भारतीय संस्कृति और परंपरा यही सिखाती है कि परिवार का सामूहिक रहना अच्छी बात है। पर जब परिवार का कोई सदस्य अहंकारी हो जाए तो यह अच्छा होता है कि वह अलग रहे। अभी तक यह तथ्य भाई भाइयों के अलग रहने तक था। लेकिन धीरे-धीरे कई परिवारों में जब बच्चा अपने आप में ज्यादा होशियार समझने लगे तब यह सबसे ज्यादा उचित है कि उसे अलग रहना चाहिए। विदेशों में यह संस्कृति शुरू से देखी जा सकती है जैसे ही बच्चे की शादी होती है उसे अपना अलग से घर बसाना एक प्रकार से रिती परंपरा में आ चुका है। कभी-कभी बच्चा थोड़ा बहुत कुछ काम करने लगता है तो वह अहंकारी हो जाता है और यह सब भूल जाता है कि उसके बड़े होने तक उसका पालन पोषण किसने किया। पर कई परिवारों में आदर्श बच्चे भी हैं जो पिता के कारोबार में पिता के साथ रहते हैं और पिता से बड़े सम्मान से पेश आते हैं। वे कारोबार में खूब तरक्की करते हैं पर उस पर कभी घमंड नहीं करते। और कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनमें पूरा ज्ञान नहीं होता पर एक दो काम यदि करके तरक्की कर लेते हैं तो उन्हें ऐसा लगता है कि वह दुनिया के सबसे ज्यादा ज्ञानी पंडित है। कई बच्चे घर परिवार की खूब सेवा करते हैं पर कभी गिनाते नहीं और कुछ बच्चे ऐसे होते हैं कि जिनके मुंह से हमेशा यह निकलता कि यह मैंने किया तब बेहतर यही है कि उन्हें अलग रहने को कहें। जो बच्चा अहं ना रखें वह परिवार में रहने योग्य होता है।
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