं इसका संकेत समझने वाले समझ गये हैं और जो ना समझे वो अनाड़ी है।
अरुण पटेल,लेखक, प्रधान संपादक (ये लेख़क के अपने विचार है)
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