नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ धरना दे रहे प्रदर्शनकारियों को हटाने की याचिकाओं पर तुरंत आदेश जारी करने से इनकार कर दिया। सोमवार को अदालत ने कहा कि इस मामले में दूसरे पक्ष को सुनना भी जरूरी है। सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा- प्रदर्शन लंबे वक्त से जारी है, इसके लिए आम रास्ते को अनिश्चितकाल के लिए कैसे बंद कर सकते हैं। इसके अलावा कोर्ट ने 30 जनवरी को प्रदर्शन में 4 माह के बच्चे की मौत पर स्वत: संज्ञान लिया। केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा। अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी।
नवजात की मौत को लेकर सुनवाई पर...
प्रदर्शनकारियों की ओर से 2 महिला वकीलों ने कोर्ट के स्वत: संज्ञान लेने पर आपत्ति जताई। वकीलों ने कहा- प्रदर्शनस्थल पर जाने वाले बच्चों को स्कूलों में पाकिस्तानी और देशद्रोही कहा जाता है। इस पर चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच ने महिला वकील को फटकार लगाते हुए पूछा- क्या 4 माह का बच्चा ऐसे प्रदर्शनों का हिस्सा होना चाहिए। वहीं, केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- बच्चों को प्रदर्शनस्थल पर लेकर जाना सही नहीं है।
शाहीन बाग में रास्ता बंद होने पर...
कोर्ट ने कहा- लोगों को आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन इससे किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। प्रदर्शन निर्धारित स्थान पर ही किया जाना चाहिए। ऐसा अनिश्चितकाल तक के लिए नहीं होना चाहिए। अदालत ने इस मामले में भी केंद्र और दिल्ली सरकार के साथ दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है।
प्रदर्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 3 याचिकाएं
दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले 50 दिनों से सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहा है। इसके चलते वहां मुख्य सड़क पर आवाजाही बंद है। इलाके का ट्रैफिक डाइवर्ट किए जाने से लोगों को हो रही परेशानी के खिलाफ वकील अमित साहनी और भाजपा नेता नंदकिशोर गर्ग ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। वहीं, प्रदर्शन के दौरान 4 महीने के बच्चे की मौत पर बहादुरी पुरस्कार प्राप्त छात्रा जेन गुणरत्न सदावर्ते ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखी थी। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने इस चिठ्ठी पर संज्ञान लिया था।