नई दिल्ली।
कोरोना से मुकाबले
के लिए कुछ
माह पहले भारत
से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा
मंगवाने के बाद
अब अमेरिका में
कोरोना के इलाज
के लिए प्लाज्मा
थेरेपी को मंजूरी
दे दी गई
है। भारत में
इस थेरेपी से
कई लोगों की
जान बचाई जा
चुकी है। भारत
में अप्रैल के
अंत में आईसीएमआर
ने ब्लड प्लाज्मा
थेरेपी से कोरोना
संक्रमित मरीजों के उपचार
के ट्रायल की
अनुमति दे दी
थी। आईसीएमआर ने
इस क्लिनिकल ट्रायल
में शामिल होने
के लिए विभिन्न
संस्थाओं को आमंत्रित
भी किया था।
भारत में पहली
बार अप्रैल में
ही दिल्ली के
मैक्स हेल्थकेयर में
कोविड-19 मरीज पर
इस थेरेपी को
सफलतापूर्वक आजमाया गया था।
13 जून को स्वास्थ्य
और परिवार कल्याण
मंत्रालय ने अस्पतालों
को प्लाज्मा थेरेपी
के ऑफ लेबल
उपयोग को मंजूरी
दे दी। इसका
अर्थ था कि
कुछ शर्तों के
साथ कोरोना के
मरीज पर इसका
इस्तेमाल किया
जा सकता है।
इस थेरेपी से मरीज के शरीर में वायरस के संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। गौरतलब है कि जब कोई वायरस किसी व्यक्ति पर हमला करता है तो उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज कहे जाने वाले प्रोटीन विकसित करती है। अगर वायरस से संक्रमित किसी व्यक्ति के ब्लड में पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज विकसित होता है तो वह वायरस की वजह से होने वाली बीमारियों से ठीक हो सकता है। अब अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने आपात स्थिति में कोरोना से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को मंजूरी दी है। इस महामारी के कारण दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को जबरदस्त चोट लगी है। वहीं अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव भी होने हैं। अमेरिका अब सात माह के बाद ये दावा कर रहा है कि इस थेरेपी से 30 से 50 फीसदी तक कोविड-19 से संक्रमित मरीजों की जान बचाई जा सकती है।