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राहुल की दोषसिद्धि पर रोक से कांग्रेसियों के हौसले बुलंद

Updated on 06-08-2023 10:24 AM
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को गुजरात की अदालत द्वारा दी गई दो साल की सजा के मामले में देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि पर रोक लगाने के साथ कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं का जोश हिमालयीन उछाल मारने लगा है। इस साल के अन्त में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ , राजस्थान और तेलंगाना के विधानसभा चुनावों में बुलंद हौसलों के साथ कांग्रेसजन अब अपना जौहर दिखाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देंगे। इन बुलंद हौसलों का कुछ न कुछ प्रभाव इन चुनावों पर पड़ने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। इसके साथ ही विपक्षी दलों का नया बना गठबंधन ‘इंडिया‘ को भी और जोश के साथ भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक प्रकार से संजीवनी बूटी हाथ लग गई है। कांग्रेस के नेताओं के साथ ही नये गठबंधन के सहयोगियों ने भी जिस ढंग से प्रतिक्रिया दी है उसको देखकर भी यह संकेत मिलता है कि अब वह अपनी एकजुटता को और अधिक मजबूती के साथ जनता के सामने रखकर चुनावी लड़ाइयां लड़ने की कोशिश करेंगे। कांग्रेस का प्रयास होगा कि वह राजस्थान में वहां की पिछले कुछ सालों से चली आ रही इस परिपाटी को तोड़ने की कोशिश करेगी कि कोई भी सत्तारुढ़ दल दोबारा चुनाव नहीं जीत पाया तो वहीं अब मध्यप्रदेश में भी भाजपा की राह रोकने के लिए कांग्रेस दमखम से लड़ाई लड़ेगी। इस फैसले के बाद कांग्रेस को कितनी और शक्ति मिली यह तो चुनाव नतीजों के बाद ही पता चल सकेगा लेकिन फिलहाल उसके हौसले काफी बुलंद हैं।
     ​अब राहुल की दोषसिद्धि पर तो रोक लग गयी है इसलिए एक ओर उनकी सांसदी बहाल होने व चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया, लेकिन अदालत ने अपने आदेश में जो कहा है उसका अपने-अपने ढंग व दृष्टिकोण से व्याख्या करते हुए कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे पर आरोपों की झड़ी लगाते नजर आयें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। फैसले के तत्काल बाद अपनी प्रतिक्रिया में राहुल गांधी ने कहा कि आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों सच की जीत होती ही है, कुछ भी हो मेरा फर्ज वही रहेगा, आइडिया आफ इंडिया की रक्षा करना। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी की जिस सजा पर रोक लगाई गई है वह 23 मार्च को मोदी सरनेम मामले में सूरत की कोर्ट ने उन्हें आपराधिक मानहानि का दोषी मानते हुए सुनाई थी, इसके अगले ही दिन उनकी लोकसभा सदस्यता चली गयी थी और अब 134 दिन के बाद ही सही जो फैसला आया है उससे उनकी सांसदी बहाल होने व चुनाव लड़ने का रास्ता तो साफ हो गया है। लेकिन कांग्रेस की नजर इस बात पर टिकी हुई है कि उनकी सांसदी बहाल होने में समय कितना लगता है और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के विरुद्ध लाये जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव की बहस में भाग ले पायेंगे या नहीं। कांग्रेस के सहयोगी दलों ने भी फैसले का स्वागत किया है और फैसला आते ही लोकसभा में कांग्रेस सांसदों के नेता अधिरंजन चौधरी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मिलकर राहुल गांधी की सदस्यता बहाल करने का आग्रह किया है। उत्साहित कांग्रेस की कोशिश  यह है कि राहुल की सदस्यता अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के पहले ही बहाल हो जाये। फिलहाल यह मामला अब लोकसभा अध्यक्ष के पाले में है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि राहुल गांधी को सांसद के रुप में अयोग्य करार देने में सिर्फ 24 घंटे लगे थे, सुप्रीम कोर्ट व संसद के बीच कुछ किमी की दूरी है, गुजरात तो दो-ढाई किमी दूर था, अब देखेंगे कि सांसदी बहाल कितने घंटे में की जाती है। इस विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए ने कोर्ट के फैसले को सत्य की जीत बताया है।
राहुल गांधी को अधिकतम सजा क्यों ?​
