पीड़ित की मौजूदा आय में भविष्य की आय जोड़कर ही तय किया जाए हादसे का मुआवजा : सुप्रीम कोर्ट
Updated on
30-06-2020 12:26 AM
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मोटर एक्सिडेंट केस में पीड़ित की मौजूदा आमदनी में भविष्य की संभावित आमदनी को जोड़कर ही मुआवजा तय किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में हुए एक हादसे में उत्तराखंड के बनबसा के हरीश की मौत हो गई थी। इस मामले में निचली अदालतों ने मुआवजे के रूप में कम राशि देने का निर्देश दिया था, जिसके खिलाफ पीड़ियों ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया। मृतक के परिजनों की ओर से दाखिल अर्जी पर दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा राशि बढ़ाते हुए निर्देश दिए कि घटना के लिए जिम्मेदार वाहन की बीमा कंपनी बढ़ी हुई कुल मुआवजा राशि 17 लाख 50 हजार रुपए का भुगतान करे। साथ ही मुआवजा राशि पर साढ़े 7 फीसदी ब्याज का भी भुगतान किया जाए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मुआवजा बढ़ाना जरूरी है, तभी संपूर्ण न्याय सुनिश्चित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मृतक के आखिरी इनकम टैक्स रिटर्न पर विचार न करके गलती की है। वह रिटर्न मृतक ने मरने से पहले दाखिल किया था और उसमें आमदनी एक लाख रुपए सालाना बताई गई थी। हाईकोर्ट ने उससे पहले के तीन रिटर्न का औसत 52635 रुपए मृतक की सालाना आमदनी माना जो गलती थी। वहीं निचली अदालत ने आखिरी आईटी रिटर्न 2006-07 की आमदनी 98500 को माना लेकिन निचली अदालत ने भविष्य की आमदनी को उसमें नहीं जोड़ा।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अगुवाई वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मृतक ने 2006-07 में जो आईटी रिटर्न दाखिल किया था उसमें उसने आमदनी लगभग एक लाख रुपए सलाना बताया था। यह रिटर्न उसने 20 अप्रैल 2007 को दाखिल किया था और एक्सिडेंट में हरीश की मौत 18 जून 2007 को हुई थी उस समय वह 35 साल का था। उसकी पत्नी, बच्चे और माता-पिता उस पर निर्भर थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने एक लाख रुपए सलाना आमदनी के हिसाब से आकलन कर कुल मुआवजा 12 लाख 55 हजार तय किया जिसमें भविष्य की आमदनी का जिक्र नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा संवैधानिक पीठ के जजमेंट के तहत अनिवार्य है कि मौजूदा आमदनी में भविष्य की संभावित आमदनी भी जोड़ा जाए और उस आधार पर मुआवजे का निर्धारण हो। इस तरह मौजूदा सलाना आमदनी एक लाख में हम 40 फीसदी संभावित भविष्य की आमदनी जोड़ते हैं। चूंकि पांच लोग मृतक पर निर्भर थे इस तरह उसकी आमदनी का एक चौथाई उसके खुद पर खर्च मानते हैं और 16 साल तक की आमदनी का का आकलन करते हुए यह रकम 16,80000 रुपए आता है, साथ ही अन्य खर्च को जोड़ने पर कुल मुआवजे की रकम 17 लाख 50 हजार हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम अनुच्छेद-142 के तहत मिले विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए इंश्योरेंस कंपनी को निर्देश देते हैं कि वह मृतक के परिजनों को 12 हफ्ते में 17 लाख 50 हजार रुपए मुआवजे का भुगतान करें और अर्जी दाखिल करने की तारीख से लेकर भुगतान की तारीख का साढ़े 7 फीसदी ब्याज का भी भुगतान करें।
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