अभी तक तो यह देखने में आया है कि जहां जहां भी चुनाव होना होते हैं वहां कोरोनावायरस असर कम कर देता है या छोड़ देता है। और जैसे ही चुनाव खत्म होते हैं वह फिर लौट आता है और कहीं कही तो इस कदर लौटता है कि सब को डरा देता है। कई जान ले लेता है। मध्यप्रदेश में फिर नगर निगम व स्थाई निकायों के चुनाव होना है तो कोरोना ने शांति पकड़ ली। डर है कि चुनाव बाद वह फिर से सिर ना उठा ले। वैसे कोरोना को खत्म करने के सरकारी प्रयास खूब हो रहे हैं जोकि सराहनीय है पर कोरोना का इलाज, वैक्सीन आदी को लेकर कुछ भ्रांतियां लोग फैला रहे हैं उसे कौन दूर करेगा। लोग कहते नजर आते हैं कि सरकार गलत आंकड़े दे रही है मीडिया सच झूठ पकड़ने में रहते हैं कभी सच कभी झूठ पर यह गलतफहमी तो बरकरार है कि आंकड़े कभी गलत हो रहे है। ऐसे में प्रश्न विश्वसनीयता का आता है और विश्वसनीयता तभी स्थापित हो सकेगी कि जब सरकार डंके की चोट वास्तविकता जनता के सामने लाएं। हम ना तो वैज्ञानीक है ना सलाहकार सब सरकार के भरोसे हैं। वही मंथन करें और वास्तविकता में कोरोनावायरस की स्थिति समझते हुए चुनाव कराए या ना कराये इसका निर्णय करें।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, इंजीनियर) ये लेखक के अपने विचार है I
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