*⛅नक्षत्र - पूर्वभाद्रपद 17 जनवरी प्रातः 04:38 तक तत्पश्चात उत्तरभाद्रपद*
*⛅योग - परिघ रात्रि 08 :01 तक तत्पश्चात शिव*
*⛅राहु काल - शाम 03:33 से 04:54 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:23*
*⛅सूर्यास्त - 06:16*
*⛅दिशा शूल - उत्तर*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:23 से 01:16 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - मकर संक्रांति, पोंगल*
*⛅विशेष - षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹तिल के औषधीय प्रयोग🔹*
*🔸काले तिल चबाकर खाने व शीतल जल पीने से शरीर की पर्याप्त पुष्टि हो जाती है। दाँत मृत्युपर्यन्त दृढ़ बने रहते हैं।*
*🔸एक भाग सोंठ चूर्ण में दस भाग तिल का चूर्ण मिलाकर 5 से 10 ग्राम मिश्रण सुबह शाम लेने से जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।*
*🔸तिल का तेल पीने से अति स्थूल (मोटे) व्यक्तियों का वजन घटने लगता है व कृश (पतले) व्यक्तियों का वजन बढ़ने लगता है। यह कार्य तेल के द्वारा सप्तधातुओं के प्राकृत निर्माण से होता है।*
*🔹तैलपान विधिः सुबह 20 से 50 मि.ली. गुनगुना तेल पीकर,गुनगुना पानी पियें। बाद में जब तक खुलकर भूख न लगे तब तक कुछ न खायें।*
*🔸अत्यन्त प्यास लगती हो तो तिल की खली को सिरके में पीसकर समग्र शरीर पर लेप करें।*
*🔸वार्धक्यजन्य हड्डियों की कमजोरी उससे होने वाले दर्द में दर्दवाले स्थान पर 15 मिनट तक तिल के तेल की धारा करें।*
*🔸पैर में फटने या सूई चुभने जैसी पीड़ा हो तो तिल के तेल से मालिश कर रात को गर्म पानी से सेंक करें।*
*🔸पेट मे वायु के कारण दर्द हो रहा हो तो तिल को पीसकर, गोला बनाकर पेट पर घुमायें।*
*🔹वातजनित रोगों में तिल में पुराना गुड़ मिलाकर खायें।**
*🔸एक भाग गोखरू चूर्ण में दस भाग तिल का चूर्ण मिलाके 5 से 10 ग्राम मिश्रण बकरी के दूध में उबाल कर, मिश्री मिला के पीने से षढंता∕नपुंसकता (Impotency) नष्ट होती है।*
*🔸काले तिल के चूर्ण में मक्खन मिलाकर खाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) नष्ट हो जाती है।*
*🔹तिल की मात्राः 10 से 25 ग्राम ।*
*🔹विशेषः देश, काल, ऋतु, प्रकृति, आयु आदि के अनुसार मात्रा बदलती है। उष्ण प्रकृति के व्यक्ति, गर्भिणी स्त्रियाँ तिल का सेवन अल्प मात्रा में करें। अधिक मासिक-स्राव में तिल न खायें।*
*🌹 बरकत लाने व सुखमय वातावरण बनाने हेतु🌹*
*🌹 जिस घर में भगवान का, ब्रह्मवेत्ता संत का चित्र नहीं है वह घर स्मशान है । जिस घर में माँ-बाप, बुजुर्ग व बीमार का खयाल नहीं रखा जाता उस घर से लक्ष्मी रूठ जाती है । बिल्ली, बकरी व झाड़ू कि धूलि घर में आने से बरकत चली जाती है । गाय के खुर कि धूलि से, सुह्र्दयता से, ब्रह्मज्ञानी सत्पुरुष के सत्संग से घर का वातावरण स्वर्गमय, सुखमय, मुक्तिमय हो जाता है ।*
*🔹बच्चे - बच्चियों को गन्दगी से बचाने के लिए🔹*
*🔹अपने बच्चे – बच्चियाँ वहाँ की गंदगी से बचें इसलिए ‘दिव्य प्रेरणा – प्रकाश’ पुस्तक बार – बार पढ़ें । रात्रि को सोने से पूर्व २१ बार ‘ॐ अर्यमायै नम:’ मंत्र का जप करना तथा तकिये पर अपनी माँ का नाम (केवल ऊँगली से ) लिखकर सोना, सुबह स्नान के बाद ललाट पर तिलक करना और पढाई के दिनों में एवं अवसाद (डिप्रेशन) के समय प्राणायाम करने चाहिए ।*
*🔹सर्वांगासन करके गुदाद्वार का जितनी देर सम्भव हो संकोचन करें और ‘वीर्य ऊपर की ओर आ रहा है...’ ऐसा चिंतन करें । देर रात को न खायें, कॉफ़ी-चाय के आदि के व्यसन में न पड़ें और सादा जीवन जियें, जिससे अपनी जीवनीशक्ति की रक्षा हो ।*
*🔹सुबह थोड़ी देर भगवत्प्रार्थना – स्मरण करते हुए शांत हो जाओ । बुद्धि में सत्त्व बढ़ेगा तो बुद्धि निर्मल होगी, गड़बड़ से मन को बचायेगी और मन इन्द्रियों को नियंत्रित रखेगा ।*