नव वर्ष 2021 के आगाज के स्वागत के लिए जब लोग तैयार हो रहे थे और 2020 बिदा होने वाला ही था कि भाजपा ने अपनी संगठनात्मक पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अपने तीन सह संगठन महामंत्रियों को नया दायित्व सौंपने की शुरुआत की और इसके साथ यह साफ हो गया कि नववर्ष में जो चुनौतियां सामने आने वाली हैं उनके मुकाबले के लिए भाजपा माकूल कदम उठाने जा रही है। नया साल भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौतियों से भरा होगा, इस दृष्टि से आरम्भ के एक-दो माह में भाजपा और कांग्रेस में जो भी बदलाव मिशन 2023 और 2024 के लिए करना होगा वह आकार ले लेगा। बीता साल मध्यप्रदेश के लिए राजनीतिक उठापटक से भरा रहा तो अब दोनों पार्टियां संगठनात्मक दृष्टि से जहां जो जरुरी है वह परिवर्तन करने की दिशा में सधे हुए कदमों से आगे बढ़ेंगी। कमलनाथ सरकार की बिदाई और शिवराज सरकार की ताजपोशी के साथ ही प्रदेश में दोनों दलों के सामने अनेक चुनौतियां हैं, किसी के सामने कम तो किसी के सामने ज्यादा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की भूमिका भी स्पष्ट होगी और उसके अनुसार प्रदेश कांग्रेस या विधायक दल को या दोनों को नए मुखिया मिल जायेंगे। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह साल राजनीतिक व प्रशासनिक दृष्टि से बदलाव का वर्ष होगा, क्योंकि शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल को पूरा आकार मिलने के साथ ही लगभग एक साल से बहुप्रतीक्षित भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा की कार्यकारिणी की घोषणा शीघ्र होने के संकेत मिल रहे हैं। कांग्रेस में भी प्रदेश स्तर से लेकर निचले स्तर तक संगठनात्मक फेरबदल होना है तथा विधानसभा में भी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव भी होना है।
राष्ट्रीय सहसंगठन महामंत्री शिवप्रकाश के पास मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल का प्रभार होगा। उनका मुख्यालय राजधानी भोपाल होगा। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तिरंगी सत्ता को उखाड़ फेंकने का जो ब्लूप्रिंट केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तैयार किया है उसका रास्ता मध्यप्रदेश से होकर गुजरेगा क्योंकि मध्यप्रदेश के नेताओं को वहां के लिए सुनिश्चित महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों सौंपी गयी हैं और अब इन गतिविधियों का संगठनात्मक सूत्र भोपाल से संचालित होगा। जिन-जिन राज्यों के भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं का अधिकतम उपयोग पश्चिम बंगाल में होना है लगभग उन सबका प्रभार शिवप्रकाश के पास है। कैलाश विजयवर्गीय लम्बे समय से बंगाल के प्रभारी राष्ट्रीय महामंत्री हैं तो उनके सहयोग के लिए अरविन्द मेनन जो मध्यप्रदेश में लम्बे समय तक महामंत्री संगठन रह चुके हैं, को लगाया गया है। म.प्र. के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा तथा केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को भी वहां जिम्मेदारियां दी गयी हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति पर भी इसका असर पड़ेगा तथा अब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की अंदरुनी राजनीति में जो कुछ होगा वह राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा के सीधे रडार पर रहेगा। खासकर यह बदलाव मध्यप्रदेश के संदर्भ में काफी महत्व रखते हैं और इसका सीधा-सीधा असर आने वाले दिनों में महसूस किया जायेगा, क्योंकि अब जो भी होगा वह शिवप्रकाश की अनुमति से ही होगा।
भाजपा के सूत्र शिवप्रकाश के हाथों में
मध्यप्रदेश में सत्ता और संगठन के समन्वय के समूचे सूत्र शिवप्रकाश के हाथों में होंगे और जो निर्णय लटके हुए थे वह अब तीव्र गति से लिए जायेंगे। संगठनात्मक व्यवस्था में महामंत्री संगठन का सर्वाधिक महत्व होता है क्योंकि वह सीधे-सीधे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से पार्टी में आता है। अब सुहास भगत अपने स्तर पर महत्वपूर्ण फैसले उस स्थिति में ही ले पायेंगे जबकि उस पर शिवप्रकाश की सहमति की मोहर लग जायेगी। प्रदेश में इस समय बड़े या एक समान कद के लगभग आधा दर्जन नेता हो गए हैं इस कारण समन्वय में भी दिक्कत आ रही थी। यही कारण है कि अब राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी का मुख्यालय भोपाल में होगा जिससे कि समन्वय आसान हो सके। शिवप्रकाश