विश्व में हर क्षण कुछ न कुछ घटता है, सुर्खी बनती है और कुछ समय बाद कोई दूसरी घटना उसके प्रभाव को कम कर देती है | लेकिन,आज भारत के साथ विश्व जिस विषय पर चिंतित है वह वैश्विक खाद्य सुरक्षा है | भारत में कुछ गंभीर खबरों के बीच सबको चिंतित करने वाली अधोरेखित खबर है, जो मध्यवर्ग, खासकर निम्न आयवर्ग के लोगों की परेशानी बढ़ाने वाली है। देश में पिछले पांच दिनों के भीतर चावल के दामों में लगभग १० प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है|गेंहू और आटे के भाव भी तेज हैं |
चावल और गेहूं हमारे देश के मुख्य खाद्यान्न हैं और इनकी कीमतों में कोई भी बढ़ोतरी हरेक घर की रसोई के बजट पर असर डालती है। खाने-पीने की चीजों की महंगाई लोगों को सबसे ज्यादा परेशान करती और सरकारों की लोकप्रियता-अलोकप्रियता के निर्धारण में भी इसकी बड़ी भूमिका है। प्याज को लेकर तो सरकार बनाने बिगाड़ने की कहावत चल पड़ी है। इस साल अप्रैल के मध्य में आटे की कीमतों में जब अप्रत्याशित वृद्धि हुई, और एकाधिक जगहों पर यह ५५ रुपये प्रति किलो के ऊपर चली गई, तब सरकार को आनन-फानन में गेहूं के निर्यात पर रोक लगानी पड़ी। हालांकि, सरकार ने तब दावा किया था कि उसके पास पर्याप्त भंडार है, पर हकीकत यही है कि इस बार गेहूं की सरकारी खरीद काफी कम हुई है और सरकार भविष्य की चुनौतियों को लेकर आशंकित हो उठी थी। रूस और यूक्रेन, दोनों गेहूं के बड़े उत्पादक देश हैं और उनके युद्ध के कारण समूची आपूर्ति शृंखला बाधित हो चुकी है। ऐसे में, अमेरिका से लेकर दक्षिण एशिया तक महंगाई दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
हमारा देश भारत एक विशाल आबादी वाला देश है। यह सुखद है कि दशकों पहले हम खाद्यान्न उत्पादन के मामले में एक आत्मनिर्भर देश बन चुके हैं। यह कामयाबी कितनी बड़ी राहत है, इसका एहसास हमें महामारी के चरम दिनों में हुआ। तब देश के लगभग ८० करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज योजना का लाभ मिला। जो अब भी जारी है, बल्कि केंद्र सरकार ने सितंबर तक इसे विस्तार दिया है, लेकिन इतनी बड़ी आबादी को अनवरत मुफ्त खाद्यान्न मुहैया नहीं कराया जा सकता, एक गंभीर प्रश्न है । ऐसे में, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि जब तीन महीने बाद यह योजना खत्म होगी, या इसमें किसी तरह की कटौती होगी, तब कितनी बड़ी आबादी को चावल-आटे की मौजूदा महंगाई से दो-चार होना पड़ेगा। अन्य वस्तुओं के बढ़ते दाम से भी लोग परेशान हैं। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति के सदस्य जयंत वर्मा का कहना है कि उच्च महंगाई पर फौरी नियंत्रण की कोशिश में देश की अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं पहुंचने देना चाहिए, क्योंकि यह बहुत मुश्किल से पटरी पर लौटी है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक हितों की रक्षा होनी चाहिए, परन्तु महंगाई को लगाम लगाना इसलिए भी जरूरी है कि यह सामाजिक अराजकता को जन्म दे सकती है। दुनिया के कई देश महंगाई के कारण व्यापक जन-आंदोलनों का सामना कर रहे हैं। दुनिया की बड़ी शक्तियां जर्मनी में जी-७ की बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक खाद्य सुरक्षा को लेकर माथापच्ची करही चुकी है , कोई हल सामने नहीं आया है | भारत में पिछले सप्ताह से खाद्यान्न के मूल्यों में तेजी का माहौल है | इसके पीछे का कारण पड़ोसी बांग्लादेश द्वारा गैर-बासमती चावल पर आयात शुल्क में भारी कटौती बताई जा रही है। दरअसल, बांग्लादेश एक सघन आबादी वाला देश है। उसने कृषि उत्पादन के मामले में भी भरपूर तरक्की की है। वहां धान की अच्छी-खासी पैदावार होती है, लेकिन इस बार बाढ़ के कारण उसकी फसलों को बहुत नुकसान हुआ है, ऊपर से यूक्रेन का युद्ध कोढ़ में खाज बनकर आ गया। इसलिए चावल का स्टॉक बढ़ाने के लिए बंगलादेश यह कदम उठाया है।लेकिन हमारे घरेलू बाजार में चावल की आपूर्ति पर इसका असर दिखने लगा है, लेकिन अब गेंहू क्यों महंगा हो रहा है ? एक प्रश्न है, सरकार को आने वाले संकट को भांप कर फ़ौरन कुछ करना चाहिए |
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