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मप्र में विधायकों और अधिकारियों की सैलरी पर भी चलेगी कैंची?

Updated on 01-05-2020 12:02 PM

भोपाल । मप्र पर वर्तमान में करीब 2 लाख करोड़ रूपए का कर्ज है। कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण सरकार को मजदूरों, कामगारों, बुजुर्गों, निराश्रितों के खान-पान के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं पर अरबों रूपए खर्च करने पड़ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या मप्र सरकार भी तेलंगाना, राजस्थान और आंध्रप्रदेश की तरह अपने विधायकों और अफसरों के वेतन पर कैंची चलाएगी? 
कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर लगाए गए लॉकडाउन से देश की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित है। इसको देखते हुए कई राज्यों की सरकार ने मंत्री, जनप्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों के मासिक वेतन में कटौती करने का फैसला लिया है। जिन राज्यों ने वेतन कटौती की है उनकी आर्थिक स्थिति मप्र से अच्छी है और उन पर कर्ज भी कम है। 
एक दिन का वेतन पर्याप्त नहीं 
मप्र में आईएएस, आईपीएस और आईएफएस ऑफिसर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने घोषणा की है कि वे कोरोना के पीडि़तों और जरूरतमंदों की सहायता और इस खतरनाक बीमारी से निपटने के लिए एक दिन का वेतन मुख्यमंत्री राहत कोष में दान करेगा। लेकिन इस संकट की घड़ी में यह पर्याप्त नहीं होगा। प्रदेश कैडर में वर्तमान में 369 आईएएस, 250 आईपीएस और  251 आईएफएस हैं। अगर इन 870 अधिकारियों और करीब 4 लाख सरकारी कर्मचारियों का एक माह का वेतन सरकार काट लेती है तो इससे प्रदेश को बड़ी राहत मिल सकती है। 
माननीयों का मौन चिंताजनक 
सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ ही सरकार को विधायकों के एक माह के वेतन में भी कटौती करनी चाहिए। तेलंगाना, राजस्थान और आंध्रप्रदेश ने अपने मंत्रियों, विधायकों और अन्य जनप्रतिनिधियों का वेतन काटकर मिसाल पेश की है। प्रदेश में वर्तमान में 206 विधायक हैं। कई विधायकों ने आगे बढ़कर अपना एक माह का वेतन मुख्यमंत्री सहायता कोष में देने की घोषणा कर दी है। लेकिन अधिकांश मौन साधे हुए हैं। यह चिंता का विषय है। 
   भाजपा विधायकों का वेतन पीएम कोष में 
इस संकट की घड़ी में भाजपा ने अपने सभी सांसदों को एक-एक कारोड़ रूपए तथा सभी विधायकों को एक-एक माह का वेतन प्रधानमंत्री कोष में देने को कहा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले निर्देश के बाद भाजपा सांसदों ने एक-एक करोड़ रूपए अपनी सांसद निधि से देनी शुरू कर दी है। मिसाल पेश करने के लिए सांसदों को भी अपनी एक माह की सेलरी कोष में देना चाहिए। 
तेलंगाना में 75 फीसदी की कटौती 
देश में सबसे पहले तेलंगाना ने जनप्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों की सैलरी में कटौती करने का फैसला लिया है। वहां मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायकों की सैलरी 75 प्रतिशत, ए श्रेणी के कर्मचारियों की 60 प्रतिशत, बी श्रेणी के कर्मचारियों की 50 प्रतिशत, सरकारी पेंशन पाने वालों की 50 प्रतिशत और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की सैलरी में 10 प्रतिशत की कटौती की गई है। 
राजस्थान में भी 75 फीसदी की कटौती 
राजस्थान में भी मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और जनप्रतिनिधियों की सैलरी में 75 प्रतिशत की कटौती की गई है। जबकि आईएसएस अधिकारियों की सैलरी में 60 प्रतिशत, राज्य प्रशासनिक और अधीनस्थ सेवा अधिकारियों की सैलरी में से 50प्रतिशत की कटौती होगी। राज्य के दूसरे कर्मचरियों और सेवा निवृत्त पेंशन पाने वाले लोगों की सैलरी में से 30प्रतिशत की कटौती होगी। 
आंध्र प्रदेश में पूरी सैलरी की कटौती 
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने अपनी, मंत्रियों, विधायकों, एमएलसी, निगम सदस्यों और स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों की पूरी सैलरी काटने का ऐलान किया है। वहीं महाराष्ट्र में पहले सरकार ने मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायकों समेत निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की सैलरी काटने का ऐलान किया था लेकिन विरोध होने के बाद तय किया गया कि मार्च की सैलरी दो किश्तों में दी जाएगी। 


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