डीन डॉ. संजय दीक्षित ने बताया कि इस प्रक्रिया में मरीज के सफेद रक्त कणों को विशेष मशीन की मदद से एकत्रित किया गया, जिसके बाद जीन में बदलाव कर उन्हें कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और नष्ट करने योग्य बनाया गया।
20 दिन के बाद मरीज को वापस प्रत्यारोपित किया गया। अमेरिका, यूरोप, कनाडा, आस्ट्रेलिया, यूके जैसे देशों में इस थैरेपी की शुरुआत कुछ वर्ष पहले हो चुकी है, जबकि भारत में इस थैरेपी को आईआईटी मुंबई और टाटा मेमोरियल अस्पताल के सहयोग से विकसित किया गया है। वर्ष 2023 में भारत की केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन द्वारा इसे व्यावसायिक रूप से मंजूरी दी गई।
कार टी सेल थैरेपी एक प्रकार की इम्यूनोथेरेपी है, जिसमें मरीज के टी सेल्स को पुन: प्रोग्राम किया जाता है, ताकि वे कैंसर कोशिकाओं को पहचान कर उनका सफाया कर सकें। इस प्रक्रिया में पहले सफेद रक्त कणों को एकत्र कर टी सेल्स को अलग किया जाता है।
फिर, इन्हें एक विशेष रिसेप्टर- चाइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स के साथ जेनेटिकली इंजीनियर किया जाता है। यह रिसेप्टर्स टी सेल्स को कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने में मदद करते हैं। बाद में इन कार टी सेल्स को नियंत्रित वातावरण में बढ़ाकर मरीज के शरीर में फिर से डाल दिया जाता है, जहां ये कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं।
अधिकारियों ने बताया कि अमेरिका में कार टी सेल थैरेपी का खर्च करीब चार करोड़ रुपये है, वहीं मध्य भारत में यह थैरेपी एक-तिहाई लागत में उपलब्ध कराई जा रही है, जिससे अधिक मरीजों तक इसकी पहुंच बढ़ सके।
मरीजों को उन्नत उपचार मिलेगा
यह पहल मध्य भारत में ब्लड कैंसर उपचार में काफी मददगार साबित होगी, जिससे अधिक मरीजों को उन्नत उपचार प्राप्त हो सकेगा। - डॉ. अशोक यादव अधीक्षक, एमवाय अस्पताल