महाराष्ट्र में इन दिनों राजनीतिक गलियारों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार और महा विकास अघाडी सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे उनके भतीजे अजित पवार की भावी राजनीतिक दिशा क्या होगी इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। इसका कारण यह है कि अजित पवार पर भाजपा डोरे डाल रही है तो वहीं दूसरी ओर शरद पवार से उद्योगपति गौतम अदानी की मुलाकात हुई है। अजित पवार के इस दावे के बाद कि वह मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने को तैयार हैं, से राजनीतिक गलियारों में अटकलबाजी का दौर चालू हो गया है। उद्धव ठाकरे के करीबी नेता संजय राऊत ने यह कहकर माहौल में गर्माहट पैदा कर दी कि अजित पवार में मुख्यमंत्री बनने का सामर्थ्य है। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को लेकर लगातार पिछले दिनों से यह चर्चा आम रही है कि अजित पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी छोड़कर अपने 40 विधायकों के साथ भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने वाले हैं और इसके कारण महाराष्ट्र में महा विकास आघाडी गठबंधन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
इस पूरे विवाद के पीछे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार व राष्ट्रवादी कांग्रेस के ही नेता व महाविकास अघाड़ी के विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अजित पवार सहित सांसद सुप्रिया सुले व उद्धव गुट के नेता व सांसद संजय राउत के बयानों ने राजनैतिक वातावरण में अधिक भ्रम पैदा किया। महा विकास अघाड़ी के इन नेताओं के बयानों का भाजपा ने सबसे ज़्यादा राजनैतिक फ़ायदा उठाया जिसके कारण राकांपा को लेकर पूरे महाराष्ट्र में यह चर्चा होने लगी कि अजित पवार भाजपा की सरकार में शामिल हो रहे हैं और शरद पवार भी भाजपा के समर्थन में है। राजनीति में समय का अपना अलग महत्व होता है और यह चर्चा ऐसे समय में शुरू हुई जब कर्नाटक में विधानसभा चुनावों में भाजपा के बड़े नेता पार्टी से बग़ावत कर रहे थे। महा विकास अघाड़ी पूरे महाराष्ट्र में रैली कर रही थी। इन रैलियों में बहुत बड़ी संख्या में जनता हिस्सेदारी कर रही थी और महाराष्ट्र की एकनाथ शिन्दे सरकार पर कुछ नहीं करने का आरोप लग रहा था।
विपक्षी दलों की छोटी से छोटी गलती को बड़ा करके उन पर प्रहार करने में माहिर भाजपा ने इस मौक़े का भरपूर फ़ायदा उठाया और बिना सामने आये ऐसा माहौल पैदा कर दिया जिसमें लगने लगा कि महा विकास अघाड़ी टूट के कगार पर है। एमवीए के नेताओं के नासमझी भरे बयान ही उन पर भारी पड़ने लगे। इसी बीच गौतम अडाणी की शरद पवार के मुम्बई स्थित निवास पर 2 घंटे से ज़्यादा चली बैठक भी टूट की अफ़वाहों को आगे बढ़ाने में मददगार बनी।इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज़्यादा राजनैतिक समझदारी का परिचय कांग्रेस की ओर से दिया गया।