        ​सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कि सजा एक दिन भी कम होती तो सांसदी नहीं जाती, कहा कि राहुल को अधिकतम सजा क्यों दी गयी। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मानहानि के तहत अधिकतम दो साल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं। इस मामले में सूरत की ट्रायल कोर्ट ने अधिकतम सजा सुनाई थी। जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा है कि सजा पर रोक इस आधार पर लगाई गई है क्योंकि सूरत कोर्ट यह बताने में विफल रही है कि राहुल अधिकतम दो साल की सजा के हकदार क्यों थे। सजा की इस अवधि के चलते ही उन्हें लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया गया था और  सजा एक दिन भी कम होती तो वे अयोग्य नहीं होते। इस फैसले का असर सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं पड़ा बल्कि इससे उनके निर्वाचन क्षेत्र वायनॉड के मतदाताओं का अधिकार भी प्रभावित हुआ है इसलिए अंतिम फैसले तक दोषसिद्धि पर रोक लगी रहेगी। ध्यान देने योग्य बात है कि राहुल गांधी ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगने से इन्कार कर दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि उनकी टिप्पणी के कारण  आपराधिक मानहानि मामले में उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाई जाए। 2019 में 13 अप्रैल को कर्नाटक के कोलार में राहुल ने कहा था कि- ‘‘अच्छा एक छोटा का सवाल, इन सब चोरों के नाम मोदी कैसे हैं ? ललित मोदी, नीरव मोदी और थोड़ा ढूंढ़ेंगे तो सारे मोदी निकल आयेंगे। उसी के दो दिन बाद 15 अप्रैल को सूरत से भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने केस दायर किया था और 23 मार्च 2023 को सजा हुई तथा अगले दिन ही सांसदी चली गयी तथा बंगला खाली करने का नोटिस भी थमा दिया गया।
​लोकसभा के पूर्व महासचिव विवेक अग्निहोत्री का कहना है कि स्पीकर आदेश  मिलने पर फैसला लेंगे। तार्किकता यही है कि जिस तेजी से सदस्यता गई वैसे ही बहाल भी हो। लोकसभा सचिवालय सदस्यता बहाली की अधिसूचना जारी करेगा, तत्काल यदि ऐसा होता है तो राहुल लोकसभा के चल रहे सत्र में शामिल हो सकेंगे और उन्हें बंगला भी आवंटित होगा। राहुल गांधी के 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया है। अंतिम फैसला लंबित रहते हुए भी राहुल गांधी अगला लोकसभा चुनाव लड़ सकेंगे। जस्टिस गवई का कहना था कि गुजरात हाईकोर्ट के कुछ फैसले पढ़ने में दिलचस्प लगते हैं। इसी तरह का हाईकोर्ट की सिंगल बेंच का 125 पेज का फैसला है, जिसमें उसने याची  (राहुल ) गांधी  की सजा पर रोक से इन्कार किया और सांसद के तौर पर उनके आचरण के बारे में काफी नसीहतें दी लेकिन अधिकतम सजा देने के किसी भी कारण का उल्लेख नहीं किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि उनका  (राहुल) लहजा सही नहीं था। सार्वजनिक जीवन में रहने वाले व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है अब देखने वाली बात यही होगी कि सुप्रीम कोर्ट की नसीहत का भविष्य में राहुल के तरीके में कुछ अन्तर आता है या नहीं। इस मामले को अदालत में उठाने वाले पूर्णेश मोदी का कहना है कि वह सर्वोच्च न्यायालय का तो सम्मान करते हैं लेकिन अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे।
और यह भी
         ​एक ओर तो राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन ‘‘इंडिया‘‘ के नाम पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक नोटिस थमाते हुए केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और विपक्षी पार्टियों से उनका पक्ष स्पष्ट करने कहा है। विपक्षी पार्टियों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट्स इनक्लूसिव एलायंस यानी ‘‘इंडिया‘‘ के नाम को चुनौती देने वाली याचिका पर 21 अक्टूबर को सुनवाई होगी। उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट में गिरीश भारद्वाज ने इस मामले में एक याचिका दायर की थी। उनकी मांग थी कि 19 जुलाई को इस नाम के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए चुनाव आयोग से अपील की थी इस पर जस्टिस सतीष चन्द्र शर्मा और जस्टिस अमित महाजन की बेंच ने कहा कि चुनाव आयोग ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया इसलिए कोर्ट तक शिकायत आई जिसकी सुनवाई करना जरुरी है। याचिका में यह कहा गया है कि 2024 के चुनाव में फायदे के लिए ही राजनीतिक पार्टियों ने ‘‘इंडिया‘‘ नाम का उल्लेख किया है। 18 जुलाई को 26 विपक्षी पार्टियों ने बेगलूरु में बैठक की थी और उस बैठक में ही गठबंधन के लिए जो नाम तय किया था वह   ‘‘इंडिया‘‘ कहा गया। जबसे गठबंधन ने यह नाम रखा उसी समय से भाजपा की ओर से उसे लगातार निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि अब भाजपा इंडिया की जगह गठबंधन को यूपीए का विस्तारित स्वरुप मान रही है और वह यूपीए के कार्यकाल पर और अधिक आक्रामक होते हुए उसे ही निशाना बनाने जा रही है क्योंकि इस गठबंधन में अधिकांश वही दल शामिल हैं जो यूपीए में शाह मिल थे।
अरुण पटेल
-लेखक, संपादक


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