बड़ा सवाल: क्या अब किसानों की राजनीति करेंगे अरुण यादव?
Updated on
27-12-2020 03:05 PM
एक तरफ केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि सम्बंधी विधेयकों को वापस लेने के लिए किसान दबाव बना रहे हैं तथा आंदोलन कर रहे हैं, ऐसे में पूर्व प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव मध्यप्रदेश में किसानों को एकजुट करने के लिए पूरी ताकत से भिड़ गए हैं। इससे ऐसा लगता है कि क्या अब अरुण यादव किसानों और सहकारिता क्षेत्र की राजनीति करेंगे? 28 दिसम्बर को राज्य विधानसभा के सामने ट्रेक्टर से विधानसभा जाने और किसानों को ट्रेक्टर सहित भोपाल बुलाने की कांग्रेस की जो योजना है उसके तहत किसानों को एकजुट करने के लिए जो रणनीति बनाई जा रही है उसमें सबसे अग्रणी भूमिका में अरुण यादव हैं। विगत दिनों उन्होंने किसान नेताओं से भोपाल में कृषि कानूनों के बारे में चर्चा की और इन नेताओं से चर्चा के दौरान अपनी बात रखते हुए सुझाव दिया कि इन काले कानूनों पर बड़ा आंदोलन करना चाहिये। इस पर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया कि अरुण यादव को अपने पिता स्व. सुभाष यादव की तरह किसानों के नेतृत्व को बढ़ाते हुए आगे आना चाहिए। इसके साथ ही कांग्रेस ने 28 दिसम्बर को विधानसभा का घेराव करने की जो योजना बनाई है उसे सफल बनाने की कमान अरुण यादव को सौंप दी। यादव के साथ पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक सज्जन सिंह वर्मा भी इसमें सहयोग कर रहे हैं। यादव की पृष्ठभूमि एक बड़े किसान नेता और सहकारिता के पुरोधा सुभाष यादव के बेटे की है इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या अब वे किसानों और सहकारिता क्षेत्र की राजनीति करेंगे। कांग्रेस को भी एक किसान नेता की जरुरत है और उसे लग रहा है कि इस कमी को अरुण यादव पूरा कर सकते हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बारे में कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में जाने की चल रही अटकलों के बाद उनके स्थान पर कौन प्रदेश अध्यक्ष होगा इसकी तलाश भी अंदरखाने की जाने लगी है।
पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा माने जाने वाले चौधरी चरण सिंह की जयंती पर अरुण यादव ने प्रदेश के किसानों के नाम एक भावुक संदेश में कहा था कि देश के अन्नदाता किसान केंद्रीय कानूनों के विरोध में दिल्ली व देश में अन्य जगहों पर संघर्ष कर रहे हैं। इस दौरान जिन 35 किसानों का आंदोलन स्थल पर निधन हुआ है और अपनी जान गंवाई है उन्हें मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। उन्होंने कहा कि इन किसानों के संघर्ष में पूरा देश इनके साथ खड़ा है। इसी संदर्भ में 28 दिसम्बर को मध्यप्रदेश में राज्य विधानसभा का प्रदेश के अन्नदाताओं के साथ हम लोग घेराव करने जा रहे हैं और सभी साथियों से अपील है कि वे अधिक से अधिक संख्या में अपने ट्रेक्टर ट्राली व बैलगाड़ियों से भोपाल पहुंचे तथा घेराव को सफल बनायें। अब देखने वाली बात यही होगी कि विधानसभा को घेरने और कमलनाथ के नेतृत्व में विधायकों के ट्रेक्टर पर सवार होकर विधानसभा पहुंचने की योजना कैसे सफल होगी क्योंकि भोपाल में विधानसभा परिसर से पांच किमी की दायरे में ट्रेक्टर ट्राली, तांगा, बैलगाड़ी आदि का प्रवेश जिला प्रशासन द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है। विधानसभा के घेराव के दो दिन पूर्व पत्रकारों से चर्चा करते हुए अरुण यादव और सज्जन सिंह वर्मा ने कहा कि 19 दिसम्बर को प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के निर्देश पर प्रदेश भर में विरोध दिवस मनाते हुए उपवास किया गया था और उसके अगले चरण में 28 दिसम्बर को विधानसभा सत्र के पहले दिन कांग्रेस के सभी विधायक किसान आंदोलन के समर्थन में ट्रेक्टर ट्रालियों से विधानसभा की ओर कूच करेंगे, इसका नेतृत्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ करेंगे।
किसके हाथ होगी प्रदेश कांग्रेस की कमान
