सितम्बर 1921 में 3 दिनों के लिए भोपाल आए महात्मा गांधी ने सभा के दौरान
रामराज्य की व्याख्या तो की ही उन्होंने स्वराज के लिए जरूरी कारकों के
बारे में भी जनमानस को बताया । बापू को सुनने लगभग 10 हजार नागरिक मौजूद थे
और उन्हें खादी कार्य के लिए नागरिकों की ओर से 1035 रूपये की थैली भेंट
की गई । गांधी जी 1933 में भी रेलगाड़ी बदलने के लिए कुछ देर के लिए भोपाल
स्टेशन पर रूके । नागरको के अनुरोध पर गांधीजी ने उन्हें संबोधित किया तो
आजादी के आंदोलन के लिए स्टेशन पर मौजूद व्यक्तियों ने जिसके पास जो था
गांधी जी को भेंट किया । 1921 में गांधी जी ने कहा गाँधीजी
ने स्वराज्य के लिये दो बातों को आधारभूत बताया । उन्होंने कहा कि हिन्दू -
मुस्लिम एकता और अस्पृश्यता निवारण स्वराज्य की दो आवश्यक शर्ते हैं । साथ
ही चरखा - संघ के लिये भी उन्होंने धन की मांग की । तत्कालीन नवाब ने
गाँधीजी की अपील से प्रभावित होकर पर्याप्त धन प्रदान किया और अनेक दूसरे
लोगों ने भी यथा - शक्ति दान दिया जिससे गाँधीजी को प्रसन्नता हुई । अपनी
इस यात्रा में गाँधीजी भोपाल के कार्यकर्ताओं से भी मिले और खादी तथा
अस्पृश्यता निवारण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला । कार्यकर्ताओं से भेंट के
पश्चात गाँधीजी ने मारवाड़ी रोड स्थित खादी भण्डार का निरीक्षण भी किया ।
इस अवसर पर स्थानीय मोढ़ समाज की ओर से भी गाँधीजी को अभिनंदन - पत्र तथा
थैली अर्पित की गयी थी । प्रार्थना – सभा गाँधीजी के भोपाल -
प्रवास पर राहत मंजिल के सामने ही सांध्य प्रार्थना सभायें हुई थीं जो
बहुत आकर्षक थीं । इस प्रार्थना सभा का वर्णन श्री माखनलाल चतुर्वेदी ने
बड़े ही सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है । उन्होंने लिखा है- “ एक बार की बात
है कि बापू भोपाल गये । वे वर्धा से भोपाल जा रहे थे, भोपाल में ' कर्मवीर
' बंद था और मेरा प्रवेश निषिद्ध था । उस बार भाई जमनालाल बजाज ने मुझे
सूचना दी थी और मैं खण्डवा से उनके साथ हो लिया । बापू भोपाल के नवाब
साहब के ' राहत मंजिल ' नामक भवन में ठहराये गये थे । ज्यों ही संध्या का
समय हुआ , बापू प्रार्थना करने बैठ गये । उसमें भोपाल नवाब, डॉ. अंसारी और
भोपाल रियासत के बड़े - बड़े अमीर उमराव घुटने टेके वहां की प्रार्थना सुन
रहे थे । बापू ध्यानस्थ प्रार्थना में लीन से थे । गीता से, कुरान से,
बाइबिल से और संतों की वाणियों से प्रार्थना के शब्द गूंज रहे थे । उस दिन
प्रार्थना सभा में मालिक या नौकर, राजा या प्रजा, गरीब या अमीर, छोटा या
बड़ा, सब भेदभाव जाने कहां विलीन हो गये थे । उस समय सांप्रदायिक भेदभाव
मानों कोई चीज ही नहीं थी ।" भोपाल से रवाना होकर गाँधीजी निकट ही स्थित
विश्वविख्यात सांची के बौद्ध - स्तूप देखने भी गये और वहां से आगरा के लिये
रवाना हो गये । 1933 में कुछ समय बापू का सानिध्य इसके
पश्चात संभवतः वर्ष 1933 में एक बार भोपाल रेलवे स्टेशन पर गांधीजी का भाषण
हुआ था । उस समय भोपाल से उन्हें गाड़ी बदलनी थी और कुछ समय के लिये रेलवे
स्टेशन पर ठहरना पड़ा था । भोपाल स्टेशन पर उनकी उपस्थिति का समाचार सबसे
पहले प्रभात फेरी वालों को मिला जो उस समय खादी - प्रचार आदि के लिये
नियमित रूप से निकाली जाती थी । कुछ ही देर में समाचार पूरे नगर में फैल
गया और देखते ही देखते स्टेशन पर काफी संख्या में लोग एकत्रित हो गये तथा "
महात्मा गाँधी की जय ” के नारों से स्टेशन का क्षेत्र गूंज उठा । अल्प समय
में ही वहां मंच आदि भी बना लिया गया और गाँधीजी से अनुरोध किया गया कि वे
उपस्थित जन - समूह को संबोधित करें । गाँधीजी ने जनता के आग्रह के
दृष्टिगत उपस्थित जनसमूह को संबोधित करना स्वीकार किया और स्वराज्य -
प्राप्ति के लिये खादी, असहयोग और सांप्रदायिक एकता और अस्पृश्यता - निवारण
का संदेश जनता को दिया । उनकी अपील से उसी समय धन - संग्रह भी हुआ और
जिसके पास जो कुछ था उसने वहाँ गाँधीजी को भेंट दे दिया । गाँधीजी की इन
दोनों भोपाल यात्राओं की स्मृति आज भी भोपाल के लोग अपने हृदयों में संजोये
हैं । गाँधीजी के सरल स्वभाव, आदर्शों के प्रति उनकी गहन निष्ठा तथा
साम्प्रदायिक एकता के उनके विश्वास को भोपाल की जनता आज भी आत्मसात किए हुए
है ।
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