गज़ब हो गया एक कबूतर मुसलमान से हिंदू हो गया,जो कल तक मस्जिद के मीनार पर बैठकर टुकर टुकर देखता था, आज वह कबूतर मंदिर के कलश पर बैठा हुआ देखा गया,वो तो अच्छा हुआ धर्म के ठेकेदारों को पता ना चला,जब कबूतर से पूछा क्यों भाई तुमने अपना धर्म परिवर्तन क्यों कर लिया,पहले कबूतर ने सुना,फिर हँसा,फिर बोला धर्म तो तुम इंसानों में होता है,मैं तो यह देख रहा हूँ,मंदिर मस्जिद में क्या फर्क होता है, दोनों जगह तो है बहुत अच्छी पर जो लोग इबादत करने आते हैं या भगवान की आराधना करने आते हैं,उनके मन साफ नहीं है,सब दिखावा और ड्रामा है,तुम इंसानों ने भी क्या गज़ब ढाया,गाय को हिंदू और बकरी को मुसलमान बना डाला,तुम इंसान भी गज़ब के हो जानवरों को तो छोड़ो, तुमने फलों को भी धर्म के आधार पर बांट डाला,नारियल को तुमने हिंदू और पिंड खजूर को मुसलमान बना डाला,तुम लोगों का दिल इससे भी ना भरा तो रंगों को भी धर्म के आधार पर बांट डाला केसरिया रंग हिंदुओं का और हरा रंग मुसलमानों को दे डाला, हद तो यह हो गई तुम इंसानों ने पानी को भी धर्म के आधार पर बांट डाला गंगाजल को हिंदू और ज़मज़म को मुसलमान कर डाला,अजब हो तुम गज़ब हो तुम,तुमने कभी यह नहीं सुना होगा या यह कभी नहीं देखा होगा,हम कबूतरों में जाति को लेकर या धर्म को लेकर दंगा या लड़ाई झगड़ा हुआ हो, हम कबूतरों ने कभी दूसरे कबूतरों का घोंसला नहीं तोड़ा ना ही किसी कबूतर के घोंसले में आग लगाई हो । फिर कबूतर ने अपनी गर्दन को मटकाते हुए बोला, इंसानी समाज में नारी सुरक्षित नहीं,बच्चियों की इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ होता है,धर्म के आधार पर लड़ाई झगड़ा होना एक आम बात है,कुछ सीखो इंसानों हम कबूतरों से,बलात्कार क्या होता है हम कबूतरों को नहीं मालूम,धर्म किस खेत की मूली होती है, हम कबूतरों को नहीं मालूम,शायद इसलिए हमको नहीं मालूम क्योंकि हमारे समाज में ना कोई नेता है,और ना ही कोई पार्टी । हमारे कबूतर समाज को यह नहीं मालूम था कि इंसानों में भी कोई नेता होता है,एक दिन हम कबूतरों ने देखा, एक व्यक्ति सफेद कपड़े पहने हुए,सर पर टोपी लगी हुई, फूल मालाओं से लदा हुआ,चेहरे पर बनावटी मुस्कान,हाथ जोड़ें हुए,जितने साफ कपड़े पहना हुआ था,अंदर से उसका मन मस्तिष्क और हृदय मेल से भरा हुआ था,उसके मन में एक ही विचार आ रहा था,अगर वह चुनाव जीत जाता है,तो जनता को बेवकूफ बनाएगा,धर्म के आधार पर इंसानों को बांटेगा और खूब पैसे कमाएगा,अजब हो ग़ज़ब हो तुम इंसान,दिन भर मेहनत करते हो, फिर भी कर्ज़ में डूबे रहते हो, हम कबूतरों को देखो हमको ऊपर वाले पर विश्वास है, हम चाहे शहर में रहे, या जंगल में ऊपरवाला हमको कभी भूखा नहीं सुलाता, हमको भरपेट भोजन देता है, मीठा और स्वादिष्ट पीने को पानी देता है, तुमको मालूम है ऊपरवाला ऐसा क्यों करता है क्योंकि हम कबूतरों के दिल में छल कपट नहीं होता, हम कबूतर धर्म के आधार पर नहीं लड़ते,तुम्हारा तो केवल एक देश होता है,हम कबूतरों का पूरा विश्व,हमारा देश होता है,हमको एक देश से दूसरे देश जाने के लिए पासपोर्ट और वीज़ा की जरूरत नहीं पड़ती,हमारी बोली एक है,चाहे हम भारत में रहे या अमेरिका में,हमारी भाषा,हमारी बोली एक होती है,यह फर्क है,हम कबूतरों और इंसानों में,तुम इंसानों ने देश बनाया,धर्म बनाया, भाषा बनाई, पर अफसोस तुम अच्छे इंसान नहीं बना पाए,तुम इंसानों ने खूब तरक्की की है, बड़ी-बड़ी मशीनें बनाई,हवाई जहाज बनाए,तुम्हें अपनी तरक्की पर बहुत घमंड है,अगर बराबरी करना है,तो हम कबूतरों से करो बगैर हवाई जहाज़ के उड़कर दिखाओ,हम कबूतर तो शांति के प्रतीक है,पर अफ़सोस 15 अगस्त,26 जनवरी को हमको वह लोग उड़ाते हैं,जो सबसे ज्यादा इस देश में अशांति पैदा करते हैं,हम कबूतरों में ना कोई अमीर होता है ना ही कोई ग़रीब ।
जब कबूतरों को गुस्सा आता है तो वह ही अपशब्द बोलते हैं जो कबूतरों में सबसे गंदी गाली होती है, वह होती है की तुम इंसानों की तरह हरकत मत करों ।
कुछ तो मेरे सीने में,
ईमान रहने दो ।
इंसान हूँ बस,
मुझे इंसान रहने दो ।।
मोहम्मद जावेद खान , संपादक , भोपाल मेट्रो न्यूज़ ये लेखक के अपने विचार है I
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