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डॉक्टरी पेशे से नाराज़नहीं हूँ,पर परेशान हूँ मैं

Updated on 11-05-2021 12:29 PM
डॉक्टरी पेशे से नाराज़ 
  नहीं हूँ,पर परेशान हूँ मैं। 
       मरीज़ों के सवालों 
        से हैरान हूँ मैं।। 
      मुस्कुराऊं मैं कभी 
     तो ऐसा लगता है, 
       तेरी मौत का मेरे 
     होठों पर कर्जा है, 
    कल क्या पता तुम्हें, 
  मेरे लिए तुम्हारी आंखें 
        मुझे ढूंढने के 
    लिए तरस जाएगी ।।
लोग मरते गए,लाशों के ढ़ेर लगते गए,बेबस डॉक्टर देखता रहा, दिल ही दिल में रोता रहा, ऑक्सीजन की कमी से लोग तड़प रहें थे,डॉक्टर मरीज़ों की तक़लीफ देकर अपने आप को कोसता रहा और सोचता रहा क्या फ़ायदा ऐसे पेशे का,जो लोगों की जान ना बचा पाए !
 दिल में रोता रहा,मरीज़ों के जवाब देने से कतराता रहा,अपनी बेबसी को कोसता रहा,दिन भर अस्पताल में मरीज़ों की कर्राहट और परिजनों कि रोने और चीख़ने की आवाज़ें,उस डॉक्टर को झ़ंझोणती रही बेबस डॉक्टर पूरे अस्पताल में मरीज़ों को बचाने के लिए लगा रहा पर लोग मरते रहें वह देखता रहा । आजकल यही स्थिति से गुज़र रहें हमारे डॉक्टर कभी सरकार से ऑक्सीजन के लिए गुज़ारिश करते हैं,तो कभी मरीज़ों के परिजनों के गु्स्से का शिकार बनते हैं, इससे पहले कभी डॉक्टरों को इतना लाचार नहीं देखा,इस महामारी में मरीज़ों की मौतों को देखकर अब डॉक्टर भी टूट गए हैं,माँ अपने बच्चे को बचाने के लिए डॉक्टरों के पैर पकड़कर रो रही हैं,पिता अपनी औलाद को बचाने के लिए डॉक्टर के सामने हाथ जोड़े खड़ा हैं,वही पत्नी अपने मंगलसूत्र का वास्ता डॉक्टर को दे रही है,बेबस डॉक्टर किसी परिजन को जवाब नहीं दे पा रहें । 
दिल्ली के मैक्स अस्पताल के डॉक्टर विवेक राय ने मरीज़ों की ऑक्सीजन की कमी और कोरोना के कारण हो रही मौतें ने इतना तोड़ दिया इस धरती के भगवान को,जिसका काम लोगों की जान बचाना थी,उसने अपने आप को फांसी के फंदे पर चढ़ा लिया और अपनी जिंदगी को हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर लिया,जाते जाते एक चिट्ठी लिखकर गया उसने लिखा परिवार और दोस्त मेरे जानने वाले,सब खुशहाल रहें मैं तो जा रहा हूँ । 
35 वर्षीय डॉ विवेक राय जिनकी शादी 8 माह पहले हुई थी एवं उनकी पत्नी गर्भवती हैं,विवेक राय ने अपनी आने वाली औलाद की शक्ल तो नहीं देखी पर मरीज़ों की तकलीफे देखकर उसने मौत को गले लगा लिया । डॉ विवेक राय तकरीबन 8 कोरोना मरीजों को सीपीआर देते थे सीपीआर (कार्डियो पल्मोनरी रेसूसिटेशन) का मतलब होता है जिनकी सांसे बंद होने लगती है उनको ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने के लिए सीपीआर मरीज की छाती को जोर-जोर से दबाते हैं,और तब तक दबाते हैं,जब तक मरीज़ होश में ना आ जाए और उसकी सांस ठीक से चलने लगे, पर अफ़सोस इसमें डॉक्टर विवेक राय कामयाब नहीं हो पा रहे थे और रोज़ मरीजों की मौत हो रही थी,इन सब चीज़ों से विवेक बहुत परेशान हो गया था और उसने अपनी जिंदगी को समाप्त करने का फैसला कर लिया था ‌।
जब डॉक्टर विवेक राय ने गले में फंदा लगाया होगा तो उनको यह विचार जरूर आया होगा,अपने परिवार के लिए और अपने पेशे के लिए तुमसे और डॉक्टरी पेशे से नाराज़ नहीं हूँ,परेशान हूँ मैं, मरीज़ों और उनके परिजनों के सवालों से हैरान हूँ मैं । 
 हमारे राजनीति के खिलाड़ियों को ऑक्सीजन मिल गई यानी चुनाव जीत गए, किसी पार्टी में किसी राज्य में दूसरी पार्टी में दूसरे राज्य में सरकार बना ली राजनीति से जुड़े हुए लोगों की ऑक्सीजन सत्ता होती है,हारी हुई पार्टी के नेता बड़ी मासूमियत से कह रहे हैं, जनता का आदेश सिर आंखों पर,यही जनता ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं के लिए गुहार लगा रही है पर हमारे नेताओं पर उनकी गुहार का ज्यादा असर नहीं दिख रहा है।
अब चुनाव खत्म हो गए सरकारे बन गई हैं,अब तो तरस खाओ जनता तुम्हारे तरफ देख रही है। बहुत हो गया अब फिजाओं में चिताओं का धुआं । कब तक डॉक्टर परेशान होते रहेंगे,कब तक मरीजों एवं उनके परिजनों को दिलासा देते रहेंगे,कब तक डॉक्टर आत्महत्या करते रहेंगे।

        मरीज़ो की मौतें 
         देखते देखते ही, 
         मेरे हौसले की 
          डोर टूट गई ।। 
  ऑक्सीजन की कमी से 
 मरीज़ो को बचाना सका । 
      डॉक्टरी पेशे की 
        नगरी लुट गई ।।
मोहम्मद जावेद खान,लेखक                                                        ये लेखक के अपने विचार है I 
संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़

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