पटियाला । संसद में कृषि बिल पास करवाने को लेकर शिरोमणि अकाली दल का भाजपा के साथ गठजोड़ टूटना तय माना जा रहा है लेकिन इसका सिर्फ रस्मी ऐलान अभी बाकी रह गया है। यह ऐलान आगामी 25 सितम्बर को हो रही शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी में किया जा सकता है। चाहे मोदी सरकार में से इस्तीफा देने समय खुद हरसिमरत कौर बादल और सुखबीर सिंह बादल ने ऐलान किया था कि एनडीए में वह बने रहेंगे और सरकार को बाहर से समर्थन देंगे परन्तु पिछले 2 दिनों से सुखबीर बादल के तेवरों ने स्पष्ट कर दिया है कि वह भाजपा के साथ आर-पार की लड़ाई लडऩे के मूड में हैं, जबकि पार्टी के अन्य सीनियर नेता तो पहले ही गठजोड तोडऩे के पक्ष में हैं और कुछ सीनियर नेता तो सार्वजनिक तौर पर बयान भी दे चुके हैं।
सुखबीर सिंह बादल ने कल ऐलान किया था कि जब तक कृषि के बारे में पास करवाए बिल रद्द नहीं होते, तब तक अकाली दल केंद्र सरकार के साथ कोई बातचीत नहीं करेगा। आज इससे एक कदम और आगे उठाते हुए सुखबीर बादल ने आज राज्यसभा में घटे घटनाक्रम के बाद राष्ट्रपति को इन बिलों को मंजूरी न देने के लिए कहा है और खुद मिलने का समय भी मांगा है। मोदी सरकार की तरफ से संसद में बिल के पास करवाने में मिली सफलता के खिलाफ सरेआम डट कर स्टैंड लेने ने स्पष्ट कर दिया है कि अब गठजोड़ तोडऩे का सिर्फ रस्मी ऐलान बाकी है, अकाली लीडरशिप यह गठजोड़ तोडऩे का मन बना चुकी है।
अब यह स्पष्ट है कि अकाली दल 2022 की चुनाव अपने बलबूते लड़ेगा। वैसे भी 117 में से 94 सीटों पर वह खुद ही लड़ता रहा है जबकि भाजपा को 23 सीटें देता रहा है। चाहे राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को जो मर्जी सफलता मिली हो परन्तु पंजाब के मामले में यह तय है कि भाजपा के लिए गांवों में आधार बनाना अभी दूर की बात है, वह भी खास तौर पर मौजूदा हालात में।देखने वाली बात यह होगी कि गठजोड़ टूटने का पंजाब पर सिर्फ राजनैतिक ही नहीं बल्कि सामाजिक तौर पर भी क्या प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इस गठजोड़ को राजनैतिक साथ-साथ हिंदू पार्टी और सिख पार्टी में सामाजिक गठजोड़ भी माना जाता रहा है।