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कर्नाटक की जीत से कांग्रेस के हौसले बुलंद

Updated on 17-05-2023 02:21 AM
बीते सप्ताह जहां देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट से दो झटके भाजपा और उसकी केन्द्र सरकार को लगे हैं तो वहीं कर्नाटक में कांग्रेस की प्रचंड जीत ने उसे धीरे से जोर का झटका दिया है। इससे कांग्रेस और विपक्षी दलों के हौंसले बुलंद हुए हैं तो वहीं अब ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा और अधिक सजग और सतर्क होकर अपनी चुनावी बिसात बिछायेगी ताकि इन राज्यों में कांग्रेस की राह में कांटे बिछाये जा सकें। 2018 के विधानसभा चुनाव में तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बनी थीं लेकिन मध्यप्रदेश में फिर से शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार बन गई और वह भी कांग्रेस से आये दलबदलुओं के भरोसे।  ज्योतिरादित्य सिंधिया और  उनके  समर्थक कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल गए ।
        जहां तक गुटबंदी का सवाल है छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कांग्रेस में गुटबंदी कम है जबकि राजस्थान में वह बुरी तरह से इसका शिकार हो रही है। कर्नाटक में कांग्रेस की चमकदार जीत के लिए जहां राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को बुनियाद माना जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार की जुगलबंदी भी थी जो इसी यात्रा के दौरान बनी उसका नतीजा यह निकला कि कांग्रेस ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा, जबकि वहां भाजपा में अधिक असंतोष नजर आया यहां तक कि कुछ नेता कांग्रेस में चले गये।
       पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस जीत के लिए राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को एक बड़ा फैक्टर बताया तो भावुक शिवकुमार ने राहुल का नाम कई बार लिया। राजनीति के जानकार भी इस जीत में राहुल की मेहनत को गिना रहे हैं क्योंकि राहुल की यात्रा के दौरान जिन रास्तों से गुजरे उनमें से कर्नाटक ही वह राज्य है जहां सबसे पहले राजनीतिक शक्ति परीक्षण का अवसर आया। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में 21 दिन चली और 7 जिलों से होकर गुजरी जिनमें 51 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 37 सीटें कांग्रेस ने जीत लीं हैं। यदि क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो राहुल गांधी का स्ट्राइक रेट 72 प्रतिशत रहा और 2018 के विधानसभा चुनाव की तुलना में यह सफलता दुगुने से भी ज्यादा रही। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां 15 भाजपा ने 17 और जेडीएस ने 14 सीटें जीती थीं तथा शेष  दो सीटों पर अन्य विजयी हुए थे। आंकड़ों के आइने में देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों और जनसभाओं को क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो उनका स्ट्राइक रेट 33 प्रतिशत के आसपास बैठता है। मोदी ने जिन 20 जिलों में रैलियां व जनसभाएं कीं वहां कुल 164 विधानसभा सीटें हैं और 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां 55 सीटें जीतीं, यहां की 19 सीटों पर जेडीएस और 90 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है। 
     इस समय देश में 30 विधानसभाएं हैं इनमें दो केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और पुड्डुचेरी भी शामिल हैं। कर्नाटक के नतीजों के बाद भाजपा 15 प्रदेशों  में सत्ता में है, इनमें से अपने बूते पर 9 प्रदेशों  में सत्ता में है, बाकी 6 प्रदेशों  में गठबंधन के साथियों के साथ सत्ता में है। इनमें से कोई भी दक्षिण भारत का राज्य नहीं है। 2018 में  देश के 21 राज्य और 71 प्रतिशत आबादी पर भाजपा का शासन था लेकिन अब वह 45 प्रतिशत आबादी तक सिमट गई है। भाजपा या उसके गठबंधन शासित प्रदेशों में केवल 7 राज्यों की आबादी एक करोड़ से ज्यादा है। 
    जहां तक दक्षिण भारत का सवाल है कर्नाटक की हार के बाद पांच में से किसी भी राज्य में भाजपा की सरकार नहीं है। दक्षिण भारत में पांच राज्यों और एक केंद्र शासित राज्य से कुल 130 लोकसभा सांसद आते हैं इनमें से भाजपा के पास केवल 29 सांसद हैं यानी यह 22 प्रतिशत है। इनमें से भी 25 सांसद अकेले कर्नाटक से हैं जहां वह सत्ता से बाहर हो गई है। तेलंगाना में भाजपा सांसदों की संख्या 4 है। दक्षिण भारत के राज्यों की विधानसभाओं में कुल 923 विधायक हैं। कर्नाटक चुनाव से पहले तक इनमें से भाजपा के पास 135 विधायक थे। कर्नाटक में भाजपा के 40 विधायक कम होने के बाद यह आंकड़ा अब 95 का बचा है। यानी दक्षिण भारत में कुल विधायकों में भाजपा विधायकों की संख्या 10 प्रतिशत रह गई है। कर्नाटक की सफलता के बाद अब कांग्रेस इसी फार्मूले पर मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ेगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे रही है ।  यहां महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर वह शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की तगड़ी घेराबंदी करने के मंसूबे पाल रही है।
-अरुण पटेल
-लेखक, संपादक






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