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दिनांक 30 नवम्बर 2020

Updated on 30-11-2020 12:16 PM
⛅ दिन - सोमवार
⛅ विक्रम संवत - 2077
⛅ शक संवत - 1942
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - हेमंत
⛅ मास - कार्तिक
⛅ पक्ष - शुक्ल 
⛅ तिथि - पूर्णिमा दोपहर 02:59 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
⛅ नक्षत्र - रोहिणी पूर्ण रात्रि तक
⛅ योग - शिव सुबह 10:47 तक तत्पश्चात सिद्ध
⛅ राहुकाल - सुबह 08:21 से सुबह 09:43 तक
⛅ सूर्योदय - 07:00 
⛅ सूर्यास्त - 17:54 
⛅ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
⛅ व्रत पर्व विवरण - कार्तिक पूर्णिमा, देव दिवाली, कार्तिक स्नान समाप्त, तुलसी विवाह समाप्त, गुरु नानकजी जयंती
 💥 विशेष - पूर्णिमा के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
🌷 मार्गशीर्ष मास 🌷
🙏🏻 मार्गशीर्ष हिन्दू धर्म का नौवाँ महिना है। मार्गशीर्ष को( अग्रहायण)  नाम भी दिया गया है। अग्रहायण शब्द 'आग्रहायणी' नक्षत्र से संबंधित है जो मृगशीर्ष या मृगशिरा का ही दूसरा नाम है । अग्रहायण का तद्भव रूप 'अगहन' है । इस वर्ष 01 दिसम्बर 2020 मंगलवार (उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार) से मार्गशीर्ष का आरम्भ हो रहा है। वैदिक काल से मार्गशीर्ष माह का विशेष महत्व रहा है। प्राचीन समय में मार्गशीर्ष से ही नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता था। मार्गशीर्ष माह में सनातन संस्कृति के दो प्रमुख विवाह संपन्न हुए थे। शिव विवाह तथा राम विवाह। मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को राम विवाह तो सर्वविदित है ही साथ ही शिवपुराण, रुद्रसंहिता, पार्वतीखण्ड के अनुसार सप्तर्षियों के समझाने से हिमवान ने शिव के साथ अपनी पुत्री का विवाह मार्गशीर्ष माह में निश्चित किया था ।
👉🏻 श्रीमद्भागवतगीता में श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं  “मासानां मार्गशीर्षोऽहं नक्षत्राणां तथाभिजित्” अर्थात  मैं महीनों में मार्गशीर्ष और नक्षत्रों में अभिजित् हूँ।
👉🏻 स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड के अनुसार “मार्गशीर्षोऽधिकस्तस्मात्सर्वदा च मम प्रियः ।। उषस्युत्थाय यो मर्त्यः स्नानं विधिवदाचरेत् ।। तुष्टोऽहं तस्य यच्छामि स्वात्मानमपि पुत्रक ।।” श्रीभगवान कहते हैं की मार्गशीर्ष मास मुझे सदैव प्रिय है। जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर मार्गशीर्ष में विधिपूर्वक स्नान करता है, उस पर संतुष्ट होकर मैं अपने आपको भी उसे समर्पित कर देता हूँ।
💥 मार्गशीर्ष में सप्तमी, अष्टमी मासशून्य तिथियाँ हैं। मासशून्य तिथियों में मंगलकार्य करने से वंश तथा धन का नाश होता है।
👉🏻 महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार “मार्गशीर्षं तु वै मासमेकभक्तेन यः क्षिपेत्। भोजयेच्च द्विजाञ्शक्त्या स मुच्येद्व्याधिकिल्बिषैः।। सर्वकल्याणसम्पूर्णः सर्वौषधिसमन्वितः। कृषिभागी बहुधनो बहुधान्यश्च जायते।।” जो मार्गशीर्ष मास को एक समय भोजन करके बिताता है और अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्माण को भोजन कराता है, वह रोग और पापों से मुक्त हो जाता है । वह सब प्रकार के कल्याणमय साधनों से सम्पन्न तथा सब तरह की औषधियों (अन्न-फल आदि) से भरा-पूरा होता है। मार्गशीर्ष मास में उपवास करने से मनुष्य दूसरे जन्म में रोग रहित और बलवान होता है। उसके पास खेती-बारी की सुविधा रहती है तथा वह बहुत धन-धान्य से सम्पन्न होता है ।
👉🏻 स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड के अनुसार “मार्गशीर्षं समग्रं तु एकभक्तेन यः क्षिपेत् ।। भोजयेद्यो द्विजान्भक्त्या स मुच्येद्व्याधिकिल्विषैः।।” जो प्रतिदिन एक बार भोजन करके समूचे मार्गशीर्ष को व्यतीत करता है और भक्तिपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराता है, वह रोगों और पातकों से मुक्त हो जाता है।
👉🏻 शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष में चाँदी का दान करने से वीर्य की वृद्धि होती है। शिवपुराण विश्वेश्वर संहिता के अनुसार मार्गशीर्ष में अन्नदान का सर्वाधिक महत्व है “मार्गशीर्षे ऽन्नदस्यैव सर्वमिष्टफलं भवेत् ॥ पापक्षयं चेष्टसिद्धिं चारोग्यं धर्ममेव च॥” अर्थात मार्गशीर्ष मास में केवल अन्नका दान करने वाले मनुष्यों को ही सम्पूर्ण अभीष्ट फलों की प्राप्ति हो जाती है | मार्गशीर्षमास में अन्न का दान करने वाले मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं |
🙏🏻 मार्गशीर्ष माह में मथुरापुरी निवास करने का बहुत महत्व है। स्कन्दपुराण में स्वयं श्रीभगवान, ब्रह्मा से कहते हैं -
🌷 “पूर्णे वर्षसहस्रे तु तीर्थराजे तु यत्फलम् । तत्फलं लभते पुत्र सहोमासे मधोः पुरे ।।” अर्थात तीर्थराज प्रयाग में एक हजार वर्ष तक निवास करने से जो फल प्राप्त होता है, वह मथुरापुरी में केवल अगहन (मार्गशीर्ष) में निवास करने से मिल जाता है।
🙏🏻 मार्गशीर्ष मास में विश्वदेवताओं का पूजन किया जाता है कि जो गुजर गये उनकी आत्मा की शांति हेतु ताकि उनको शांति मिले | जीवनकाल में तो बिचारे शांति न लें पाये और चीजों में उनकी शांति दिखती रही पर मिली नहीं | तो मार्गशीर्ष मास में विश्व देवताओं के पूजन करते है भटकते जीवों के सद्गति हेतु |

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