को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तालमेल बैठाना होगा क्योंकि ऐसी धारणा बन रही है कि आपसी तालमेल नहीं बैठ पाने के कारण सभी अहम् फैसले टल रहे हैं। भाजपा मध्यप्रदेश को संगठनात्मक दृष्टि से पूरे देश में एक आदर्श संगठन मानता है और इसे पूरे देश में मॉडल बनाना चाहता है इसलिए दिल्ली की सीधी नजर रहे उसे ध्यान में रखते हुए ही सह संगठन महामंत्री को यहां पर बैठाया गया है। वह अपने प्रभार के राज्यों में प्रवास के बाद लौट कर भोपाल में ही रहेंगे। मध्यप्रदेश में तो भाजपा की सरकार 15 माह बाद बन गयी लेकिन छत्तीसगढ़ में वह 2018 के बाद से लगातार कमजोर होती जा रही है। वहां भी यह महसूस किया जा रहा है कि डॉ. रमनसिंह 15 साल तक लगातार मुख्यमंत्री रहे और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक की उनसे जुगलबंदी अच्छी है, इसके चलते वहां दूसरी पंक्ति के नेता ना तो उभर पा रहे हैं और ना ही उनका जैसा चाहिए वैसा पार्टी उपयोग ही कर पा रही है, इसलिए वहां पर भी संगठन और विधायी पक्ष पर केन्द्र की सीधी नजर बनी रहेगी। छत्तीसगढ़ में 2018 विधानसभा चुनाव के बाद जितने भी विधानसभा उपचुनाव हुए उनमें कांग्रेस ने भाजपा को शिकस्त दी और यहां तक कि पिछले चुनाव में जीती हुई सीट को भी भाजपा नहीं बचा पाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस का जनाधार निरन्तर बढ़ाते जा रहे हैं जिससे 90 सदस्यीय सदन में कांग्रेस विधायकों की संख्या 70 पहुंच गयी है। इसलिए वहां भी भाजपा के संगठन में गतिशीलता लाने का काम शिवप्रकाश को करना है।
रविवार को तय होना है कमलनाथ की नई भूमिका
3 जनवरी को दिल्ली में होने वाली कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक में इस बात की संभावना है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में जो भी बदलाव होना है उसे हरी झंडी मिल जाए, क्योंकि यहां बहुत समय से यह मसला लटका हुआ है। कमलनाथ को एक पद छोड़ना पड़ेगा और जिसका संकेत वे पहले दे चुके हैं। वे कौन सा पद छोड़ें यह कांग्रेस हाईकमान को तय करना है। जो संकेत मिल रहे हैं उसके अनुसार कमलनाथ स्वयं अध्यक्ष पद छोड़ना चाहते हैं और नेता प्रतिपक्ष बने रहना चाहते हैं तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कोई नया चेहरा होगा। प्रदेश अध्यक्ष के रुप में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के नाम पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जा रहा है क्योंकि हाल के 28 विधानसभा उपचुनावों में कमलनाथ के बाद सबसे अधिक सक्रिय भूमिका उन्होंने ही निभायी। पूरे प्रदेश में उनका चेहरा अन्य जो नेता इस दौड़ में हैं उनसे अधिक जाना-पहचाना है और अर्जुन सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी होने के कारण कमोवेश हर अंचल में उनके अपने समर्थक भी हैं। दूसरा अरुण यादव का नाम है और उन्हें आगे आकर सक्रिय होने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा है। कांग्रेस के पास एक किसान नेता की कमी है वह कमी अरुण यादव पूरा कर सकते हैं। कमलनाथ की पहली पसंद पूर्व मंत्री विधायक सज्जन सिंह वर्मा बताये जाते हैं जबकि एक और युवा विधायक पूर्व मंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष व मीडिया विभाग के प्रभारी जीतू पटवारी का नाम भी चल रहा है।
और यह भी...
नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ बने रहते हैं तो फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री डॉ. गोविन्द सिंह को पार्टी कौन सा पद देगी यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस को अपना जनाधार जो कि ग्वालियर-चंबल संभाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने से दरक गया है उसकी यदि भरपाई करना है तो डॉ. गोविंद सिंह की भूमिका को भी सुनिश्चित करना होगा। वह दिग्विजय सिंह और अजय सिंह के काफी नजदीक भी हैं। इसलिए यदि अजय सिंह की प्रदेश अध्यक्ष के रुप में ताजपोशी नहीं होती है तो फिर डॉ. गोविंद सिंह भी इस पद के लिए एक मजबूत दावेदार रहेंगे। फिलहाल कांग्रेस में जो भी बदलाव नए साल में होना है उसकी दिशा कमलनाथ की राजनीतिक भूमिका तय होने के साथ ही पता चलेगी। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष रहते हुए राष्ट्रीय राजनीति में भी अहम् भूमिका निभाने जा रहे हैं और वह क्या होगी यह भी जल्द ही स्पष्ट हो जाएगा कि वह क्या होगी?
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