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सत्ता की ताकत से भिड़ने कांग्रेस को चाहिए एक अदद कुशल रणनीति

Updated on 31-01-2021 12:19 PM
इस वर्ष मार्च या अप्रैल माह के पूर्वार्ध में संभावित नगरीय निकाय चुनाव में एकतरफा जीत दर्ज कराने के लिए भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री  सुहास भगत के बीच मंत्रणाओं का एक दौर पूरा हो चुका है और इन्हें जीतने के लिए पार्टी अपनी पूरी ताकत लगाएगी। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी पूरी गंभीरता और  शिद्दत के साथ चुनावी मैदान में कूदने वाली है क्योंकि 2023 के विधानसभा चुनाव के पूर्व अपना खोया हुआ जनाधार फिर से पाने के लिए  उसके पास यह चुनाव अंतिम अवसर होगा। कांग्रेस को  नगरीय निकाय चुनाव करो या मरो की तर्ज पर लड़ना होगा अन्यथा कार्यकर्ताओं में जो  हताशा सरकार जाने और 28 विधानसभा उपचुनाव में हार के कारण आई है वह दूर करने में अनेक दुश्‍वारियां का सामना करना पड़ेगा। कमलनाथ के सामने भी यह चुनाव किसी चुनौती से कम नहीं है। कमलनाथ को पार्टी को अपेक्षा के अनुसार जीत दिलाकर यह साबित करना होगा कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस फिर से अपना  जनाधार बढ़ा सकती है। भाजपा में संगठनात्मक फेरबदल हो चुका है तथा भाजपा के पास मजबूत संगठन तो है ही और उसकी सरकार भी है जिसके मुखिया शिवराज का अपना आभामंडल है, इसलिए कांग्रेस को सत्ता की ताकत से भिड़ने के लिए कुशल रणनीति, अपनों को एकजुट रखने और कार्यकर्ताओं में जीत का जज्बा पैदा  करने की जरूरत होगी। भाजपा किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेती है और पूरी गंभीरता से लड़ती है तथा सदैव चुनाव की चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्पर रहती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा नगरीय निकाय चुनाव में एकतरफा जीत दर्ज कराना चाहते हैं ताकि प्रदेश में कांग्रेस को संभलने और अपनी उर्वरा जमीन तलाशने का कोई मौका ही ना मिल पाए। उनकी कोशिश यही है कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं को चुनाव नतीजों से संजीवनी बूटी हाथ ना लग पाए। कमलनाथ इन चुनावों को जीतकर संजीवनी बूटी अपनी मुट्ठी में लेना चाहते हैं ताकि 2023 के विधानसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस सरकार बनाने का सपना जागती हुई आंखों से देख सकें। यह तो मतगणना से ही पता चलेगा  क्योंकि नतीजों के पूर्व प्रदेश के मतदाताओं ने क्या सोच रखा है  उनके मानस की थाह लेना असंभव नहीं तो दुष्कर अवश्य  होता है। भाजपा और कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भी इन चुनावों पर सीधी नजर रखे हुए हैं तथा प्रदेश में सक्रिय हैं इसलिए उनकी भी  प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव के प्रभार संभालने के बाद भाजपा और कांग्रेस के बीच पहला राजनीतिक शक्ति परीक्षण होने जा रहा है। यदि नतीजे भाजपा की कल्पना के अनुरूप रहे तो फिर प्रादेशिक नेतृत्व के साथ ही उन्हें भी इसका श्रेय मिलेगा। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव मुकुल वासनिक के सामने जबसे वह प्रभारी बने हैं अब दूसरा मौका है। विधानसभा उपचुनावों में समूची पार्टी के साथ उन्हें भी हताशा हाथ लगी थी।  भाजपा प्रभारी मुरलीधर राव प्रदेश का सघन प्रवास करने वाले हैं  ताकि कार्यकर्ताओं से सीधे  संवाद कर उनमें और अधिक उत्साह का संचार कर सकें। कांग्रेस की रणनीति इन चुनावों में आदिवासी मतदाताओं को साधने की है और उसकी कमान  सीधे-सीधे वासनिक ने ही थाम रखी है। निकाय चुनाव में पार्टी की जीत के इरादों के साथ वासनिक ने आदिवासी क्षेत्रों का दौरा प्रारंभ कर दिया है और विधायकों तथा कार्यकर्ताओं की बैठकें ले रहे हैं। उपचुनावों में आदिवासी मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस से हटकर भाजपा की ओर हुआ है जबकि कांग्रेस उन्हें अपना मजबूत वोट बैंक मानती रही है। 2018 का विधानसभा चुनाव आते-आते कांग्रेस ने फिर से आदिवासियों का दिल काफी कुछ जीत लिया था और अब उसी तर्ज पर वह अपनी शहर सरकार बनाना चाहती है। उपचुनाव में भी कांग्रेस को दलित समुदाय ने अच्छा-खासा समर्थन दिया था और उनकी बदौलत उसका आंकड़ा नौ तक पहुंच गया था। भाजपा दलितों को फिर पूरी मजबूती से अपने साथ जोड़ना चाहती है इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां-जहां दौरे पर जा रहे हैं वहां किसी न किसी दलित परिवार के घर जाने का कार्यक्रम अवश्य बनाते हैं और उधर चाय नाश्ता या भोजन करते हैं और यह सिलसिला लगातार जारी रहेगा। सरकारी योजनाओं के हितग्राहियों के घर भी शिवराज जा रहे हैं। 
