Select Date:

कांग्रेस: आत्मचिंतन अब भी नहीं तो कब होगा ?

Updated on 04-06-2021 01:14 PM
देश के केरल सहित पांच राज्यों में पिछले दिनो हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार का विश्लेषण करने के लिए गठित पांच सदस्यीय समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट पार्टी की अं‍तरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंप दी है। रिपोर्ट में पार्टी की हार के जो कारण गिनाए गए हैं, वो इतने स्पष्ट और आम हैं कि कांग्रेस का कोई साधारण कार्यकर्ता या राजनीतिक प्रेक्षक भी बिना रिपोर्ट के यह सब बता सकता था। प्राप्त जानकारी के मुताबिक रिपोर्ट में कहा गया है कि इन राज्यों में कांग्रेस की हार का मुख्य कारण उम्मीदवार चयन में अंदरूनी कलह, गठबंधन और अन्य खामियां रही हैं। खास बात यह है कि जब ये‍ रिपोर्ट सोनिया गांधी सौंपी गई, उस वक्त भी कांग्रेस शासित पंजाब और राजस्थान में अंदरूनी घमासान मचा हुआ है तो बाकी कुछ राज्यों में वो दबे सुरों में जारी है। इसी घमासान के चलते पार्टी केरल में सत्ता नहीं पा सकी तो पुडुच्चेरी में उसने सरकार गंवा दी। यूं आंतरिक मतभेद और खींचतान हर राजनीतिक पार्टी में होते हैं, लेकिन कांग्रेस तो इसके लिए अभिशप्त-सी है। यानी कहीं भी सरकार बनते ही पहला काम पार्टी में भीतरी संघर्ष को धार मिलने का होता है। यह अभिशाप शीर्ष से लेकर जमीनी स्तर तक है। जो हालात हैं, उसे देखते हुए यही उपलब्धि मानें कि पार्टी ने कम से कम हार का विश्लेषण करने का साहस और इच्छाशक्ति तो दिखाई, वरना जो समस्या है, उसका निदान  अभी भी कोसो दूर है। क्योंकि पार्टी में समस्या का निदान कोई करना ही नहीं चाहता। अराजकता का भी अपना सुख है। डर इस बात का है कि यदि सचमुच कोई निदान हो गया तो पार्टी रहेगी भी या नहीं? और यह भी कि आत्मचिंतन अब भी नहीं होगा तो कब होगा?
गौरतलब है कि बीती 11 मई को सीडब्लूसी की बैठक में कांग्रेस की अं‍तरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विधानसभा चुनावों में हार के कारणों को जानने के लिए एक पांच सदस्यीय कमेटी गठित की थी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक चह्वाण की अध्यक्षता में बनी इस कमेटी में सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी, विन्सेंट पाला और जोतिमणि को शामिल किया गया था। उस बैठक में सोनिया गांधी ने कहा था कि ‘हमें स्पष्ट रूप से यह समझने की जरूरत है कि हम केरल और असम में मौजूदा सरकारों को हटाने में विफल क्यों रहे और हमने पश्चिम बंगाल  पूरी तरह से खाली कर दिया।’
दरअसल अंतर्कलह और गुटबाजी कांग्रेस का स्थायी चरित्र है। वो पार्टी के विपक्ष में रहते हुए भी वायरस की तरह जीवित रहता है और सत्ता मिलने पर तो मानो कोविड 19 की तरह घातक हो जाता है। न जाने क्यों सत्ता हाथ आते ही कांग्रेसियों का हाजमा तेजी से बिगड़ने लगता है। निहित स्वार्थ पार्टी हितों पर सवारी करने लगते हैं और अनुशासन की पुंगी बजने लगती है। सोनिया गांधी को सौंपी प्रारंभिक रिपोर्ट में भी तकरीबन वही सब बातें‍ हैं। रिपोर्ट के मुताबिक असम सहित कोई भी राज्य पार्टी की अंदरूनी लड़ाई से अछूता नहीं है, जबकि केरल इस मामले में शीर्ष पर है,  जहां ओमान चांडी और रमेश चेन्नीथला के नेतृत्व में दो गुट आमने-सामने थे। कमेटी को असम में कई लोगों ने एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन के लिए रिवर्स ध्रुवीकरण का मुख्य कारण बताया, जबकि कुछ ने माना कि एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन