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अपनी अपनी छवि बचाने की जुगत में भाजपा-कांग्रेस

Updated on 27-12-2021 02:35 PM
मध्यप्रदेश में पंचायत चुनावों को लेकर संशय की स्थिति उत्पन्न हो गयी है क्योंकि एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी का आरक्षण समाप्त कर दिया है तो वहीं दूसरी ओर राज्य विधानसभा ने सर्वानुमति से एक अशासकीय संकल्प जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रस्तुत किया था उसे पारित कर दिया । कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए ही यह मुद्दा एक प्रकार से गले की हड्डी बनता जा रहा है क्योंकि प्रदेश में ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है। फिलहाल तो केवल यही संभावना दिखती है कि ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव न कराने की जो  मंशा सत्ताधारी दल ने जाहिर की है उसे पूरा करने के लिए कोरोना की तीसरी लहर ओमीक्रोन के खतरे को बढ़ता हुआ देखकर इन चुनावों को उस समय तक टाल दिया जाए जब तक कि ओबीसी के आरक्षण के मामले में सर्वोच्च न्यायालय से कोई स्थायी राहत न मिल जाये। राज्य सरकार ने पहली बार ओबीसी मतदाताओं की गिनती करने का कार्य प्रारंभ कर दिया है ताकि अपने पक्ष को सुप्रीम कोर्ट में वह पूरी ताकत से रख सके। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी कह चुके हैं कि इस मामले में कांग्रेस राज्य सरकार को पूरा सहयोग करेगी।
       मध्यप्रदेश में पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा समाप्त करने के बाद भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर जो आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं उनका केंद्रीय स्वर यही है कि दोनों एक दूसरे को इसके लिए दोषी ठहरा कर अपने को ओबीसी का सबसे बड़ा हितचिंतक साबित कर सकें। जहां तक कांग्रेस का सवाल है भाजपा के आरोपों के संदर्भ में उसकी स्थिति होम करते हाथ जलने जैसी हो गयी है और कांग्रेस चाहे जितनी सफाई दे लेकिन यह भी सही है कि सुप्रीम कोर्ट तक उसके ही नेता गये थे और उसके सांसद विवेक तन्खा पैरवी कर रहे थे। हालांकि कांग्रेस ने भी केवल रोटेशन की ही मांग की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर ही रोक लगा दी। पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर चल रही माथापच्ची के बीच राज्य सरकार ने पहली बार आदेश जारी कर ओबीसी मतदाताओं की गिनती का काम दस दिन के भीतर पूरा करने के लिए 22 हजार पंचायत सचिवों, 20 हजार रोजगार सहायक और 12 हजार पटवारियों को काम पर लगा दिया है और दस दिन के भीतर इसे अंजाम तक पहुंचाने का आदेश दिया है। 23 दिसम्बर को कलेक्टरों को आदेश भेज दिए गए हैं और उनसे 7 जनवरी तक पूरी जानकारी मांगी गयी है। सभी ग्राम पंचायतों की वार्ड इकाईवार और पंचायतवार गणना होगी। इनमें जितने भी पिछड़े वर्ग के मतदाता हैं उनकी एक्सल सीट तैयार होगी और यही सीट सरकार के पास पहुंचेगी। सरकार ने इस गिनती के पीछे मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग के पत्र का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि ओबीसी आयोग पिछड़े वर्ग की जातियों का अध्ययन करना चाहता है। ओबीसी मतदाताओं की गिनती जल्द से जल्द हो जाती है तो एक बड़ा डाटा बैंक तैयार हो जायेगा, इसके बाद जरुरत पड़ी तो इसे सुप्रीम कोर्ट में भी रखा जा सकेगा। इससे पंचायत चुनावों में ओबीसी वोटरों और आरक्षण की तस्वीर साफ हो सकेगी। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ओबीसी आबादी जिले व तहसीलवार तैयार कर एक रिपोर्ट तैयार करेगा। आयोग के अध्यक्ष  गौरीशेकर बिसेन का कहना है कि इस काम में तीन माह का समय लगेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों में ट्रिपल टेस्ट लागू करने के लिए राज्य स्तरीय आयोग के गठन करने का उल्लेख है। यह आयोग इस वर्ग की आबादी की गणना कर सिफारिश सरकार को देगा। इसके आधार पर आरक्षण तय किया जायेगा।
शिवराज के सामने छवि बचाने की चुनौती
