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बढ़ते घरेलू हिंसा से टूटते परिवार,कहाँ तक प्रभावी है कानून !

Updated on 06-12-2020 02:49 AM
महिलाओं के साथ हिंसा शब्द का प्रयोग बहुत ही आम हो चला है I पढ़े लिखें और सभ्य समाज मे आज भी महिलाएँ घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं I यदि हम महिलाओं के प्रति हो रहे घरेलू हिंसा के कारणों पर ज़ोर दें तो इसमें सबसे प्रमुख कारण है समाज मे यह मानसिकता कि महिलाएँ पुरुषों की तुलना में शारिरिक और भावनात्मक रूप से कमज़ोर होती हैं I दहेज़ का लालच इसका दूसरा कारण है, प्रथाओं के अनुसार लड़की की शादी मे पिता के द्वारा अपनी बेटी को उसकी सुख सुविधा, गृहस्थी का सामान गहने आदि देना पिता की इच्छा होती है किन्तु इसे एक कुप्रथा बना दिया गया है कि वघु के विवाह मे दहेज तो होना ही चाहिए नहीं तो ससुराल में प्रताड़ना झेलो | पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को कुछ बोलने का अधिकार नहीं है, यौन संबंध बनाने से इनकार करना अपमान की बात माना जाता है ऐसी कई छोटी-छोटी बातें महिलाओं पर पति द्वारा हिंसाकारित के कई कारणों से कुछ हैं I स्थिति यह है कि यदि महिला अपने साथ हो रही घरेलू हिंसा की शिकायत करती है तो उसे समझाया जाता है कि क्या हुआ अगर एक थप्पड़ मार भी दिया तो पति है, घर गृहस्थी में ऐसी बातें होती रहती है सहन करो,रात गई बात गई,अरे तुमने ही कुछ बोला होगा जो उसे गुस्सा आया, ये शब्द हर महिला ने सुने होंगे I सुनने वालो को यह मामूली लगता है कि लड़ाई झगड़ा तो हर घर मे हो ता है परन्तु महिला जिस पर यह घरेलू हिंसाकारित की जाती है उसका आत्मबल और आत्मविश्वास,जीवन जीने की इच्छा समाप्त हो जाती है और अपने आपको औरों से कम आंकने लगती है घरेलू हिंसा का प्रभाव केवल शारीरिक ही नहीं इसका असर मानसिक,भावनात्मक,मौखिक, मनोवैज्ञानिक तौर पर महिला पर पड़ता है जो उसे तोड़कर रख देता है I 
व्यथित व्यक्ति के अधिकार और व्यथित व्यक्ति कौन है ? 
घरेलू हिंसा के विरूद्ध महिला संरक्षण अधिनियम 2005 के अधीन कोई भी घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला कानूनी मदद की हकदार है और वह चाहै तो कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है I  इस अधिनियम के अनुसार एक पीड़ित व्यक्ति घरेलू नातेदारी मे रहते हुए या पहले कभी रह चुका हो जिस पर घरेलू हिंसाकारित की गई है निम्न मे से कोई भी हो सकता है :
1. रक्त जनित संबंध जैसे माँ-बेटा,पिता-पुत्री,भाईबहन I 
2. विवाह जनित संबंध- जैसे पती-पत्नी, सास-बहू, ससुर-बहू, देवर-भाभी, ननद,परिवार, विधवाओं के संबंध या विधवा के परिवार के अन्य  सदस्यों से संबंध I
3.  दत्तक ग्रहण,गोद लेने से उपजे संबंध I
लिविनसंबंध - कानूनी तौर पर अमान्य विवाह,घरेलू नातेदारी मे आने के लिए जरूरी नहीं की दो व्यक्ति वर्तमान मे किसी साझा घर मे रह रहे हों I
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत जिम्मेदार अधिकारियों पर यह जिम्मेदारी होतीहै की वह व्यथित व्यक्ति को उसके अधिकारों के बारे में सूचित करें जैसे-
1.    पीड़ित इस कानून के तहत किसी भी राहत के लिए आवेदन कर सकती है जैसे- संरक्षण आदेश,आर्थिक राहत,बच्चे के अस्थायी संरक्षण (कसटडी )का आदेश,निवास आदेश या मुआवजा आदेश I
2.  पीड़ित आधिकारिक सेवा प्रदाताओं की सहायता ले सकती है I
3.   पीड़ित संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकती है I
4.  पीड़ित निशुल्क कानूनी सहायता की मांग कर सकती है I
5.   पीड़ित (ipc) के तहत क्रिमिनल याचिका भी दाखिल कर सकती है,जिसमें प्रतिवादी(जिस पर हिंसाकारित करने का आरोप है)  3 साल तक की जेल होने के प्रावधान है I
मुख्य कानूनी प्रावधान
घरेलू हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत निम्नलिखित धाराओं के तहत मुकदमा दायर किया जा सकता है 