आदिवासियों को साधते वासनिक        
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति की आरक्षित 51 सीटों में से 31 सीटें जीतकर राजनीतिक गलियारों में सबको चौंका दिया था। इस चुनाव में कांग्रेस सरकार बनाने के नजदीक पहुंची थी तो उसका रास्ता आदिवासियों के बीच से होकर ही गुजरा था। 2003 के विधानसभा चुनाव से लेकर 2013 के विधानसभा चुनाव तक कमोबेश आरक्षित सीटों पर भाजपा का दबदबा रहा, लेकिन 2018 के चुनाव तक धीरे-धीरे कांग्रेस ने अपने इस परंपरागत वोट बैंक को साध लिया था। लेकिन हाल के 28 उपचुनावों में आदिवासियों का एक प्रकार से फिर से कांग्रेस से मोहभंग हो गया। 2018 में   दलित वर्ग का भी कांग्रेस को अच्छा खासा समर्थन मिला था और वह उपचुनाव में भी कमोबेश बना रहा। वासनिक ने 28 जनवरी से 30 जनवरी तक तीन दिवसीय आदिवासी अंचलों का दौरा किया। मंडला से प्रारंभ होकर उनका दौरा अनूपपुर और शहडोल में जाकर पूरा हुआ। अपने प्रवास में वासनिक ने यह  थाह लेने की कोशिश की कि डेढ़ साल के अंदर ही कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद अब आदिवासियों के बीच कांग्रेस की पकड़ कैसी है और उसे कैसे मजबूत बनाए रखा जा सकता है। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती आदिवासियों को अपने साथ बांधे रखना और उनका निरंतर दिल जीतते रहना है इसलिए वासनिक ने उन्हें भरोसा दिलाया कि पार्टी इस साल आदिवासी दस्तावेज जारी करने वाली है। इस दस्तावेज में कांग्रेस सरकार द्वारा आदिवासी वर्ग के लिए किए गए कार्यों तथा संचालित की गई योजनाओं का ब्यौरा समाहित होगा। देखने वाली बात यही होगी कि आदिवासी मतदाताओं के  वासनिक की बातें कितनी गले उतरती हैं, यह अब नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों से ही साफ हो  सकेगा।
चुनाव में भाजपा की रणनीति       
भाजपा नगरीय निकाय चुनावों में एकतरफा जीत के लिए प्रत्याशी चयन हेतु एक गाइडलाइन बना रही है जिसमें विधायक महापौर पद की दौड़ से बाहर रहेंगे तो वहीं उम्रदराज  नेताओं को भी अपवाद स्वरूप जरूरी नहीं हुआ तो  उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया जाएगा। निकाय चुनाव में युवा चेहरों को प्राथमिकता दी जाएगी और 55 वर्ष से अधिक की आयु वाले नेताओं को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल सकेगा। फिलहाल पार्टी में इस मुद्दे पर उच्च स्तरीय विचार-विमर्श चल रहा है और शीघ्र ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। मार्च माह में इन चुनावों को कराने की प्रशासनिक तैयारियां चल रही हैं। भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं से इन चुनावों में सभी निकायों को जीतने का लक्ष्य लेकर मैदान में जुट जाने का आह्वान किया है। भाजपा का इरादा सभी 16 नगर निगम और 96 नगर पालिका सहित सभी नगर परिषदों में क्लीन स्वीप करने का है ताकि कांग्रेस को 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले एक और जोर का झटका दिया जाए  और उसके कार्यकर्ताओं और नेताओं का मनोबल बुरी तरह से गिर जाए तथा फिर से वह संभल ही ना पाएं। अभी तक भाजपा ने जो  जो रणनीति तय की है उसके अनुसार हर नगरीय निकाय का घोषणा पत्र तैयार किया जाएगा। इसमें स्थानीय आकांक्षाओं का भी समावेश होगा। इसके साथ ही  नगरीय निकायों के लिए कॉमन एजेंडा भी तैयार किया जाएगा।
और यह भी...   
नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती है उन सभी 16 नगर पालिक निगम में फिर से अपनी जीत दर्ज कराना है जहां उसके ही महापौर थे। वहीं कांग्रेस को इनमें से कुछ पर अपने महापौर जिताना जरूरी है ताकि वह यह दावा कर सके की पार्टी की स्थिति में सुधार हुआ है। नगर पालिका और नगर परिषद में उसके जितने अध्यक्ष थे उनकी संख्या में भी बढ़ोतरी हो अन्यथा अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बनाए रखने में आगे चलकर कांग्रेस नेतृत्व को विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।
अरुण पटेल, लेखक                                                                 ये लेखक के अपने विचार है I 
प्रबंध संपादक सुबह सवेर 
कार्यकारी संपादक अमृत संदेश

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