    पंचायत चुनाव में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षित पदों पर रोक लगाये जाने से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने अपनी ओबीसी हितैषी छवि बचाने का संकट पैदा हो गया है क्योंकि वे स्वयं ओबीसी वर्ग से आते हैं। देखने वाली बात यही होगी कि आखिर वह अपनी इस छवि को कैसे बचा पाते हैं। कांग्रेस तो आरोप लगा ही रही है लेकिन इन वर्गों से आने वाले भाजपा नेता भी शिवराज को घेरने में लगे हुए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने साफतौर पर कहा है कि आरक्षण के बिना चुनाव होते हैं तो यह 70 प्रतिशत आबादी के खिलाफ होगा। पिछले कुछ दिनों से राज्य में राजनीति का जो केंद्रबिन्दु आदिवासियों पर था उसके स्थान पर अब ओबीसी आरक्षण का मुद्दा आ गया है और लगता है कि अब उमा भारती इसको लेकर कोई मोर्चा खोल सकती हैं क्योंकि वे भी इसी वर्ग से आती हैं। भाजपा में वापसी के बाद से शिवराज की सत्ता को निष्कंटक बनाने के उद्देश्य से भाजपा हाईकमान ने उमा भारती को उत्तरप्रदेश की राजनीति में सक्रिय कर दिया था और वह झांसी से लोकसभा सदस्य रही हैं तथा इसी अंचल की एक सीट से विधायक भी रह चुकी हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से अब वह प्रदेश में सक्रिय हैं। प्रहलाद पटेल केंद्र में मंत्री हैं और वह भी पिछड़े वर्ग के एक बड़े नेता हैं तथा शिवराज विरोधी लॉबी में माने जाते हैं। तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश में आरक्षण की सीमा बढ़ाये जाने का श्रेय कमलनाथ ले रहे हैं। स्वाभाविक तौर से उमा भारती के ट्वीट के बाद शिवराज पर राजनीतिक दबाव बढ़ा है। हालांकि भाजपा नेता आरक्षण समाप्त होने का दोष कांग्रेस नेताओं पर मढ़ रहे हैं लेकिन समस्या में शिवराज अधिक हैं क्योंकि कांग्रेस उन पर पहले से ही यह आरोप लगा रही है कि डेढ़ दशक तक मुख्यमंत्री रहने के बाद भी उन्होंने ओबीसी के आरक्षण की सीमा को नहीं बढ़ाया। ओबीसी को सरकारी नौकरियों में 14 प्रतिशत आरक्षण दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में दिया गया था और कमलनाथ ने डेढ़ दशक बाद जब फिर कांग्रेस की सरकार बनी तब 2019 में इसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया। प्रदेश में 20 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों को व 17 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति वर्ग को पहले से ही दिया जा रहा है और ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाये जाने से आरक्षण की कुल सीमा 50 प्रतिशत की सीमा को लांघ गयी। पंचायत चुनाव में भी आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है और सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति भी इस बढ़े हुए आरक्षण पर ही है और यही अतिरिक्त आरक्षण शिवराज के लिए लगातार राजनीतिक चुनौती बन रहा है। यही कारण है कि ओबीसी के बीच भी शिवराज की हितैषी छवि पर सवाल खड़े होने लगे हैं।
और यह भी
    शिवराज सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर आरक्षण समाप्त किए जाने के आदेश को संशोधित करने का आग्रह किया है तो वहीं दूसरी ओर शिवराज ने अपनी छवि बचाने के लिए विधानसभा में भी संकल्प पारित करा लिया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने भी उनका इसमें साथ दिया। विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प पारित हो गया कि ओबीसी आरक्षण के बिना पंचायत चुनाव न कराये जायें। विधानसभा में पारित यह संकल्प चुनाव प्रक्रिया को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करता है। यह सिर्फ ओबीसी हितचिंतक छवि बचाने की कवायद मात्र है। इसी क्रम में सरकार ने लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली राज्य सेवा परीक्षा में भर्ती की प्रक्रिया आरम्भ कर दी है यह भर्ती प्रक्रिया भी आरक्षण की सीमा बढ़ाये जाने के कारण उत्पन्न हुई वैधानिक स्थिति के कारण रुकी हुई थी। इसी साल अगस्त माह में तत्कालीन महाधिवक्ता ने सरकार को अभिमत दिया था कि हाईकोर्ट की रोक पीजी नीट परीक्षा को लेकर है अन्य किसी सरकारी भर्ती या शैक्षणिक संस्था में प्रवेश के लिए नहीं है। इसी आधार पर राज्य सरकार ने कमलनाथ सरकार द्वारा बढ़ाये गये 27 प्रतिशत आरक्षण को लागू किया है।
अरुण पटेल,लेखक, प्रबंध संपादक, सुबह सवेरे   (ये लेखक के अपने विचार है )

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