धारा 4 
घरेलू हिंसा किया जा चुका हो या किया जाने वाला हो या किया जा रहा हो,की सूचना कोई भी व्यक्ति संरक्षण अधिकारी को दे सकता है, (सूचना देने वाले व्यक्ति पर किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी तय नहीं की जाएगी) पीड़ित के लिए संरक्षण अधिकारी संपर्क का पहला बिंदु है, प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य मे संरक्षण अधिकारी नियुक्त करती है I
धारा 5
इस धारा के तहत यदि घरेलू हिंसा की कोई सूचना किसी पुलिस अधिकारी या संरक्षण अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दी गई है तो उसके द्वारा पीड़ित को जानकारी देना होगी की : 
(क) उसे संरक्षण पाने का अधिकार है I
(ख) सेवाप्रदाता की सेवा उपलब्धता का अधिकार है I
(ग) संरक्षण अधिकारी की सहायता प्राप्त करने का अधिकार है I
(घ) मुफ्त विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है I 
(ङ) परिवाद पत्र दाखिल करने का अधिकार प्राप्तहै,पर संज्ञेय अपराध के लिए पुलिस को कार्यवाही से यह प्रावधान नहीं रोकता है I
धारा 10 
सेवाप्रदाता जो नियमत : निबंधित हो मजिस्ट्रेट या संरक्षण अधिकारी को घरेलू हिंसा की सूचना दे सकता है I
धारा 12
व्यथित व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या अन्य कोई घरेलू हिंसा के बारे मे या मुआवजा या नुकसान के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है I जिसकी सुनवाई तिथि तीन दिन के अंदर ही निधारित होगी एवं निषपादन 60 दिनों के अंदर होगा I
धारा 14
मजिस्ट्रेट पीड़िता को सेवाप्रदाता से परार्मश लेने के निदेशक दे सकेगा I
धारा 16
पक्षकार की यदी इच्छा हो कार्यवाही बंद कमरे में भी हो सकतीहै I
धारा 17, 18
पीड़िता को साझी गृहस्थी मे रहने का अधिकार होगा और कानूनी प्रक्रिया के अतिरिक्त उसका निषकासन नही किया जा सकेगा, उसके पक्ष मे संरक्षण आदेश पारित किया जा सकेगा I
धारा 19
पीड़िता और उसके संतान को संरक्षण प्रदान करते हुए संरक्षण देने का स्थानिय थाना को निदेशक देने के साथ निवास आदेश एवं किसी तरह के भुगतान के संबंध में भी आदेश पारित किया जा सकता है और संपत्ति का कब्जा वापस करने का भी आदेश दिया जा सकेगा I
धारा 20,22
पीड़िता या उसके संतान को घरेलू उत्पाद के बाद किये गए र्खच एवं हानी की पूर्ति के लिए मजिस्ट्रेट निदेश दे सकेगा और भरण पोषण का भी आदेश दे सकेगा एवं प्रतिकर आदेश भी दिया जा सकता है I
धारा 21
अभिरक्षा आदेश संतान के संबंध मे दे सकेगा या संतान से भेंट का आदेश मजिस्ट्रेट दे सकेगा|
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम के नियम 9 और नियम 13 के अनुसार आपातकालीन मामलों मे पुलिस की सेवा की मांग संरक्षण अधिकारी या सेवाप्रदाता द्वारा की जा सकती है और परामर्शदाताओं की नियुक्ति संरक्षण अधिकारी द्वारा उपलब्ध सूची मे से की जाएगी I
कड़े कानून होने के बावजूद महिला से घरेलू हिंसा के मामले आम है इसका मुख्य कारण है सामाजिक सोच, हमें इसमें बदलावलाने की जरूरत है जिस देश में औरत को देवी के रूप मे पूजा जाता है वहीं घर की लक्ष्मी से हिंसाकारित करना बेहद अपमानजनक और भारत की विश्व मे छवि धूमिल करने वाली बात है.जरूरत है इस मानसिकता मे बदलाव की और बदलाव हमारे घरो से ही शुरू होना आवश्यक है, घर के बेटों को लड़कियों की इज़्ज़त करना सिखाकर I पुरूष और महिला एक दूसरे के पूरक हैं यह समझना आवश्यक है दोनो को दोनों की समान आवश्यकता है और समान अधिकार प्राप्त है I घर के काम  मे जितना योगदान एक  महिला का होता है उतना ही पुरूष का भी तो इसको लेकर हिंसाकारित करना कोई समझदारी नही I यह सोच परिवार से शुरू होकर राष्ट्र व्यापीत भी बनेगी जब एक बेटा अपने घर मे अपने महिला को सम्मान देना शुरू करेगा I
अधिवक्ता एवं लेखिका
जूही रघुवंशी
 


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