फायदेमंद था। रिपोर्ट के अनुसार पार्टी के कुछ नेताओं ने राज्य के प्रभारी जितेंद्र सिंह को राज्य के नेताओं को विश्वास में नहीं लेने के लिए दोषी ठहराया है। चुनाव प्रचार और गठबंधन पर फैसला करते हुए ऊपरी असम के मुद्दों की उपेक्षा की गई। हार का विश्लेषण करने वाले कांग्रेस पैनल को केरल में कई नए चेहरों के बारे में बताया गया, जिसके कारण राज्य में पार्टी का खराब प्रदर्शन रहा, जबकि पश्चिम बंगाल में गठबंधन में बहुत देरी होने और भाजपा और टीएमसी के बीच ध्रुवीकरण होने के कारण राज्य में पार्टी की हार होना बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह से बंगाल प्रदेश कांग्रेस  अध्यक्ष ने बिना परामर्श के काम किया, उससे कांग्रेस नेता नाराज थे। कांग्रेस का मीडिया प्रबंधन भी ठीक नहीं था। इस कांग्रेस पैनल ने आगामी राज्य चुनावों के लिए कुछ सिफारिशें भी की हैं। वो क्या हैं, यह जल्द ही स्पष्ट होगा।
माना जा रहा है कि कांग्रेस पैनल की यह रिपोर्ट संगठन में बदलाव का आधार बनेगी। लेकिन असल सवाल यह है ‍कि क्या पैनल द्वारा की गई सिफारिशों पर कोई ईमानदार अमल होगा, अगर होगा तो यह करने का साहस कौन दिखाएगा? या अमल के पहले ही सिफारिशों की हवा निकल जाएगी ? क्योंकि संगठन में सुधार का कोई भी ठोस कदम पार्टी इसी आंतरिक अराजकता के कारण नहीं उठा पाती। देश की सबसे पुरानी और स्वतंत्रता संग्राम में केन्द्रीय भूमिका निभाने वाली इस राजनीतिक पार्टी का यह हश्र वास्तव में दयनीय है। वो अपना एक नेता तक नहीं चुन पा रही है और देश में जनाधार लगातार खोती जा रही है। बावजूद इस हकीकत के वह यह गंभीरता से देखने और समझने के लिए तैयार नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है, देश की राजनीतिक नब्ज पकड़ने में कहां चूक हो रही है? जनाकांक्षा और जनता की तकलीफें क्या हैं और उन्हें कैसे दूर किया जाए? पार्टी के नेता लगातार  कह रहे हैं कि हम कम से कम हार के कारणों का तो पोस्टमार्टम करें, लेकिन निहित स्वार्थ वो भी नहीं होने देते। कांग्रेस की बदकिस्मती यह है कि 2014 के बाद उसे मोदी-शाह की उस भाजपा से लोहा लेना पड़ रहा है, जो चौबीसो घंटे राजनीति करते हैं, राजनीति में जीते हैं और चुनावी रणनीति में मस्त रहते हैं। इस हिसाब से 21 सदी के यह सात साल मुख्य रूप से चुनावी अखाड़े के साल ही हैं। इस बीच देश में दो-चार अच्छे और स्थायी काम अगर हो भी गए हैं तो उन्हें चुनावी गणतंत्र का बाय-प्राॅडक्ट ही मानना चाहिए। ऐसे राजनेताअो के आगे कांग्रेस की बैलगाड़ी युग की राजनीति बार-बार मार खा रही है। हालत यह है कि बैलगाड़ी को ही पता नहीं है कि उसे हांकने वाला वास्तव में है कौन? वो दृश्य हाथ और मस्तिष्क कौन सा है, जो पार्टी को सिमटते और दिग्भ्रमित होते देख रहा है फिर कुछ करना नहीं चाहता। यूं बेचैनी पूरी पार्टी में है, लेकिन सुधार की तड़प किसी स्तर पर दिखाई नहीं देती।  
लगता यही है कि 135 साल पुरानी यह पार्टी आत्मचिंतन करना भी भूल गई है। कांग्रेस का आखिरी ‘चिंतन शिविर’ जयपुर 2013 में हुआ था। लेकिन उसके एक साल बाद 2014 हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी का सफाया हो गया। उस हार का भी पार्टी ने कोई विश्लेषण नहीं किया। फिर चिंतन शिविर की मांग उठी, लेकिन दबा दी गई। बीच में ‘रेगिस्तान में नखलिस्तान’ की तरह कुछ विधानसभा चुनाव में पार्टी ने सत्ता जरूर हासिल की, लेकिन मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य में अंतर्कलह के चलते वह गवां भी दी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी नतीजा लगभग पहले जैसा ही आया। उस हार के विश्लेषण और आत्मचिंतन से पार्टी अभी तक बचती आ रही है कि कहीं आईना न देखना पड़ जाए। इस अकर्मण्यता से परेशान कांग्रेस के 23 वरिष्ठों ने पिछले साल अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी संगठन में ‘आमूल बदलाव’ और पार्टी में ‘पूर्णकालिक और सक्रिय नेतृत्व’ लाने की मांग की। इसे राहुल गांधी के खिलाफ बगावत मानकर दबा दिया गया। जबकि केरल विधानसभा ‍चुनाव नतीजों ने राहुल के नेतृत्व की बची-खुची चमक को भी फीका कर दिया। इसमें आश्चर्य इसलिए नहीं था कि कांग्रेस वैचारिक रूप से भी भ्रमित पार्टी के रूप में चुनाव मैदान में उतर रही थी। जहां केरल में वो अपना दुश्मन नंबर वन कम्युनिस्टों को मान रही थी, वहीं बंगाल में उसी का हाथ थाम कर ममता दीदी के खिलाफ चुनाव लड़ रही थी। और तो और बंगाल में उसने एक मुस्लिम साम्प्रदायिक पार्टी से हाथ मिलाकर अपनी राजनीतिक कब्र खुद खोद ली। लिहाजा वहां कांग्रेस और लेफ्ट  दोनो निपट गए। एक झूठा दिलासा जरूर रहा कि हम हारे तो क्या हुआ, भाजपा भी बंगाल में सत्ता नहीं पा पाई। लेकिन भाजपा बंगाल में प्रतिपक्ष की पार्टी तो बन ही गई है, जो कल सत्ता की दावेदार भी हो सकती है। बहरहाल कांग्रेस की हालत शायर आरजू लखनवी के उस शेर सी है- नतीजा एक ही निकला कि थी किस्मत में नाकामी, कभी कुछ कह के पछताए, कभी चुप रह के पछताए।
अजय बोकिल, लेखक  
वरिष्ठ संपादक, ‘राइट क्लिक’ ,                                                      ये लेखक के अपने विचार है I

अन्य महत्वपुर्ण खबरें

 16 November 2024
महाराष्ट्र में भाजपानीत महायुति और कांग्रेसनीत महाविकास आघाडी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव जीतना राजनीतिक  जीवन मरण का प्रश्न बन गया है। भाजपा ने शुरू में यूपी के…
 07 November 2024
एक ही साल में यह तीसरी बार है, जब भारत निर्वाचन आयोग ने मतदान और मतगणना की तारीखें चुनाव कार्यक्रम घोषित हो जाने के बाद बदली हैं। एक बार मतगणना…
 05 November 2024
लोकसभा विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं।अमरवाड़ा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह को विजयश्री का आशीर्वाद जनता ने दिया है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 की 29 …
 05 November 2024
चिंताजनक पक्ष यह है कि डिजिटल अरेस्ट का शिकार ज्यादातर वो लोग हो रहे हैं, जो बुजुर्ग हैं और आमतौर पर कानून और व्यवस्था का सम्मान करने वाले हैं। ये…
 04 November 2024
छत्तीसगढ़ के नीति निर्धारकों को दो कारकों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है एक तो यहां की आदिवासी बहुल आबादी और दूसरी यहां की कृषि प्रधान अर्थव्यस्था। राज्य की नीतियां…
 03 November 2024
भाजपा के राष्ट्रव्यापी संगठन पर्व सदस्यता अभियान में सदस्य संख्या दस करोड़ से अधिक हो गई है।पूर्व की 18 करोड़ की सदस्य संख्या में दस करोड़ नए सदस्य जोड़ने का…
 01 November 2024
छत्तीसगढ़ राज्य ने सरकार की योजनाओं और कार्यों को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल तकनीक को अपना प्रमुख साधन बनाया है। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते…
 01 November 2024
संत कंवर रामजी का जन्म 13 अप्रैल सन् 1885 ईस्वी को बैसाखी के दिन सिंध प्रांत में सक्खर जिले के मीरपुर माथेलो तहसील के जरवार ग्राम में हुआ था। उनके…
 22 October 2024
वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…
Advertisement