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01 दिसम्बर 2023

Updated on 01-12-2023 09:36 AM
⛅दिन - शुक्रवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2080*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - हेमंत*
*⛅मास - मार्गशीर्ष*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - चतुर्थी दोपहर 03:31 तक तत्पश्चात पंचमी*
*⛅नक्षत्र - पुनर्वसु शाम 04:40 तक तत्पश्चात पुष्य*
*⛅योग - शुक्ल रात्रि 08:04 तक तत्पश्चात ब्रह्म*
*⛅राहु काल - सुबह 11:07 से 12:29 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:04*
*⛅सूर्यास्त - 05:53*
*⛅दिशा शूल - पश्चिम*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:18 से 06:11 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:02 से 12:55 तक*
*⛅विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है । पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

*🔹पुण्यदायी तिथियाँ व योग🔹*
*👉 04 दिसम्बर - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जयंती (दि.अ.)*
*👉 08 दिसम्बर - उत्पत्ति एकादशी (स्मार्त)*
*👉 09 दिसम्बर - उत्पत्ति एकादशी (भागवत)*
*👉 10 दिसम्बर - प्रदोष व्रत, संत ज्ञानेश्वरजी महाराज पुण्यतिथि*
*👉 11 दिसम्बर - मासिक शिवरात्रि*
*👉 12 दिसम्बर - मार्गशीर्ष अमावस्या, दर्श अमावस्या, श्री रंग अवधूत महाराज पुण्यतिथि*
*👉 14 दिसम्बर - चन्द्र दर्शन (शाम 05:56 से रात्रि 07:10 तक)*
*👉 16 दिसम्बर - विनायक चतुर्थी, धनुर्मास प्रारम्भ, षडशीति-धनु संक्रांति (शाम 04:09 से सूर्यास्त तक)*
*👉 17 दिसम्बर - स्कन्द षष्ठी*
*👉 20 दिसम्बर - बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय से दोपहर 11:14 तक)*
*👉 22 दिसम्बर - मोक्षदा एकादशी (स्मार्त), मौनी एकादशी (जैन), श्रीमद्भगवद्गीता जयंती, शिशिर ऋतु प्रारम्भ,  वर्ष का सबसे छोटा दिन*
*👉 23 दिसम्बर - मोक्षदा एकादशी (भागवत), अखंड द्वादशी*

*🔹ग्रह, वास्तु, अरिष्ट शांति का सरल उपाय – विष्णुसहस्रनाम🔹*
*🔸'विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र' विधिवत अनुष्ठान करने से सभी ग्रह, नक्षत्र, वास्तु दोषों की शांति होती है । विद्याप्राप्ति, स्वास्थ्य एवं नौकरी-व्यवसाय में खूब लाभ होता है । कोर्ट-कचहरी तथा अन्य शत्रुपीड़ा की समस्याओं में भी खूब लाभ होता है । इस अनुष्ठान को करके गर्भाधान करने पर घर में पुण्यात्माएँ आती हैं । सगर्भावस्था के दौरान पति-पत्नी तथा कुटुम्बीजनों को इसका पाठ करना चाहिए ।*

*🔸अनुष्ठान-विधिः सर्वप्रथम एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएँ । उस पर थोड़े चावल रख दें । उसके ऊपर ताँबे का छोटा कलश पानी भर के रखें । उसमें कमल का फूल रखें । कमल का फूल बिल्कुल ही अनुपलब्ध हो तो उसमें अडूसे का फूल रखें । कलश के समीप एक फल रखें । तत्पश्चात ताँबे के कलश पर मानसिक रूप से चारों वेदों की स्थापना कर 'विष्णुसहस्रनाम' स्तोत्र का सात बार पाठ सम्भव हो तो प्रातः काल एक ही बैठक में करें तथा एक बार उसकी फलप्राप्ति पढ़ें । इस प्रकार सात या इक्कीस दिन तक करें । रोज फूल एवं फल बदलें और पिछले दिन वाला फूल चौबीस घंटे तक अपनी पुस्तकों, दफ्तर, तिजोरी अथवा अन्य महत्त्वपूर्ण जगहों पर रखें व बाद में जमीन में गाड़ दें । चावल के दाने रोज एक पात्र में एकत्र करें तथा अनुष्ठान के अंत में उन्हें पकाकर गाय को खिला दें या प्रसाद रूप में बाँट दें । अनुष्ठान के अंतिम दिन भगवान को हलवे का भोग लगायें ।*

*🔸यह अनुष्ठान हो सके तो शुक्ल पक्ष में शुरू करें । संकटकाल में कभी भी शुरू कर सकते हैं । स्त्रियों को यदि अनुष्ठान के बीच में मासिक धर्म के दिन आते हों तो उन दिनों में अनुष्ठान बंद करके बाद में फिर से शुरू करना चाहिए । जितने दिन अनुष्ठान हुआ था, उससे आगे के दिन गिनें ।*

*🔹टिप्पणीः शास्त्र कहते हैं कि प्रदोषकाल (निषिद्धकाल) में मैथुन नहीं करना चाहिए । जिन लोगों का गर्भाधान जानकारी के अभाव में अनुचित काल में हुआ है, उन्हें अपनी संतान की ग्रहशांति के लिए यह अनुष्ठान करना चाहिए ।*

*🔸गर्भाधान के लिए अनुचित कालः संध्या का समय, जन्मदिन, पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, प्रदोष (त्रयोदशी के दिन सूर्यास्त के निकट का काल), चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, उत्तरायण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि पर्वों (दो तिथियों का समन्वय काल) एवं मासिक धर्म के प्रथम पाँच दिनों में तो मैथुन सर्वथा वर्जित है ।*

*🔸शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, नहीं तो आसुरी, कुसंस्कारी अथवा विकलांग संतान उत्पन्न होती है । यदि संतान नहीं हुई तो दम्पत्ति को कोई खतरनाक बीमारी हो जाती है ।*

श्री सृष्टि सर्व कल्याण संस्थान
 ज्योतिषाचार्य, पं मनोज दीक्षित

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