भोपाल। विश्चव्यापी संकट कोरोना वायरस के कहर के बीच मुनाफाखोर भी चांदी काटने से कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। इस बीमारी से बचाव में काम आने वाली सभी जरुरी सामग्रियों के दाम मनमाने तरीके से बढाए जा रहे हैं। हालत ये है कि बीमारी से बचाव के लिए जरुरी मास्क, सैनिटाइजर बाजार से गायब हो चुके हैं। इसके लिए मनमाने दाम पर वसूली हो रही है। व्यापारियों की मुनाफाखोरी अब जीवन रक्षक दवाओं को भी नहीं बख्श रही है। मलेरिया के इलाज की गोलियां बनाने के काम आने वाली दवा के कच्चे माल के दाम दो दिन में तीन गुना बढ़ा दिए गए हैं। खास बात ये है कि दो तरह की दवाओं में से एक फिलहाल सिर्फ इंदौर की एक दवा कंपनी में ही बन रही है। मलेरिया के इलाज के लिए 'क्लोरोक्वीन' और 'कुनैन' के रूप में प्रसिद्ध 'क्विनिन सल्फेट' नामक दवा का उपयोग होता है। दोनों दवा कोरोना के इलाज में असरदार निकली है। जयपुर व अन्य कुछ जगह कोरोना के मरीजों के इलाज में इनका सफल प्रयोग हुआ है। गोली बनाने के लिए इन दवाओं का पावडर यानी बेसिक ड्रग के दामों में तीन गुना उछाल आ गया है। तीन दिन पहले तक क्लोरोक्वीन का पावडर 1500 रुपए किलो के दाम पर मिल रहा था। शुक्रवार को उसके दाम 4500 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गए।
इसी तरह कुनैन का पावडर तीन दिन पहले तक तीन हजार रुपए प्रति किलो था, वह अब छह हजार रुपए प्रति किलो के दाम पर बेचा जा रहा है, जबकि सरकार आवश्यक दवा के रूप में इन्हें अधिसूचित कर चुकी है। इसी के साथ आइसोप्रोपाइल अल्कोहल जो कि सैनिटाइजर बनाने के काम आता है, उसके दाम भी सप्ताहभर में 100 रुपए लीटर से बढ़कर 400 रुपए लीटर कर दिए गए। मुनाफाखोरी के इस चलन का असर कोरोना से निपटने के प्रबंधों पर भी पड़ता नजर आ रहा है। दवा बनाने वाली छोटी इकाइयां शिकायत कर रही हैं कि ज्यादा दाम लेने पर भी सप्लायर खराब क्वालिटी दे रहे हैं। इस बारे में बेसिक ड्रग डीलर्स के एसोसिएशन के एक पदाधिकारी का कहना है कि मुनाफाखोरी जैसी बात ठीक नहीं है। निर्यात का दबाव है और आयात रुका है इसलिए कुछ उछाल हो सकता है। हम निर्माताओं से अपील कर रहे हैं और सरकार से भी सहयोग मांगेंगे कि कुनैन और क्लोरोक्वीन के दाम न बढ़े।