प्रत्याशी चयन में भाजपा ने कांग्रेस को पीछे छोड़ा -अरुण पटेल
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20-08-2023 07:27 AM
भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से लगभग तीन महीने पूर्व अपने उम्मीदवारों की पहली सूची की घोषणा कर राजनीति के मैदान में एक प्रकार से धमाका ही कर दिया है और इस मामले में कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ दिया है। कई हारे हुए उम्मीदवारों पर उसने पुनः दांव लगाया है तो कुछ नये चेहरे भी मैदान में उतारे हैं। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घेराबंदी करने के लिए उनके करीबी रिश्तेदार और दुर्ग के सांसद विजय बघेल को उनके खिलाफ मैदान में उतारा है। इतने पूर्व उम्मीदवार घोषित करने का जो चुनावी दांव भाजपा ने चला है उसमें वह कितनी सफल रही यह तो इन क्षेत्रों के चुनाव नतीजों से ही पता चल पायेगा कि उसने जिन चेहरों को अपनी पसंद बनाया उसमें से कितने विधानसभा में नजर आयेंगे और कितने पराजय की सूची के चेहरे बनकर रह जायेंगे। निश्चित तौर पर इन क्षेत्रों में टिकटों से जो नाराज हो रहे होंगे उन बागियों को मनाने के लिए भाजपा के पास पर्याप्त समय रहेगा। कांग्रेसी नेता मध्यप्रदेश में लगातार यह दावा कर रहे थे कि वह काफी पहले अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर देंगे लेकिन इस मामले में भाजपा ने उसे काफी पीछे छोड़ दिया है। मध्यप्रदेश की सूची से एक संकेत यह अवश्य मिला है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जितने विधायक गये थे उन्हें पुनः टिकट मिलने की गारंटी नहीं है, खासकर उन चेहरों को जो उपचुनाव में पराजित हो गये। सिंधिया के साथ कांग्रेस से गये रणवीर जाटव टिकट से वंचित हो गये हैं हालांकि वहां के मतदाताओं ने उपचुनाव में उनकी विधायकी पहले ही छीन ली थी। भाजपा ने एक बागी नेता को भी तरजीह दी है जिससे कुछ ऐसे लोगों को जो बागी रहे हैं या जिनके 2018 में टिकट कट गए थे, फिलहाल अंतिम सूची घोषित होने तक उनके चेहरे मुरझायेंगे नहीं।
छत्तीसगढ़ में तो भाजपा ने भूपेश बघेल को घेरने की कोशिश की है क्योंकि विजय बघेल वहां से एक चुनाव भूपेश बघेल को हरा चुके हैं। हालांकि अब वहां का परिदृश्य काफी बदला हुआ है क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश बघेल ने अपने क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी है। दूसरे कांग्रेस में फिलहाल गुटबंदी अपेक्षकृत काफी कम है और टी एस सिंहदेव उपमुख्यमंत्री बनने के बाद से काफी बदल गये हैं तथा आपस में उनके स्वर मिल रहे हैं। इसे चुनावी मजबूरी माना जाये या समय की मांग कांग्रेस ने अपने घर को चुस्त-दुरुस्त करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। वैसे मध्यप्रदेश में भी कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री बनने के बाद आपसी गुटबंदी के कारण सरकार गंवाने के बाद दिग्विजय सिंह और कमलनाथ दोनों ही फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह उर्फ राहुल भैया तथा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव भी पार्टी की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि सब कुछ ठीक चल रहा है, बीच-बीच में कुछ युवा व उत्साही नेता घुमा-फिराकर ऐसी मांग कर देते हैं जिससे लगे कि कमलनाथ की जगह कोई दूसरा चेहरा होना चाहिए। पूर्व मंत्री उमंग सिंघार ने मांग कर दी थी कि कांग्रेस को किसी आदिवासी चेहरे को आगे कर चुनाव मैदान में जाना चाहिए। मध्यप्रदेश में सत्ता का रास्ता आदिवासियों के बीच से होकर गुजरता है और समय-समय पर ऐसी मांग होती रही है, लेकिन मुख्यमंत्री की रेस में शामिल आदिवासी नेताओं को अंततः उपमुख्यमंत्री के पद से संतुष्ट होना पड़ा।
