भोपाल। जाली नोटों की खेप के साथ क्राइम ब्रांच इंदौर ने तीन आरोपितों को दबोचने में कामयाबी हासिल की है।आरोपितों के पास से 2000, 500 और 200 रुपए के 20 लाख 2 हजार 700 रुपए बरामद हुए हैं। जाली नोट छापने वाला सरगना गुजरात से फरार है। वह परदेशीपुरा थाना क्षेत्र में किराए से कमरा लेकर कारखाना संचालित कर रहा था। जालसाजों ने उन सभी सुरक्षा इंतजामों की हूबहू नकल कर ली जो बगैर सरकारी मदद से संभव नहीं है। जब्त नोट पाकिस्तानी सिक्युरिटी प्रेस में छपे नोटों से मिलते-जुलते हैं। आईजी विवेक शर्मा के मुताबिक, पकड़े गए आरोपितों के नाम फिरोज अजीज खान निवासी राजपुर (बड़वानी), अकरम रमजान मंसूरी और गोलू उर्फ शहजाद रफीक अली दोनों निवासी ओझर नागलवाली (बड़वानी) हैं। पुलिस ने एजेंट बनकर आरोपितों से संपर्क किया और सौदा करने के लिए मानपुर फोरलेन पर बुलाकर नोटों के साथ पकड़ लिया। पूछताछ में आरोपित अकरम ने बताया कि उसका पिता रमजान जानलेवा हमले के आरोप में बड़वानी जेल में बंद था। इसी दौरान एक अन्य आरोपित सुनील से संपर्क हुआ और जाली नोटों की खरीद-फरोख्त शुरू कर दी। सुनील 30 हजार रुपए के असली नोट लेकर एक लाख रुपए के जाली नोट देता था। रमजान कमीशन पर नोट सप्लाई करता था। पुलिस को शक है कि आरोपित करोड़ों रुपए खपा चुके हैं। आरोपित सुनील, श्रीराम गुप्ता और रमजान मंसूरी की तलाश है। जाली नोट छापने वाला सरगना सुनील परदेशीपुरा क्षेत्र में किराए के मकान में रहता था। परदेशीपुरा में छोटे से कमरे में छप रहे जाली नोट एफआईसीएन के अपग्रेडेड वर्जन हैं। इनमें वे सारे सुरक्षा फीचर मौजूद हैं जो नोट बंदी के बाद नए नोटों में डाले गए थे। इन्हें छापने में इस्तेमाल की गई स्याही 'ऑप्टिकल वेरिएबल इंक' से मिलती-जुलती है। इस कारण नोट को मोड़ने पर सिक्यूरिटी थ्रेड का रंग हरे से नीला भी हो जाता है। आईजी का दावा है कि ऐसे नोटों की पहचान करना आम आदमी के बस में नहीं है। हम आरबीआई और गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भेज रहे हैं।
आरोपित फिरोज, अकरम और गोलू से जब्त नोट देखकर अफसर चकरा गए। डीआईजी रुचि वर्धन मिश्र ने नकली नोट में असली मिलाया तो यह पहचाना मुश्किल हो गया कि उसमें नकली कौनसा है। नोटों में मुद्रित वाटर मार्क, स्लोगन के साथ स्वच्छ भारत का लोगो, लैंग्वेज पैनल, मंगलयान का नमूना, गवर्नर के सिग्नेचर, प्रॉमिस क्लॉज सहित वे सारे पहचान चि- छपे थे जो असली नोटों में होते हैं। फर्क सिर्फ महात्मा गांधी की तस्वीर, अशोक स्तंभ के प्रतीक और थ्रेड लाइन में था। असली नोटों की तरह खुरदरी और उकेरी नहीं होने से नकली नोट पकड़ा गए। आईजी विवेक शर्मा के मुताबिक, नोट इतनी उच्च गुणवत्ता के हैं कि आम व्यक्ति द्वारा पकड़ना संभव नहीं है। नोटों पर सात थ्रेड लाइनें भी अंकित हैं। जो दृष्टिहीनों को नोटों की पहचान करने में सहायक होती है। जब्त नोटों में बनी थ्रेड लाइनें भी थोड़ी भिन्ना थी। असली नोट विशेष किस्म की स्याही 'ऑप्टिकल वेरिएबल' से छपते हैं। इसकी खासियत है कि थ्रेड नोट पर हरे रंग के दिखते हैं लेकिन मोड़ने पर रंग खुद-ब-खुद नीला पड़ जाता है। जब्त एफआईसीएन (फेक इंडियन करंसी) के थ्रेड भी मोड़ने पर नीले पड़ जाते हैं। हमने बैंक अफसरों को नोट दिखाए तो वे भी हतप्रभ रह गए। इस तरह के नोट अमूमन पाकिस्तान में छपते हैं। पूरे मामले की रिपोर्ट आरबीआई को भेजी जा रही है। एसटीएफ ने रमजान की तलाश में दबिश दी लेकिन फरार हो गया। इसी बीच क्राइम ब्रांच ने उसके बेटे अकरम को पकड़ लिया। एएसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया के मुताबिक, पुलिस को कमरे से प्रिंटिंग फर्में, लोहे के स्टेनगन, कलर फैलाने वाले वाइपर, उच्च क्वालिटी के कागज, पेपर शीट, मॉनिटर, सीपीयू, ट्रेस पेपर, बटर पेपर, पेपर कटिंग मशीन, स्कैनर, थीनर, डिकोटिंग पावडर सहित अन्य सामग्री मिली है। पूछताछ में आरोपित अकरम ने बताया कि उसका पिता रमजान बड़वानी जेल में बंद था। इसी दौरान आरोपित सुनील से परिचय हुआ। उसने सुनील के साथ मिलकर जाली नोट चलाने का काम शुरू कर दिया। सुनील को एक वर्ष पूर्व सूरत एसओजी ने भी लाखों रुपए सहित पकड़ा था। वह पैरोल पर जेल से छूटा और रमेश माधवराव से परदेशीपुरा में कमरा किराए पर ले लिया। इसका एग्रीमेंट साथी श्रीराम गुप्ता के नाम से किया गया था। आरोपित ने चार महीने में 20 लाख रुपए छाप लिए। 15 दिन पूर्व उज्जैन एसटीएफ ने रवि व अन्य को जाली नोटों के साथ पकड़ा था। उन्होंने भी रमजान से नोट खरीदना कबूला था।