बड़े बुजुर्ग और ज्ञानी सदैव कहते हैं कि आपस में भावनाओ की कद्र करो। सोचने वाली बात है की भावना किस प्रकार की और कैसी है मासूमियत भावना की सभी कद्र करते हैं। भावना अच्छी या खराब भी हो सकती है, भावना मतलबी हो सकती है, दयावान भी हो सकती है। कई बार किसी की भावना होती कुछ और है लेकीन प्रदर्शित नहीं होती की उसके मन की क्या है। बड़ा संशय होता है कि किन भावनाओ की कद्र करें, किन की नहीं। भावनाए दूसरे पर थोपी नहीं जा सकती। कहना यह चाहिए सदभावना की कद्र करो तो न सिर्फ कद्र करो बल्कि उसे अपनाओ। सदभावना समाज की रचना करती है, इंसान को इंसानियत से जोड़ती हैं, सदभावना से दिया उपहार स्वीकार करना चाहिए। दुर्भावनाए कूटनीति को जन्म देती है। अकसर त्याग भावना पति पत्नी, माता पिता, भाई बहन या परिवार के बीच जुडी रहती है। कई बार रिश्तेदार, मित्र, व्यापारी एवं प्रेमी प्रेमिका के बीच भावना में ईमानदारी नहीं रहती। नेता एवं पुलिस जनता के प्रति सदभावना की प्रतिज्ञा लेते है परन्तु कोई प्रतिज्ञा याद रखते है कोई भूल जाते है। डॉक्टर और हॉस्पिटल यदि मरीज के लिए सदभावना रखे तो मरीज किस्मत वाला है और यदि डॉक्टर मरीज से पैसा एठने की भावना रखे तो यह मरीज का दुर्भाग्य। सदभावना की कद्र करना याने एक दूसरे का आदर करना, जिससे सहयोग की भावना उत्पन्न होती है
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने विचार है )
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