भाजपा की मध्यप्रदेश की जो पहली सूची घोषित हुई है उस पर साफ-साफ अमित शाह की छाप और उन्हें मिले फीडबैक का असर देखा जा सकता है। जल्दी नाम आने से एक बात तो यह साफ हुई कि भाजपा हारी हुई 39 सीटों को जीतने के प्रति बेहद गंभीर है तो दूसरी ओर जल्द नाम सामने आ जाने के बाद डेमेज कंट्रोल में भी आसानी रहेगी। 2018 के विधानसभा चुनाव में महेश्वर से कांग्रेस की विजयलक्ष्मी साधौ चुनाव जीती थीं और उन्होंने भाजपा प्रत्याशी भूपेन्द्र आर्य को पराजित किया था लेकिन उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के ही राजकुमार मेव थे वह विद्रोही होने के बावजूद भी इस बार टिकट पा गये क्योंकि उन्हें भूपेन्द्र आर्य से अधिक वोट मिले थे। इसी प्रकार गोहद क्षेत्र से 2018 का चुनाव हारे लालसिंह आर्य पर भाजपा ने दांव लगाया है क्योंकि इस सीट पर रणवीर जाटव जिन्होंने उन्हें पराजित किया था वे उपचुनाव हार गये और अब उनके हाथ से यहां की दावेदारी भी चली गयी। पिछोर से प्रीतम लोधी टिकट पा गये हैं हालांकि कथावाचकों पर विपरीत टिप्पणी करने के कारण भाजपा ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था, वे पार्टी में वापस लौटे और पार्टी ने उन्हें टिकट थमा दिया है। उमा भारती के वे खास समर्थक रहे हैं लेकिन टिकट भले ही पा गये हों वहां पर वे जीत का परचम लहरा पायेंगे यह कोई दावे से नहीं कह सकता। क्योंकि कांग्रेस के के. पी. सिंह की इस क्षेत्र पर मजबूत पकड़ है।
राजधानी भोपाल में भाजपा ने एक नया प्रयोग किया है और उसने कांग्रेस के दो अल्पसंख्यक विधायकों के मुकाबले बहुसंख्यक समाज के नेताओं को टिकट दी है। भोपाल मध्य सीट से कांग्रेस के विधायक आरिफ मसूद हैं उनके खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व राज्यपाल रहे गोविंद नारायण सिंह के बेटे ध्रुव नारायण सिंह पर भरोसा जताया है। यह एक जोखिमपूर्ण फैसला है क्योंकि ध्रुव नारायण सिंह मसूद हत्याकांड व शेहला मसूद और जाहिदा परवेज से अपनी नजदीकियों के चलते आरोपों से घिरे रहे हैं। उन्हें भाजपा ने इस बार मैदान में उतारा है, हालांकि ध्रुव नारायण सिंह इस विवाद के अलावा इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं और सर्वे रिपोर्ट में उनका ही नाम टक्कर देने वालों में माना गया। भोपाल उत्तर से कांग्रेस के दिग्गज अल्पसंख्यक नेता और पूर्व मंत्री आरिफ अकील के क्षेत्र में ताल ठोंकते भोपाल के पूर्व महापौर आलोक शर्मा नजर आयेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खासमखास माने जाने वाले आलोक शर्मा गोविंदपुरा सीट से दावेदारी करते रहे हैं। काफी लम्बे समय के बाद उत्तर सीट में भाजपा अपनी संभावनायें चमकीली देख रही है क्योंकि आरिफ अकील के उत्तराधिकारी की जंग में उनका परिवार ही आपस में गुत्थमगुत्था हो रहा है। भाजपा ने जो 39 उम्मीदवार घोषित किए हैं उनमें से केवल दो उम्मीदवार ऐसे हैं जिनकी आयु 70 साल से अधिक है। इस सूची ने भाजपा के उन नेताओं की उम्मीदें जगा दी हैं जिनकी टिकट कटेगी तो उनके परिवार के लोगों को टिकट मिलने से परहेज नहीं किया जायेगा, भले ही प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार व परिवारवाद से सतत संघर्ष की बात कर रहे हों। ऐसे में छतरपुर जिले के महाराजपुर में पूर्व विधायक और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे मानवेन्द्र सिंह के पुत्र कामाख्या को टिकट दे गई है जिससे अन्य नेता पुत्र जो टिकट की राह देख रहे थे उनकी राह कुछ आसान हो गयी है कि यदि समीकरण अनुकूल रहे तो दूसरे नेता पुत्र भी मैदान में उतर सकते हैं। मध्य प्रदेश के 39 उम्मीदवारों में से केवल 11 नये चेहरों पर दांव लगाया गया है जबकि शेष हारी बाजी जीतकर पार्टी की चुनाव संभावनाओं को चमकीला बनाने मैदान में उतरेंगे।
और यह भी
घोषित उम्मीवारों की सूची के बारे में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा का कहना है कि पीएम नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव समिति की बैठक में मध्यप्रदेश की 39 सीटों के नाम घोषित किए गए हैं ये चुनाव जीतेंगे इसके लिए शुभकामनाएं देता हूं, इस बार प्रदेश में पार्टी प्रचंड जीत का रिकार्ड बनायेगी तो वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ मानते हैं कि पहले टिकट घोषित करके भाजपा अपनी ही चाल में फंस गयी है। भाजपा में ही जगह-जगह घोषित उम्मीदवारों का विरोध हो रहा है। वैसे मैं इनके इस टिकट वितरण पर कुछ नहीं कहना चाहता क्योकि यह उनका आंतरिक मामला है। जहां तक विष्णुदत्त शर्मा के दावे का सवाल है वह इस बात पर अधिक निर्भर करेगा कि उनकी बातों, दावों, वायदों और शिवराज सरकार की उपलब्धियों पर जनता अपनी क्या राय देती है।
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