नई दिल्ली । बिहार विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस पश्चिम बंगाल में भी वामदलों के साथ गठबंधन को अंतिम रूप देने में जुट गई है। पश्चिम बंगाल में यह दूसरी बार होगा, जब दोनों पार्टियां गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ेंगी। हालांकि, दोनों के बीच अभी सीट का बंटवारा नहीं हुआ है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस अपना वजूद बचाए रखने की चुनौती से जूझ रही है।
कांग्रेस जानती है कि अगर उसने अकेले चुनाव लड़ने का दम भरा तो लोकसभा की तरह नुकसान उठाना पड़ेगा। वामदलों के लिए भी सत्ता तक पहुंचने के लिए सेकुलर गठबंधन की जरूरत है। क्योंकि, लेफ्ट के पास भी खड़े होने के लिए जमीन नहीं है। कांग्रेस लेफ्ट गठबंधन चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की मुश्किल बढ़ा सकता है। क्योंकि, पिछले लोकसभा चुनाव में तृणमूल और भाजपा का मुकाबला बेहद नजदीक था।
तृणमूल को 43 फीसदी मत प्रतिशत के साथ 22 सीटें मिली थी, जबकि भाजपा को 40 प्रतिशत वोट के साथ 18 सीट मिली। जबकि दो सीटें कांग्रेस के हिस्से में आई थीं। पार्टी के अंदर एक तबके का मानना था कि कांग्रेस को तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहिए। पर यह संभावना उसी वक़्त खत्म हो गई, जब पार्टी ने अधीर रंजन चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। चौधरी ममता बनर्जी विरोधी माने जाते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लेफ्ट गठबंधन में पार्टी को 44 सीट मिली थी। जबकि अधिक सीट पर चुनाव लड़ने के बावजूद सीपीएम को 26 सीट मिली। यही वजह है कि लेफ्ट के अंदर कांग्रेस से समझौते का विरोध हुआ और दोनों पार्टियों ने लोकसभा चुनाव अलग-अलग लड़ा और दोनों को नुकसान हुआ। इसलिए साथ चुनाव लड़ने से दोनों को फायदा होगा।