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अमीन सयानी ने मनोरंजन की दुनिया में रेडियो का मधुर व्याकरण रचा - अजय बोकिल

Updated on 24-02-2024 08:49 PM
अमीन सयानी यानी आवाज की दुनिया के सुपर स्टार। बचपन में जब अमीन सयानी का हर दिल अजीज कार्यक्रम ‘बिनाका गीतमाला’ सुनते तो लगता था कि ये आवाज किसी दूसरी दुनिया से आती है। ऐसी आवाज जो मानो रेडियो के लिए ही बनी है और रेडियो अमीन सयानी के लिए। कल के रेडियो उद्घोषक और आज के रेडियो जाॅकी अमीन सयानी की जानदार आवाज और अदायगी को के प्रति श्रोताअों की जबर्दस्त दीवानगी को शायद ही समझ पाएं। वो जमाना था जब बड़े बड़े फिल्म स्टार भी अमीन सयानी से मिलने को बेताब हुआ करते थे। दरअसल अमीन सयानी ने आजाद भारत में मनोरंजन की दुनिया में रेडियो एक नया और मधुर व्याकरण रचा। शुष्क समाचार, धीर गंभीर सूचनाअों और शास्त्रीय संगीत से परे जाकर आम आदमी की जबान में आम आदमी से सहज और दिलकश संवाद की नींव अमीन सयानी ने अपनी युवावस्था में रखी। उसी नींव पर आज टी.वी. चैनल्स और एफएम रेडियो की दुनिया खड़ी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अमीन सयानी भारतीय रेडियो की दुनिया के ‘पितृ पुरूष’ थे। 
अमीन सयानी को सिर्फ इसलिए याद नहीं किया जाएगा कि उन्होंने बिनाका गीतमाला के रूप में हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता का पैमाना तय करने वाला कार्यक्रम 42 साल तक होस्ट किया, बल्कि इसलिए भी याद किया जाएगा कि उन्होंने रेडियो की जनोन्मुखी, संवादात्मक और सहज सम्प्रेषणीय भाषा भी रची। अमीन सयानी जिस भाषा में उद्घोषणा करते थे, इसके माध्यम से रोचकता का संसार रचते थे,  वह हिंदी और उर्दू का मीठा मिश्रण होता था। खास बात यह है कि अमीन सयानी ने अंग्रेजी उद्घोषक के रूप में कॅरियर की शुरूआत की थी। लेकिन बाद में वो हिंदी उद्घोषणा के मील का पत्थर बन गए। अपनी सरल लेकिन प्रभावी शब्द संपदा के साथ हिंदी उर्दू के कठिन शब्दों का शुद्ध और नफासत भरा उच्चारण, स्वराघात, लय और प्रांजल सम्प्रेषणीयता अमीन सयानी की जुबान की ऐसी खूबियां थीं कि लोग उनकी सामान्य बातचीत पर भी मोहित हो जाते थे। बीती सदी में साठ और सत्तर के दशक में हर युवा उद्घोषक अमीन सयानी की नकल करने की कोशिश करता था और वैसा ही बनना चाहता था। अभी भी विविध भारती के नामी उद्घोषक युनूस खान की उद्घोषण शैली में इसकी झलक देखी जा सकती है। उन दिनो हिंदी उद्घोषणा जगत में तीन आवाजें मानक समझी जाती थीं। समाचार वाचन में आकाशवाणी के देवकी नंदन पांडे, हाॅकी कमेंट्री में जसदेवसिंह तथा मनोरंजन के क्षेत्र में अमीन सयानी। इन सभी ने जनसंचार के क्षेत्र में रेडियो माध्यम की महत्ता और चुनौतियों को बखूबी समझा तथा उसे एक नई परिभाषा दी। इन तीनों में भी अमीन सयानी का नाम तो हर घर में पहुंच चुका था। उन्होंने सार्वजनिक संबोधन में भी एक बुनियादी बदलाव किया था। तब तक किसी भी कार्यक्रम में वक्ता आम तौर पर ‘भाइयो और बहनो’ से बोलने की शुरूआत करते थे। लेकिन इससे लैंगिक विषमता की गंध आती थी। अमीन सयानी ने अपने कार्यक्रम में ‘बहनो और भाइयों’ कहना शुरू किया, जो बेहद लोकप्रिय हुआ और स्त्री शक्ति की महत्ता को रेखांकित करता था।