सोनिया गांधी के अति विश्वासपात्र कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा के एक माह के भीतर निधन हो जाने के बाद अब यह सवाल चल रहा है कि कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में कमलनाथ या राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत में से किसे सोनिया गांधी ताकतवर स्थिति में स्थापित करती हैं। राहुल गांधी भी यदि कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो भी व्यापक फेरबदल की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि कांग्रेस को अपने मजबूत गढ़ों को बचाने की भी कवायद करना है। यदि कमलनाथ दिल्ली में स्थापित हो जाते हैं तो फिर मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए एक अदद चेहरे की जरुरत होगी। वैसे भी इन दिनों कांग्रेस की राजनीति में मध्यप्रदेश के दो नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ही राष्ट्रीय फलक पर सक्रिय हैं इसलिए प्रदेश अध्यक्ष के चयन में दिग्विजय की सलाह भी काफी मायने रखेगी। दिग्विजय ने अपने ट्वीट में जिस ढंग से अरुण यादव को किसानों का नेतृत्व करने की सलाह दी है उससे यह संकेत मिलता है कि यदि फिर से अरुण यादव को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाता है तो उनके नाम पर दिग्विजय सिंह भी सहमत हो जायेंगे। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी की राय इस मामले में काफी महत्वपूर्ण होगी। जहां तक राजनीतिक विरासत का सवाल है तो एक मजबूत दावेदार के रुप में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का नाम उभर कर सामने आता है क्योंकि वह कांग्रेस के हैवीवेट राजनेता रहे अर्जुन सिंह की विरासत के राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं, इस कारण पूरे प्रदेश में अजय सिंह के समर्थकों की भी अच्छी-खासी संख्या है। राजनीतिक विरासत के हिसाब से उनके साथ ही अरुण यादव का भी इस दृष्टि से दावा काफी मजबूत है कि एक तो वे पिछड़ी जाति के हैं और लगभग चार वर्ष तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं तथा दूसरे वह किसानों एवं सहकारिता नेता के रुप में सुभाष यादव की विरासत के उत्तराधिकारी हैं। प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल में अरुण यादव के भी हर जिले में समर्थक बने हैं। चूंकि युवा कांगे्रस के अध्यक्ष आदिवासी वर्ग के विक्रान्त भूरिया चुने जा चुके हैं इसलिए प्रदेश अध्यक्ष का पद यदि किसी दलित वर्ग के कोटे में जाता है तब ऐसी स्थिति में सज्जन सिंह वर्मा प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कमलनाथ की पहली पसंद हो सकते हैं पर इसके लिए दिग्विजय सिंह की सहमति भी जरुरी होगी। युवा चेहरे के रुप में जीतू पटवारी भी एक प्रमुख दावेदार हैं और वह एक ओर पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं तो दूसरी ओर वह राहुल गांधी के भी काफी नजदीक हैं इसका उन्हें फायदा मिल सकता है तथा उनके नाम पर कमलनाथ के साथ ही दिग्विजय सिंह भी आसानी से सहमत हो जायेंगे। क्षेत्रीय संतुलन कांग्रेस हमेशा ध्यान रखती है, नेता प्रतिपक्ष किस अंचल का बनता है उस पर भी यह काफी कुछ निर्भर करेगा कि दूसरे अंचल का प्रदेशाध्यक्ष बने। अभी तक जो दावेदार उभर कर सामने आये हैं उनमें अजय सिंह रेवांचल, अरुण यादव मालवा-निमाड़, जीतू पटवारी तथा सज्जन वर्मा मालवांचल का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि महाकौशल से कोई प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है तो फिर युवा चेहरे के रुप में तरुण भानोत तथा पुराने अनुभवी नेता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति के नाम पर भी विचार हो सकता है, प्रजापति दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
और यह भी....
कमलनाथ केन्द्र की राजनीति में जायें या प्रदेश अध्यक्ष बने रहें, लेकिन कांग्रेस को राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए एक चेहरे की तलाश है। कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने के इच्छुक बताये जाते हैं इसलिए नेता प्रतिपक्ष के पद पर उनकी पहली पसंद बाला बच्चन रहे हैं लेकिन विक्रान्त भूरिया के युवा कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद उनकी संभावनाएं कम हो गयी हैं। अब कमलनाथ की पहली पसंद पूर्व मंत्री बृजेन्द्र सिंह राठौर बताये जाते हैं जबकि डॉ. गोविंद सिंह का दावा भी इस पद पर काफी मजबूत रहा है और वह एक तो दिग्विजय सिंह के खास समर्थक हैं तथा उन्हें अजय सिंह भी पसंद करते हैं। ग्वालियर-चंबल अंचल में अब जो कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक बचे हैं उनमें गोविंद सिंह आते हैं। दलित वर्ग से नेता प्रतिपक्ष डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ का दावा भी काफी मजबूत है क्योंकि एक तो वह महिला वर्ग से आती हैं और दूसरे कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और सुरेश पचौरी की सहमति भी उनके नाम पर आसानी से हो जायेगी।
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