उनके नेताओं ने स्थिति पर निगाह रखते हुये खुद को इससे दूर रखा फलस्वरूप सफ़ाई देने का सारा दारोमदार राकांपा पर आ गया और संजय राउत के अजित पवार पर प्रहार होते रहे। सब जानते हैं कि सरकार संख्या बल पर बनती है सिर्फ़ बयानों से नहीं क्योंकि किसी ने भी विधानसभा में विधायकों की संख्या और उनकी विभिन्न सम्भावानाओं पर विचार ही नहीं किया। कहा जाने लगा कि सुप्रीम कोर्ट 16 विधायकों को अयोग्य घोषित कर सकता है कुछ का कहना था शिन्दे की शिवसेना के सभी 40 विधायक ही अयोग्य हो सकते है। इन चर्चाओं के बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बृजमोहन श्रीवास्तव ने दावा ठोक दिया कि शिन्दे- फडनवीस को 16 विधायकों के अयोग्य होने पर भी किसी और दल से विधायक तोड़ने की ज़रूरत नहीं है। उनके इन दावों की पड़ताल की गई तब सामने आया कि वाक़ई शिन्दे सरकार को बाहर से किसी मदद की ज़रूरत ही नहीं है। यहां विधानसभा में कुल 288 विधायक हैं और सरकार बनाने के लिये 145 विधायक चाहिए जबकि शिन्दे सरकार को शिवसेना के 40 भाजपा के 105 व 17 अन्य विधायकों का समर्थन प्राप्त है जो कुल 162 होते है । ऐसे में यदि यह मान भी लिया जाये कि शिन्दे सहित 16 विधायक अयोग्य घोषित हो जाते हैं तो सदन 272 का हो जायेगा तब सरकार के लिये 137 विधायक चाहिए होगें। ऐसी स्थिति मे शिन्दे तो सरकार से बाहर हो जायेगें मगर शिवसेना के 24 विधायक, भाजपा व अन्य की संख्या कुल 136 होती है ऐसे में सिर्फ़ एक विधायक की कमी को निर्दलीयों से समर्थन लेकर पूरा कर सरकार चलती रहेगी। ऐसी स्थिति में एकनाथ शिन्दे के स्थान पर देवेंद्र फडनवीस को मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा मिल सकता है। वहीं अगर शिन्दे की शिवसेना के 40 विधायक ही अयोग्य घोषित हो जाते हैं तो सदन 248 का रह जायेगा ऐसे में सरकार बनाने के लिये 125 विधायकों की ज़रूरत है जो महाविकास अघाड़ी के पास हैं। यदि ऐसी परिस्थिति निर्मित होती है तो फिर ऐसे में अजित पवार को मुख्यमंत्री बनने के लिये पार्टी छोड़ने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी, क्योंकि “जिसके विधायक ज़्यादा उसका मुख्यमंत्री“ के फ़ार्मूले पर राकांपा के विधायक सबसे अधिक होने के कारण अजित पवार को मुख्यमंत्री बनाना ही पड़ेगा। इन दोनों सम्भावनाओं की कसौटी पर सरकार बनाने के लिये अजित पवार को लाभ पार्टी नहीं छोड़ने पर ही मिल सकता है। अब अगर यह मान भी लिया जाये कि अजित पवार भविष्य की किसी सम्भावना के कारण भाजपा के साथ जा सकते हैं तो उन्हें अपनी पार्टी के 38 विधायक तोड़ने होगें जो शरद पवार के रहते सम्भव नहीं है क्योंकि शरद पवार सिर्फ़ 15 विधायकों के नेता नहीं है। ऐसे में अजित पवार व उनके साथ जाने वाले विधायकों की सदस्यता ही ख़तरे में पड़ जायेगी और भविष्य में उन्हें पार्टी तोड़ने के लिये ऐसे ही आरोपों का सामना करना पड़ेगा जो आज एकनाथ शिन्दे पर लग रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय प्रवक्ता बृजमोहन श्रीवास्तव की यह टिप्पणी ज्यादा सटीक प्रतीत होती है कि अजित दादा ने अपने राजनैतिक जीवन में सिर्फ़ एक बार 3 दिन के लिये ही पार्टी छोड़ी थी जो एक राजनैतिक रणनीति का हिस्सा थी इसके अलावा उनकी निष्ठा हमेशा पार्टी नेतृत्व व पार्टी के साथ ही रही है। ऐसे में उन पर पार्टी तोड़ने या छोड़ने की बात में सच्चाई कम ही नजर आती है क्योंकि वह राकांपा के प्रमुख स्तंभ हैं और महा विकास अघाड़ी को मज़बूत करने के लिये लगातार काम कर रहे हैं।
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