ये सुखद संयोग ही है कि 20 साल की उम्र में अमीन सयानी ने रेडियो सीलोन से भारतीय फिल्म संगीत, जो उस वक्त अपने सुनहरे दौर में कदम रख रहा था, को घर- घर पहुंचाने और उत्कृष्टता की प्रतिस्पर्द्धा में लोकप्रियता को एक मानदंड के रूप में स्थापित करने का सफल प्रयास किया। यही वो दौर था, जब देश की पुरानी पीढ़ी हिंदी फिल्मों के संगीत को बाजारू मानकर उसे खारिज या अनदेखा करने की कोशिश कर रही थी। देश के तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री बी.वी. केसकर ने तो आकाशवाणी से हिंदी फिल्म संगीत का प्रसारण यह कहकर बंद करवा दिया था कि इससे देश की युवा पीढ़ी बिगड़ रही है। जबकि हकीकत में उसी दौर में हिंदी सिने संगीत के स्वर्णिम काल का द्वार भी खुल रहा था। देश की नई पीढ़ी सुरों की उन्मुक्त दुनिया का आस्वाद ले रही थी। लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मन्ना डे, गीता दत्त, आशा भोसले, तलत महमूद, मुकेश, किशोर कुमार जैसे महान गायक अपनी कला से सुगम संगीत के नए प्रतिमान रच रहे थे। इन गायकों को महान बनाने का काम असाधारण रूप से प्रतिभाशाली कई संगीतकार कर रहे थे। युवा पीढ़ी इन गायकों की आवाज की दीवानी थी। लेकिन तत्कालीन सरकार की नजर में यह सब बेकार की बातें थीं। (हालांकि बाद में इस गलती को आकाशवाणी से विविध भारती कार्यक्रम शुरू करके सुधारा गया।) लेकिन इसमें निहित संकेत साफ था कि संगीत की स्वर लहरियां अभिजात्य शास्त्रीय संगीत की संकुचित दुनिया से बाहर निकल कर लोक विश्व में तैरने को बेताब थीं। मानो देश के साथ संगीत भी आजाद हो गया था। उधर  रेडियो सीलोन (जो एक श्रीलंकाई कंपनी थी) ने आजादी के बाद बदलती लोक रूचि को ध्यान में रखकर बिनाका गीतमाला कार्यक्रम शुरू किया, जिसके उद्घोषक बने अमीन सयानी। अमीन साहब के सामने ऐसे कार्यक्रम का कोई तयशुदा माॅडल नहीं था। लिहाजा उन्होंने अपना खुद का माॅडल तैयार किया, शैली गढ़ी। हालांकि उन दिनो देश भर में रेडियो स्टेशनो की संख्या एक दर्जन से भी कम थी और रेडियो की पहुंच मुश्किल से 15 फीसदी आबादी तक रही होगी, लेकिन ‘बिनाका गीतमाला’ सुनने के लिए लोग रेडियो खरीदने लगे। रेडियो के प्रसार के साथ ही बिनाका गीतमाला भी लोकप्रिय होता चला गया। हर हफ्ते बुधवार को रात आठ बजे प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम को सुनने वालों में शर्त बदी जाती कि इस हफ्ते कौन सा गाना नंबर एक पर रहने वाला है। ‘पायदान, हिट परेड, सरताज जैसे शब्दों को अमीन साहब ने ही लोकप्रिय बनाया। कौन सा गीत कौन सी पायदान पर रहने वाला है, इसको लेकर देश भर में उत्सुकता रहती। लोग रात आठ बजे सारे काम छोड़कर रेडियो से कान लगाए रहते। 1954 में साल भर में नंबर पर रहने वाला पहला गीत था फिल्म ‘अनारकली’ का स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का गाया ‘ ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया।‘ इसी कड़ी में सन 2000 में आखिरी सर्वाधिक लो‍कप्रिय गीत था फिल्म मोहब्बतें का ‘हमको हमी से चुरा लो।‘ संयोग देखिए कि यह गीत भी लता मंगेशकर ने ही गाया था। या यूं कहें ‍कि सिने संगीत के मेलोडी की शुरूआत भी लताजी  से होती है और शायद समापन भी उन्हीं की आवाज से होता है।  
बिनाका गीतमाला में चयनित गीतों का मानदंड क्या था, यह खुद अमीन सयानी ने एक इंटरव्यू में बयान किया था। उन्होंने कहा था कि बिनाका गीतमाला का प्रसारण रेडियो सीलोन से 1952- 53 में शुरू हुआ। आरंभ में गीतों को पायदान के अनुसार क्रम देने का चलन नहीं था। पहली बार 1954 में गीत को उसकी लोकप्रियता के आधार पर क्रम देने की शुरूआत हुई। इसका मुख्य मापदंड उस गीत की लोकप्रियता थी। यह लोकप्रियता उस गीत के रिकाॅर्ड की बिक्री के आंकड़ों तथा श्रोताअों की वोटिंग के आधार पर तय होती थी। हालांकि बाद में वोटिंग सिस्टम बंद कर दिया गया।  

बिनाका गीतमाला की सर्वाधिक लोकप्रियता उसकी रजत जयंती तक रही। हालांकि बाद में भी यह कार्यक्रम प्रसारित होता रहा, लेकिन टीवी के आगमन के बाद कानों की दुनिया की जगह आंखों की दुनिया ने ली। गायको के सामने गीत के भाव को अपनी आवाज के माध्य म से विजुलाइज करने की चुनौती घटने लगी। गाना संगीत के सागर में तैरने की जगह परफार्म करने का विषय बन गया। 
ये अमीन सयानी ही थे, जो रेडियो के उत्तर काल में भी अपनी आवाज के दम पर अपनी पहचान कायम रख सके। इस कार्यक्रम के एक जमाने में 20 लाख से ज्यादा श्रोता हुआ करते थे। अमीन साहब ने रेडियो पर लगभग 54 हजार प्रोग्राम प्रोड्यूस और कम्पेयर किए थे। 19 हजार स्पॉट/जिंगल में भी उनका आवाज सुनाई दी थी। अमीन सयानी कई फिल्मों में भी रेडियो अनाउंसर के तौर पर नजर आए। 2009 में उन्हें रेडियो के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा। 
आजकल रेडियो एनांउसर को रेडियो जाॅकी कहा जाता है। एफ एम रेडियो ने इस पेशे को कुछ अलग चमक दी है। लेकिन एक अच्छा और अनोखा रेडियो जाॅकी बनना अभी भी आसान नहीं है। अमीन सयानी कहते थे कि हर रेडियो जाॅकी को अपने आप में अलग होना चाहिए। यह उसकी आवाज के अनोखेपन से ही संभव है। वरना सभी की आवाज और अदायगी एक सी होगी तो कौन सुनेगा। साथ ही रेडियो जाॅकी को लोगों को अपने जैसा महसूस होना चाहिए। अमीन सयानी रेडियो जाॅकी के लिए एक समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा कि अमीन सयानी अपने काम के जरिए वे भारतीय ब्रॉडकास्टिंग की दुनिया में क्रांति लाए और अपने श्रोताओं के साथ खास बॉन्ड बनाया। कुछ लोग अमीन सयानी को भारतीय रेडियो का ‘ग्रैंड अोल्ड मैन’ भी कहते हैं। अमीन सशरीर भले जुदा हुए हों, लेकिन उनकी रेशमी आवाज हमेशा हमारे साथ रहेगी। 


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